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ऑनलाइन गेमिंग का ‘ओवरडोज’, दिल-दिमाग पर डाल रहा बोझ

चेन्नई. बेहतरीन गेमिंग फंक्शन वाले अत्याधुनिक सेलफोन की उपलब्धता के कारण, वर्तमान पीढ़ी विशेषकर विद्यार्थी वर्ग वर्चुअल गेम पर अधिक सक्रिय है। कई शोध इस बात का स्पष्ट संकेत देते हैं कि इन खेलों से किशोरों को कई तरह की मनोवैज्ञानिक समस्याओं का सामना करना पड़ता है, जैसे वे अपना सेल्फ कंट्रोल खोने लगते हैं। यह […]

चेन्नईSep 19, 2024 / 02:55 pm

P S VIJAY RAGHAVAN

चेन्नई. बेहतरीन गेमिंग फंक्शन वाले अत्याधुनिक सेलफोन की उपलब्धता के कारण, वर्तमान पीढ़ी विशेषकर विद्यार्थी वर्ग वर्चुअल गेम पर अधिक सक्रिय है।
कई शोध इस बात का स्पष्ट संकेत देते हैं कि इन खेलों से किशोरों को कई तरह की मनोवैज्ञानिक समस्याओं का सामना करना पड़ता है, जैसे वे अपना सेल्फ कंट्रोल खोने लगते हैं। यह उनके कौशल, सोचने-समझने की क्षमता और रचनात्मकता को बड़े पैमाने पर प्रभावित कर रहा है। शायद यही वजह है कि कुछ देशों ने ऑनलाइन गेस पर रोक की सिफारिश की है, जबकि भारत में ऑनलाइन गेम खेलने वालों की संया इस साल के अंत तक 491 मिलियन का आंकड़ा पार कर सकती है।
तमिलनाडु ऑनलाइन गेमिंग अथॉरिटी के ताजा सर्वे के प्रारंभिक विश्लेषण के अनुसार राज्य में 20% विद्यार्थी ऑनलाइन गेम के आदी हैं। यह बहुत बड़ी संया है। राज्य के विद्यार्थी जीवन पर पहले ही नशे का ग्रहण लग चुका है। नशे के साथ असामान्य रूप से ऑनलाइन गेम की लत एक पूरी पीढ़ी को बर्बाद कर सकती है। देश के अन्य राज्यों में भी कमोबेस यही हाल है।
भारत में 2023 में ऑनलाइन गेमर्स की संया 455 मिलियन थी, जिसमें पिछले कुछ सालों में से 8-10% की सालाना बढ़ोतरी हो रही है। वर्ल्डवाइड हाल पर बात करें तो गेम यूजर्स की वैश्विक संया 2024 और 2029 के बीच हर साल करीब कुल 0.4 बिलियन उपयोगकर्ताओं के बढ़ने का अनुमान है। सालाना करीब 15.5% की ग्रॉथ के साथ यह संया 2029 में 3.02 बिलियन उपयोगकर्ताओं तक सकती है।
वर्तमान में इनकी संया करीब ढाई बिलियन है। इसी कड़ी में बांग्लोदश की एक यूनिवर्सिटी का सर्वे बताता है कि वहां के 62.7% छात्र हर सप्ताह 30 घंटे से अधिक ऑनलाइन गेम खेलते हैं।
भारत में पंजाब में हुए एक संक्षिप्त सर्वे से संकेत मिला है कि ऑनलाइन गेम के खिलाड़ियों में महिलाओं की तुलना में पुरुष आबादी ज्यादा है। इसमें चिंताजनक विषय यह है कि तीस वर्ष तक की आबादी के करीब पैंसठ फीसदी लोगों में ऑनलाइन गेम का भूत सवार है। अंडर ग्रेजुएट लोगों के लिए तो यह सबसे पसंदीदा मनोरंजन बन चुका है, जिसे बदलने की नितांत जरूरत है।
Expert View

कोविड के बाद यह समस्या हर आयु वर्ग में दिखाई दे रही है। विशेषकर विद्यार्थी वर्ग ज्यादा प्रभावित है। यह दो धारी तलवार की तरह है कि क्या मनोविकार की वजह से लोग खेल रहे हैं अथवा ऑनलाइन गेस से मनोविकार हो रहा है। विद्यार्थियों के ऑनलाइन वर्ल्ड में प्रवेश की वजह उनकी स्कूली अथवा निजी जीवन की परेशानियां हो सकती हैं। उस दुनिया में वे बेफिक्र हो जाते हैं और खुद को कफर्ट जोन में पाते हैं। फिर दिमाग इसे अपना लेता है और वे पढ़ाई व जिमेदारी आदि से दूर होने लगते हैं। रेकमेंडेड टाइम से अधिक ऑन स्क्रीन टाइम व्यतीत हो रहा है तो इसका दिमाग पर असर पड़ने लगता है। खासकर विद्यार्थियों का दिमाग जो विकसित हो रहा होता है, उसकी क्रियाएं प्रभावित होने लगती हैं। शारीरिक समस्याओं के अलावा नींद प्रभावित होती है। ब्रेन वीक होने से मेमोरी, अटेंशन व कॉन्स्ट्रेशन में डिफिकल्टी आने लगती है। मूड स्विंग होता है और वे डिप्रेशन में चले जाते हैं। इसका उपाय है कि उनके ऑनलाइन स्क्रीन टाइम को नियंत्रित करें। आउटडोर गेम खिलाएं।
और पाठ्येतर क्रियाओं में एक्टिव करें। अगर फिर भी उसका अव्यवहार असामान्य है तो विशेषज्ञों से परामर्श लिया जाना चाहिए।

  • डॉ. वंदना आच्छा, क्लिनिकल साइकोलॉजिस्ट

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