उपयंत्री वाजपेयी का कहना हैए कि ओरछा के तत्कालीन नरेश वीर सिंह जू देव के मुगलों से अच्छे संबंध बताए जाते थे। इसकी के चलते यहां पर जहांगीर महल का निर्माण कराया गया था। ऐसे में यह तकनीक ईरान से आई होगी। मुगल ईरान से ही देश में आए थे। विदित हो कि अब सावन.भादौ पिलर को लेकर किंवदंती थी कि सावन.भादौ के माह में यह पिलर आपस में जुड़ जाते थे। लोग इन पिलर को श्रद्धा से देखते थे।
उपयंत्री वाजपेयी ने बताया कि इस पूरे परिसर में फाउंटेन का जाल है। सावन.भादौ पिलर के नीचे मिले कक्ष में भी फाउंटेन के अंश मिले है। इसके साथ ही चंदन के कटोरा बाग में भी एक दर्जन फाउंटेन मिले है। यहां पर टेराकोटा की पाइप लाइन का उपयोग कर फव्वारे चलाए जाते थे।
सावन भादौ के नीचे बने कक्ष को लेकर पुरातत्व विभाग के क्यूरेटर घनश्याम बाथम का कहना है कि ऐसी ही संरचना राज महल में भी है। यहां पर 25 फीट ऊंचे टॉवर से महल के अंदर हवा आती थी। राजा के कक्ष में यह सुविधा है। बाथम का कहना है की इन टॉवर में चारों ओर छिद्र छोड़े जाते थेए ऐसे में किसी भी दिशा से हवा चलने पर इन टॉवर से नीचे जाती थी। विदित हो कि एक वर्ष पूर्व राजमहल परिसर की खुदाई में व्यवस्थित कॉलोनियों के अवशेष मिले थे।