जमकर बरसे पत्थर और ईंट
शुरुआत में रणबाकुंरों ने एक-दूसरे दल पर फलों से प्रहार किए। उसके बाद मौके पर पाषाण युद्ध शुरू हो गया था। रणबांकुरों ने मां वाराही के जयकारों के साथ एक-दूसरे पर पत्थर और ईंटे बरसानी शुरू कर दी थी। । दिन में 2:16बजे पुजारी ने मैदान में पहुंकर शंखनाद कर चंवर झुलाते हुए बग्वाल के समापन की घोषणा की।
एक व्यक्ति के बराबर बहता है रक्त
देवीधुरा का प्रसिद्ध बग्वाल लोगों की धार्मिक मान्यता का पवित्र रूप है। किंवदंती है कि एक वृद्धा के पौत्र का जीवन बचाने के लिए यहां के चारों खामों की विभिन्न जातियों के लोग आपस में युद्ध कर एक मानव के रक्त के बराबर खून बहाते हैं। क्षेत्र में रहने वाली विभिन्न जातियों में से चार प्रमुख खामों चम्याल, वालिक, गहरवाल और लमगडिय़ा खाम के लोग पूर्णिमा के दिन पूजा अर्चना कर एक दूसरे को बगवाल का निमंत्रण देते हैं।
सीएम धामी भी बने बग्वाल के साक्षी
उत्तराखंड के मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी भी एतिहासिक बग्वाल के साक्षी बनने के लिए आज देवीधुरा पहुंचे हुए थे। उन्होंने लोगों को रक्षा बंधन और बग्वाल मेले की शुभकामनाएं दीं। इसके अलावा देश-विदेश से हजारों लोग इस अनूठी परंपरा के साक्षी बनने को देवीधुरा पहुंचे हुए थे। समूचा क्षेत्र मां वाराही के जयकारों से गूंज रहा था। मेला कमेटी के पदाधिकारियों ने सीएम सहित अन्य अतिथियों का स्वागत किया।