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ऑटिज्म पीड़ित बच्चों के साथ माता-पिता को भी गर्व से जीने का अधिकार

कुछ बच्चे जन्म से ऐसी समस्याओं से ग्रस्त होते हैं, जिन्हें पूरी तरह दूर नहीं किया जा सकता है। हालांकि, माता-पिता, शिक्षक, भाई-बहन, समाज और दोस्तों का भरपूर सहयोग और प्यार मिले तो ऑटिज्म के शिकार बच्चों का भी भविष्य उज्ज्वल हो सकता है। सामान्य जीवन जीने के काबिल बनाया जा सकता है।

बैंगलोरJun 18, 2024 / 06:25 pm

Nikhil Kumar

ऑटिस्टिक गौरव दिवस (Autistic Pride Day)

निखिल कुमार.
पहचानने और सीखने की क्षमता का विकास नहीं हो पाना, अकेले बैठ कर तालियां बजाते रहना, खास शब्दों को बार-बार बोलते रहना, हमेशा एक ही खिलौने से खेलना, बिलकुल नहीं बोलना या सुनी हुई बात को बार-बार दोहराना, साधारण सी बात पर अनियंत्रित प्रतिक्रिया, बिना कारण या अनियंत्रित ढंग से हंसना या रोना, ध्वनि, स्पर्श और दर्द आदि संवेदनाओं के प्रति असामान्य प्रतिक्रिया। लट्टू, पंखा, पहिया जैसी घूमती वस्तुओं की अत्याधिक आकर्षण, आंख से आंख मिलाकर बात नहीं करना…। कुछ बच्चे जन्म से ऐसी समस्याओं से ग्रस्त होते हैं, जिन्हें पूरी तरह दूर नहीं किया जा सकता है। हालांकि, माता-पिता, शिक्षक, भाई-बहन, समाज और दोस्तों का भरपूर सहयोग और प्यार मिले तो ऑटिज्म के शिकार बच्चों का भी भविष्य उज्ज्वल हो सकता है। सामान्य जीवन जीने के काबिल बनाया जा सकता है।
वंचित नहीं बल्कि समान व्यक्ति के रूप अपनाने और अवसर देने की जरूरत

ऑटिज्म से पीड़ित बच्चों की देखभाल के लिए सकारात्मक रणनीतियों के साथ माता-पिता को सशक्त बनाना जरूरी है। ऐसे बच्चों की परवरिश चुनौतीपूर्ण होती है। विडंबना है कि अनेक पहल और जागरूकता अभियानों के बावजूद ऑटिज्म से पीड़ित लोगों को अक्सर कलंक और अधिकारों के उल्लंघन का सामना करना पड़ता है, लेकिन इन बच्चों के साथ-साथ इनके माता-पिता को भी गर्व से जीने का अधिकार है। ऑटिज्म के मरीजों को वंचित नहीं बल्कि समान व्यक्ति के रूप अपनाने और अवसर देने की जरूरत है।
सकारात्मक पेरेंटिंग

मनोवैज्ञानिक डॉ. अभिषेक पी. ने बताया कि ऑटिज्म स्पेक्ट्रम डिसऑर्डर (एएसडी) को समझना प्रभावी पेरेंटिंग के लिए महत्वपूर्ण है। यह न्यूरोडेवलपमेंटल डिसऑर्डर संचार, सामाजिक संपर्क और व्यवहार को प्रभावित करता है। ऑटिज्म से पीड़ित हर बच्चे की समस्या दूसरे से अलग होती है। इसलिए हर बच्चे के लिए अलग तरह की मदद की जरूरत होती है। पीड़ितों को दवाओं से ज्यादा फायदा Behavior Therapy से होता है। माता-पिता को भी मनोचिकित्सक के परामर्श की जरूरत होती है। ऑटिज्म के लिए सकारात्मक पेरेंटिंग का एक प्रमुख पहलू संरचना और दिनचर्या स्थापित करना है। ऐसे बच्चे अक्सर संरचित वातावरण में पनपते हैं, जो उन्हें सुरक्षा की भावना प्रदान करता है और चिंता को कम करता है। विभिन्न गतिविधियों के लिए विशिष्ट समय स्लॉट के साथ सुसंगत दैनिक कार्यक्रम बनाना स्थिरता और पूर्वानुमान को बढ़ावा देने में मदद करता है।
सामाजिक संपर्क

दृश्य सहायता का उपयोग करना, भाषा को सरल बनाना, सक्रिय रूप से सुनने का अभ्यास करना और गैर-मौखिक संचार को सुदृढ़ करना ऑटिज्म से पीड़ित बच्चों के लिए संचार को काफी हद तक बेहतर बना सकता है। सामाजिक संपर्क को प्रोत्साहित करना सकारात्मक पेरेंटिंग का एक और आवश्यक पहलू है।
ढाई लाख से अधिक मरीज

ऑटिज्म सोसाइटी ऑफ इंडिया के आंकड़ों के अनुसार राज्य में इस विकार से ग्रस्त लोगों की संख्या ढाई लाख से भी अधिक है। विश्व स्वास्थ्य संगठन के अनुसार विश्व के हर पांच सौ व्यक्ति में एक ऑटिज्म का शिकार है।
300 फीसदी की वृद्धि

चिकित्सकों के अनुसार गत एक दशक में Autism and Neuro-Developmental Disorders  से पीड़ित बच्चों की संख्या में 300 फीसदी की वृद्धि हुई है। वर्ष 2004 में 166 बच्चों में से एक को ऑटिज्म था और अब यह संख्या बढ़कर 54 से ज्यादा हो गई। सामान्य रूप से ऑटिज्म का पता तीन साल की उम्र से पहले लगता है।
बौद्धिक क्षमता अलगअलग

कई लोग समझते हैं कि बच्चे के बड़े हो जाने या शादी कर देने से उनकी समस्या ठीक हो जाती है पर ऐसा नहीं है। सही मार्गदर्शन से इसके प्रभावों पर नियंत्रण पाया जा सकता है। ये बच्चे कुछ नहीं कर सकते सोचना बिलकुल गलत है। इन बच्चों में बौद्धिक क्षमता अलग-अलग होती है। सही मार्गदर्शन मिले तो ये सभी प्रकार के क्षेत्रों में आगे बढ़ सकते हैं। ये बच्चे किसी एक क्षेत्र में बहुत अच्छा प्रदर्शन कर सकते हैं जैसे संगीत नृत्य या कला। ऑटिस्टिक बच्चों को लोग आक्रामक समझते हैं पर ऐसा नहीं है। इनका व्यवहार एवं अपनी बात को प्रकट करने का तरीका कुछ अलग होता है। Autism के साथ कुछ और समस्या हो तो 2 प्रतिशत मामलों में बच्चे के आक्रामक होने की संभावना हो सकती है।
डॉ. जयंत संपत, न्यूरोलॉजिस्ट

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