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मालाखेड़ा रेलवे स्टेशन का हो गया कायाकल्प, करण-अर्जुन फिल्म की हुई थी शूटिंग….पढ़ें यह न्यूज

रेलवे स्टेशन का निर्माण पत्थरों का उपयोग कर किया और यह पत्थर जमालपुर पंचायत के सताना गांव के पहाड़ों से लाए गए थे। विशेष बात यह थी कि पत्थर चुनाई में किसी भी प्रकार का सीमेंट या चूने का उपयोग नहीं किया गया। उस समय इस पहाड़ से पत्थर पर रॉयल्टी लगती थी, जो खनन विभाग से जारी होती थी।

अलवरApr 22, 2024 / 12:40 am

Ramkaran Katariya

मालाखेड़ा. स्थानीय रेलवे स्टेशन ब्रिटिश हुकूमत समय का बना है। जिसका कायाकल्प आधुनिक रूप से हो गया, लेकिन जनता की मांग पर यहांं रानीखेत और पूजा एक्सप्रेस ट्रेन का ठहराव नहीं हो पा रहा है। जिसका मलाल क्षेत्र के लोगों को है।
रियासत काल के समय इस रेलवे स्टेशन का निर्माण पत्थरों का उपयोग कर किया और यह पत्थर जमालपुर पंचायत के सताना गांव के पहाड़ों से लाए गए थे। विशेष बात यह थी कि पत्थर चुनाई में किसी भी प्रकार का सीमेंट या चूने का उपयोग नहीं किया गया। उस समय इस पहाड़ से पत्थर पर रॉयल्टी लगती थी, जो खनन विभाग से जारी होती थी। इतना ही नहीं मालाखेड़ा रेलवे स्टेशन से जयपुर सहित अन्य रेलवे स्टेशन के निर्माण के लिए यहां से पत्थर मालगाड़ी में लगेज होकर जाते थे। मालाखेड़ा रेलवे स्टेशन के समीप ही कृषि उपज मंडी तक रेलवे की लाइन बिछी हुई थी, जहां से पत्थर के अलावा हाथ वाली चक्की, मसाला पीसने के शिलापट्ट भी यहां से पूर्वी राजस्थान के लिए लदान होकर जाते रहे है, जिससे रेलवे विभाग को भाड़े के रूप में आय होती रही।
ट्रेन छूटने की घंटी बजने का सीन किया कैद

1995 में रिलीज हुई करण-अर्जुन फिल्म के निर्माण के दौरान मालाखेड़ा रेलवे स्टेशन में ट्रेन छूटने की घंटी बजने वाला तथा ट्रेन रवाना होने का सीन यहीं से फिल्माया गया था। उस सीन से मालाखेड़ा रेलवे स्टेशन पूरे देश में प्रसिद्ध हुआ। यहां रियासत काल समय के रिकॉर्ड के अनुसार ब्रिटिश हुकूमत समय के बने इस स्टेशन पर अलवर के स्टेशन से मालाखेड़ा स्टेशन तक अलवर रियासत के राज ऋषि सवाईजय सिंह ने भी कई बार यात्रा की और वह मालाखेड़ा से बीजवाड़ नरूका सहित नाहर शक्ति धाम, पांडुपोल तक भ्रमण के लिए आते रहे हैं।
अब हुए कई कार्य

पुराने समय के मालाखेड़ा रेलवे स्टेशन का अब कायाकल्प आधुनिक रूप से हुआ है। जहां दो प्लेटफार्म, दो पटरी तथा विद्युतीकरण का कार्य हो चुका है। रेलवे स्टेशन भी एयर कंडीशन बनाया गया है। मालाखेड़ा रेलवे स्टेशन का कोड एमकेएच के नाम से है। समुद्र तल से इसकी ऊंचाई 264 मीटर यानी 866 फीट के करीब है। इस स्टेशन का संचालन उत्तर पश्चिम रेलवे के माध्यम से होता है, जिसका पूरा संधारण भारत रेलवे के अधीन है।
एयर कंडीशनर के समान ही ठंडा रहता था

सताना के पहाड़ से निकाले गए पत्थर से निर्मित यह रेलवे स्टेशन एयर कंडीशनर के समान ही ठंडा रहता था तथा ट्रेन के आवागमन के दौरान तेजी के धड़-धडाहट से किसी भी प्रकार का कंपन स्टेशन की बिल्डिंग में नहीं होता था। मालाखेड़ा उपखंड क्षेत्र के गोविंदसहाय व्यास, राजेंद्र व्यास, रामबाबू शर्मा, मूलचंद जाट, लालाराम सैनी, सुरेश चंद गुप्ता, जय रघुवीर गुप्ता आदि का कहना है कि पुराने रेलवे स्टेशन भवन को तोड़कर नया बनाया गया है। आधुनिक रूप भी दिया है, लेकिन क्षेत्र की बढ़ती जनसंख्या, धंधे, मजदूरी व यात्रीभार को लेकर यहां पर दो ट्रेन रोकने की मांग काफी समय से चल रही है, जिसमें प्रमुख रूप से रानीखेत और पूजा एक्सप्रेस के मालाखेड़ा स्टेशन पर ठहराव को लेकर क्षेत्र के विभिन्न संगठनों ने अलवर के सांसद रहे बालक नाथ, चांदनाथ तथा डीआरएम तक प्रयास किया, लेकिन दोनों ट्रेनों का ठहराव मालाखेड़ा पर नहीं हुआ। क्षेत्र के सभी लोगों का कहना है कि पहले पहाड़ी क्षेत्र के पत्थर अन्य प्रदेशों को जाते थे, जिससे रेलवे को आय होती थी। अब खनन का कार्य बंद होने से रेलवे स्टेशन के समीप स्थित कंपनी का कार्यालय भी बंद पड़ा है। मालाखेड़ा रेलवे स्टेशन पर ट्रेन का ठहराव बहुत जरूरी है।

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