आइसोस्टेटिक रिबाउंड
वैज्ञानिक इस प्रक्रिया को ‘आइसोस्टेटिक रिबाउंड’ कहते हैं। यानी कोई पदार्थ जितना हल्का या कम सघन होता है, वह पानी में या मेंटल पर उतना ही ऊपर तैरता है। यह सिद्धांत एवरेस्ट के ऊपर उठने पर लागू होता है। एक अन्य शोधकर्ता डॉ. एडम स्मिथ कहते हैं आप माउंट एवरेस्ट के आसपास के क्षेत्र को पानी की सतह पर रखे एक पूल फ्लोट की तरह सोच सकते हैं। यदि आप फ्लोट पर भार डालते हैं तो गुरुत्वाकर्षण बल पानी के ऊपर की ओर धकेलने वाले बल से अधिक मजबूत हेागा और फ्लोट पानी में नीचे बैठ जाएगा। लेकिन यदि आप धीरे-धीरे उनमें से कुछ भार हटा लेंगे तो फ्लोट धीरे-धीरे ऊपर उठ जाएगा। एवरेस्ट के साथ भी ऐसा ही हुआ है, क्योंकि एवरेस्ट के निकट की अरबों टन सामग्री को हटा दिया गया है, जिससे उत्थान या आइसोस्टेटिक रिबाउंड हुआ है।
वैज्ञानिक इस प्रक्रिया को ‘आइसोस्टेटिक रिबाउंड’ कहते हैं। यानी कोई पदार्थ जितना हल्का या कम सघन होता है, वह पानी में या मेंटल पर उतना ही ऊपर तैरता है। यह सिद्धांत एवरेस्ट के ऊपर उठने पर लागू होता है। एक अन्य शोधकर्ता डॉ. एडम स्मिथ कहते हैं आप माउंट एवरेस्ट के आसपास के क्षेत्र को पानी की सतह पर रखे एक पूल फ्लोट की तरह सोच सकते हैं। यदि आप फ्लोट पर भार डालते हैं तो गुरुत्वाकर्षण बल पानी के ऊपर की ओर धकेलने वाले बल से अधिक मजबूत हेागा और फ्लोट पानी में नीचे बैठ जाएगा। लेकिन यदि आप धीरे-धीरे उनमें से कुछ भार हटा लेंगे तो फ्लोट धीरे-धीरे ऊपर उठ जाएगा। एवरेस्ट के साथ भी ऐसा ही हुआ है, क्योंकि एवरेस्ट के निकट की अरबों टन सामग्री को हटा दिया गया है, जिससे उत्थान या आइसोस्टेटिक रिबाउंड हुआ है।