राजस्थान के सीकर जिले के कूदन गांव में 1935 में हुए गोलीकांड का सच ब्रिटिश संसद में छिपाया गया था। संसद में पेश रिपोर्ट में ब्रिटिश हुकूमत ने केवल चार किसानों की मौत का जिक्र किया था। जबकि उस समय देश- विदेश के समाचार पत्रों में छपी खबरों में 37 किसानों के शहीद होने का जिक्र है। बीकानेर अभिलेखाकार में मिली एक पोस्टमार्टम रिपोर्ट भी मौत का आंकड़ा ज्यादा होने की पुष्टि कर रही है। ऐसे में अंदाजा लगाया जा सकता है कि कूदन कांड में किस हद तक कू्ररता हुई थी।
इन समाचार पत्रों में मिले प्रमाण
कूदन गोलीकांड में 37 किसानों के शहीद होने के प्रमाण कई समाचार पत्रों में मिले हैं। 9 अप्रेल 1935 के विश्वामित्र समाचार पत्र में गोलीकांड में 37 किसानों के मरने व 100 को गिरफ्तार किए जाने की खबर छपी। इसी समाचार पत्र में 8 मई को राजपूताना सेंट्रल इंडिया पीपुल्स सोसायटी के मंत्रियों द्वारा वायसराय और राजनीतिक मंत्री के नाम भेजे तार में भी 37 मौत व 200 जाटों के घायल होने की बात लिखी। इसी तरह 30 अप्रेल 1935 को न्यूजीलेंड से प्रकाशित न्यूजीलेंड हेराल्ड के समाचार की हेडलाइन भी ‘क्लेश इन इंडिया, 37 पीसेंन्ट्स किल्ड, अटैक ऑन टेक्स कलेक्टर्स‘ थी। इनके अलावा महाराष्ट्र के अकोला से प्रकाशित नव राजस्थान सहित अन्य 20 से ज्यादा समाचार पत्रों में कूदन आंदोलन में 37 किसानों के मरने की खबरें प्रकाशित हुई थी।पोस्टमार्टम रिपोर्ट में आया नए शहीद का नाम
कूदन कांड को लेकर लोगों के जहन में भी गोठड़ा भूकरान निवासी तुलछाराम भूकर, टीकूराम भूकर, चेताराम भूकर व अजीतपुरा निवासी आशाराम पिलानिया के नाम है। जबकि बीकानेर के अभिलेखागार में मिली एक पोस्टमार्टम रिपोर्ट में कूदन नरसंहार में धनिया पुत्र घड़सी जाट नाम के शख्स की मौत का जिक्र है। जिसका नाम ना तो ब्रिटिश संसद में पेश रिपोर्ट में था और ना ही उस समय चौधरी छोटूराम के हवाले से हिंदूस्तान टाइम्स में प्रकाशित 12 शहीदों की सूची में था।कई आंदोलनकारी हुए गायब, नहीं हुई जांच
कूदन गोलीकांड जयपुर स्टेट के जरिए ब्रिटिश सरकार के लिए लगान वसूली के खिलाफ किसानों का आंदोलन था। जिसमें कूदन में 21 गांवों के लोगों द्वारा लगान का विरोध करने पर सीकर के तत्कालीन पुलिस प्रभारी मेजर मलिक मोहम्मद की अगुआई में किसानों पर गोलियां बरसाई गई। तत्कालीन लेखों के अनुसार घटना में 37 आंदोलनकारी शहीद व 104 गिरफ्तार हुए। मामले की जांच व न्याय के लिए देशभर से आवाज उठी। पर ब्रिटिश सरकार ने कोई कार्यवाही नहीं की। उल्टे ब्रिटिश संसद में भी आंदोलन में चार किसानों की मौत की ही रिपोर्ट पेश की गई। अरविंद भास्कर, इतिहासकार व प्रधानाचार्य राउमावि लालासी, सीकर