-15 दिन का प्रशिक्षण लिया और कर रहे इलाज
ऐसे मरीजों का इलाज मेडिकल ऑफिसर और काउंसलिंग के आधार पर ही हो रहा है। जिला अस्पताल में संचालित मन कक्ष के प्रभारी डॉ. मधुर चौधरी बताते हैं कि विशेषज्ञ चिकित्सक की कमी है। यहां भी इलाज उन्हीं का होता है, जो या तो आत्महत्या का प्रयास करने के बाद भर्ती होते हैं। या फिर मानसिक रूप से काफी बीमार होते हैं। उनकी संख्या तकरीबन ३० है। अन्य काउंसलिंग के बाद वापस इलाज कराने के लिए नहीं आते हैं। साफ है कि ड्रिप्रेशन व एंजाइटी से पीडि़त मरीजों को दूसरे शहरों में इलाज कराने के लिए जाना पड़ता है।-उमंग क्लीनिक से उम्मीद, पर कारगर नहीं साबित हो रही काउंसलिंग
जिले में युवाओं और बच्चों में बढ़ रहे तनाव को दूर करने और ऐसे बच्चों को चिंहित करने के लिए उमंग क्लीनिक संचालित की जा रही है। जिले के सभी सातों ब्लॉक में बच्चों व युवाओं की काउंसलिंग के लिए प्रशिक्षित स्टाफ तैनात किया गया है। इनका काम स्कूल कॉलेजों में जाकर बच्चों में डिप्रेशन और एंजाइटी का पता लगाना और उन्हें चिंहित करना होता है। काउंसलर विधि गुप्ता बताती है कि हर महीने स्कूल-कॉलेजों में शिविर लगाए जाते हैं, लेकिन बच्चे खुलकर कुछ भी नहीं बताते हैं। उनके अंदर डर होता है कि यदि जांच कराई तो यह बात अन्य लोगों तक फैल जाएगी।-हर साल २०० से अधिक कर रहे खुदकुशी
जिले में आत्महत्या के मामले भी काफी बढ़ रहे हैं। देखा जाए तो हर साल औसतन २०० से ज्यादा लोग आत्महत्या जैसे कदम उठाकर अपनी जीवन लीला को समाप्त कर रहे हैं। इनमें ट्रेन से कटना, फंदे से झूलना, जहरीला पदार्थ खाकर खुदकुशी करना शामिल है। इनमें १३ साल तक के बच्चे भी शामिल हैं।केस-१
गैसाबाद थाना अंतर्गत कचनारी गांव में रविवार को नाबालिग लड़की ने फंदे से झूलकर खुदकुशी कर ली थी। लड़की के पिता ने बताया कि हम लोग दोपहर में खाना खाकर खेत की तरफ निकल गए थे। जब वापस लौटे तो लड़की फंदे पर लटकी हुई थी। उसे सिविल अस्पताल लाएं जहां डाक्टरों ने मृत घोषित कर दिया। पुलिस मामले की जांच में जुटी है।
केस-२
कोतवाली क्षेत्र अंतर्गत सिविल वार्ड 4 में भी एक १३ साल के बच्चे ने अज्ञात कारणों के चलते फंदे से झूलकर खुदकुशी कर ली थी। यह घटना रविवार की है। 13 वर्षीय पुत्र सारांश दुबे को गंभीर हालत में इलाज के लिए जिला अस्पताल लाया गया था, जहां डॉक्टरों ने उसे मृत घोषित कर दिया। आत्महत्या के कारण को जानने पुलिस जुटी हुई है।
यह बात सही है कि एंजाइटी और डिप्रेशन के मरीज बढ़ रहे हैं। इलाज के लिए विशेषज्ञ नहीं है। यहां हम अस्पताल में आत्महत्या करने की कोशिश करने वाले मरीजों व मन कक्ष में इलाज कराने वाले रोगियों की काउंसलिंग करते हैं और दवाएं देते हैं।