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जिले की गुम होती पहचान को पुर्नोत्थार की दरकार

कभी कवेलू उद्योग से हुआ करती थीं जिले की पहचान-
एक-एक बंद हो रहे जिले के कवेली उद्योग
शासन की उपेक्षा और काम नहीं मिलना बताया जा रहा कारण
40 में से बंद हो चुके 30 कवेलू कारखाने
10 से 12 संचालक भी घाटे में चला रहे कारखाना

बालाघाटOct 27, 2024 / 09:11 pm

mukesh yadav

एक-एक बंद हो रहे जिले के कवेली उद्योग

बालाघाट. कभी कवेलू उद्योग के नाम से पहचाने जाने वाले बालाघाट जिले में अधिकांश कारखाने बंद हो चुके हैं। वर्तमान में जो कवेलू कारखाने हैं, वे भी जिले की पहचान और कला को जीवित रखने घाटे में संचालित करने पड़ रहे हैं। कवेलू उद्योग से जुड़े व्यापारी शैलेष वैद्य और राजेन्द्र सिंह गौर की माने तो शासन प्रशासन की लगातार उपेक्षा और योजनाओं के तहत बनने वाले पक्की छतों ने इस व्यवसाय पर ग्रहण लगाने का काम किया है। जिले को देश प्रदेश में पहचान दिलाने वाला कवेलू व्यवसाय वर्तमान में पूरी तरह से दम तोडऩे पर आमदा है।
इन्होंने दिलाई थी पहचान
कवेलू लघु उद्योग से लंबे समय से जुड़े जानकार राजेन्द्र सिंह गौर की माने तो एक समय था, जब कवेलू की बंपर डिमांड थी। बालाघाट जिले में 40 से अधिक कारखाने संचालित होने के बावजूद पूर्ती कर पाना मुश्किल हुआ करता था। उस समय जिले के बैद्य श्रमिक, वेगड़ कारखाना, श्रीराम टाइल्स, सूरज टाइल्स, शैलो टाइल्स, बाबा रामदेव ऐसे कारखाने थे, जिनके यहां बनने वाले कवेलू देश के अन्य राज्यों में भी खूब पसंद किया करते थे। इन कारखानों से जिले के 20 हजार से अधिक लोगों को रोजगार भी प्राप्त हुआ करता था। लेकिन अब अब शौकीन लोग ही कवेलू खरीदा करते हैं। डिमांड नहीं होने से छोटे कवेलू उद्योग धीरे-धीरे कर उपरोक्त कारखाने भी बंद हो चुके हैं।
बंद हो चुके अधिकांश कारखाने
जिले के प्रसिद्ध कवेलू उद्योग संचालक शैलेष वैद्य के अनुसार पिछले 8-10 वर्ष पूर्व जिले में करीब 40 से अधिक कवेलू कारखाने संचालित हुआ करते थे। अब एक-एक कर अधिकांश उद्योग बंद हो चुके हैं। वर्तमान में 10 से 12 कारखाने संचालित हैं, वे परंपरागत कवेलू न बनाकर टाइल्स और अन्य डिजाइनें बनाकर किसी तरह से कर्मचारियों की तनख्वा निकाल रहे हैं। इन्होंने बताया कि शासन शीघ्र ध्यान नहीं देती हैं, तो बचे कुचे कवेलू कारखाने भी बंद हो जाएंगे।
यह बताएं जा रहे प्रमुख कारण
:- शासन प्रशासन की उपेक्षा।
:- मिट्टी की रायल्टी में बढ़ोत्तरी।
:- कवेलू पकाने में उपयोग होने वाला भूषा महंगा।
:- कैरोसीन नहीं मिल पाना।
:- योजना से पक्के आवास निर्माण।
:- डिमांड में कमी व लागत बढऩा।
पुर्नोत्थान की दरकार
कवेलू लघु उद्योग संचालकों की माने लंबे समय से कवेलू उद्योग को पुर्नोत्थान की दरकार बनी हुई है। प्रदेश सरकार इंवेस्टर मीट कर छोटे बड़े नए उद्योग और उद्योगों को बढ़ावा देने की बात कह रही है। लेकिन जमींनी स्तर पर पूर्व में बंद हो चुके लघु व बड़े उद्योगों को पुन: शुरू करवाने कोई प्रयास नहीं किए जा रहे हैं। कवेलू व्यवसायी गौर की माने तो शासन प्रधानमंत्री आवास योजना के आवास में पक्की छत की अनिवार्यता को शिथिल करें। मिट्टी खदानों को रियायती दरों पर मुहैया कराए, कवेलू को हथकरघा व्यवसाय की तरह प्रमोट और कारीगरों को सुविधाएं मुहैया करवाए तो जिले के कवेलू उद्योग को संजीवनी मिल सकती है। जिले का कवेलू व्यवसाय एक बार फिर नाम बना सकता है।
वर्सन
शासन की उपेक्षा और मार्केट में डिमांड नहीं होने से कवेलू उद्योग बंद होते जा रहे हैं। काम नहीं मिलने से कर्मचारियों की तनख्वा तक निकालना मुश्किल हो गया है। रायल्टी में छूट नहीं है। मिट्टी महंगी पड़ रही है। इसलिए अब कवेलू बनाना महंगा पड़ रहा है।
राजेन्द्र सिंह गौर, कवेलू कारोबारी
पीएम आवास में पक्के आवास निर्माण से भी कवेलू की तेजी से डिमांड घटी है। लोग कवेलू वाले कच्चे घर न बनाकर पक्के लेंटर वाले घर बना रहे हैं। शासन की गलत नीतियां और सहयोग नहीं मिलने से जिले का कवेलू उद्योग गर्त में चले गया है। इसके लिए नीति निर्धारण कर गंभीरता से प्रयास होने चाहिए।
शैलेष वैद्य, कवेलू कारखाना संचालक

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