चिडिय़ा रानी दाना खाओ
एक नगर में दो भाई रहते थे। मदन और मोहन। दोनों को पशु-पक्षियों से बड़ा लगाव था। वे हर रोज खुले मैदान में जाकर चिडिय़ा को दान डालते। उन्हें ऐसा करना बहुत अच्छा लगता था। चिडिय़ा का मधुर स्वर दोनों को बहुत पसंद था। वे गरीब थे। उनके पिता मुश्किल से उनके परिवार के लिए दो वक्त की रोटी कमाते थे। मगर वे दोनों अपने हिस्से का थोड़ा अनाज अलग करके चिडिय़ा और कबूतरों के लिए रखते थे।
एक नगर में दो भाई रहते थे। मदन और मोहन। दोनों को पशु-पक्षियों से बड़ा लगाव था। वे हर रोज खुले मैदान में जाकर चिडिय़ा को दान डालते। उन्हें ऐसा करना बहुत अच्छा लगता था। चिडिय़ा का मधुर स्वर दोनों को बहुत पसंद था। वे गरीब थे। उनके पिता मुश्किल से उनके परिवार के लिए दो वक्त की रोटी कमाते थे। मगर वे दोनों अपने हिस्से का थोड़ा अनाज अलग करके चिडिय़ा और कबूतरों के लिए रखते थे।
सूरज उगते ही दोनों भाई चिडिय़ा को अनाज देने मैदान पहुंच जाते थे। वे दोनों चिडिय़ा के साथ-साथ बाकी जानवरों को भी उनका मनपसंद खाना देते थे। मदन और मोहन के घर गाय थी। वे उसका भी खयाल रखते थे। हर कोई उनके इस काम की तारीफ करता था और सबक लेता था कि पशु-पक्षियों का खयाल रखना चाहिए। ज्यादातर लोग स्वार्थ के कारण हर चीज का उपयोग खुद के लिए ही कर रहा है।
वनिशा वैष्णव, उम्र-12 वर्ष
…………………………………………………………………………………………………………………… पक्षियों की प्यारी दुनिया
रवि और मोहन बचपन के बहुत अच्छे दोस्त थे। दोनों को पक्षियों से बहुत प्यार था। रवि के घर के पास एक बड़ा बगीचा था, जहां हर रोज कई तरह के पक्षी आते थे। रवि और मोहन ने तय किया कि वे हर दिन पक्षियों को दाना डालेंगे और उनके साथ समय बिताएंगे।एक दिन रवि अपने घर से एक थाली में दाने लेकर आया और मोहन के साथ बगीचे में गया। मोहन ने दाने थाली में रखे और धीरे-धीरे उन्हें जमीन पर बिखेरने लगा। जैसे ही दाने जमीन पर गिरे, कई रंग-बिरंगे पक्षी वहां आ गए। कुछ लाल, कुछ पीले और कुछ हरे रंग के पक्षी उछलते-कूदते हुए दाने खाने लगे।
…………………………………………………………………………………………………………………… पक्षियों की प्यारी दुनिया
रवि और मोहन बचपन के बहुत अच्छे दोस्त थे। दोनों को पक्षियों से बहुत प्यार था। रवि के घर के पास एक बड़ा बगीचा था, जहां हर रोज कई तरह के पक्षी आते थे। रवि और मोहन ने तय किया कि वे हर दिन पक्षियों को दाना डालेंगे और उनके साथ समय बिताएंगे।एक दिन रवि अपने घर से एक थाली में दाने लेकर आया और मोहन के साथ बगीचे में गया। मोहन ने दाने थाली में रखे और धीरे-धीरे उन्हें जमीन पर बिखेरने लगा। जैसे ही दाने जमीन पर गिरे, कई रंग-बिरंगे पक्षी वहां आ गए। कुछ लाल, कुछ पीले और कुछ हरे रंग के पक्षी उछलते-कूदते हुए दाने खाने लगे।
रवि एक छोटे से पक्षी को अपने हाथ पर बैठा कर बड़े ध्यान से देख रहा था जबकि मोहन खुशी से उन्हें दाना खिलाने में व्यस्त था। पक्षियों के साथ खेलते-खेलते दोनों को बहुत खुशी मिलती थी। वे हर दिन उनके लिए दाने लाते और उनके उडऩे, चहचहाने और खेलते हुए देख आनंदित होते। धीरे-धीरे पक्षियों को भी इन बच्चों की आदत हो गई और वे बिना डरे उनके पास आकर बैठने लगे। रवि और मोहन ने सीखा कि जानवरों और पक्षियों के साथ प्रेमपूर्वक व्यवहार करने से न केवल खुशी मिलती है, बल्कि वे भी हमारी दोस्ती को समझते हैं। इस तरह बगीचे में पक्षियों के साथ उनकी यह छोटी-सी दुनिया बहुत सुंदर और शांतिमय हो गई।
पूर्विका जांगिड़, उम्र – 10 साल
…………………………………………………………………………………………………………………… छोटी सी चिडिय़ा
एक समय की बात है। दो भाई रोहित और रोहन थे। रोहित बड़ा और रोहन छोटा भाई था। रोहित बारह एवं रोहन सात साल का था। दोनों को अपने घर के बगीचे मे आने वाली चिडिय़ां को दाना खिलाना बहुत पसंद था। रोज जल्दी उठकर वे चिडिय़ां को दाना खिलाते थे। एक दिन वे खेल रहे थे, तभी उनकी निगाह एक घायल चिडिय़ा पर पड़ी।
…………………………………………………………………………………………………………………… छोटी सी चिडिय़ा
एक समय की बात है। दो भाई रोहित और रोहन थे। रोहित बड़ा और रोहन छोटा भाई था। रोहित बारह एवं रोहन सात साल का था। दोनों को अपने घर के बगीचे मे आने वाली चिडिय़ां को दाना खिलाना बहुत पसंद था। रोज जल्दी उठकर वे चिडिय़ां को दाना खिलाते थे। एक दिन वे खेल रहे थे, तभी उनकी निगाह एक घायल चिडिय़ा पर पड़ी।
रोहित ने उस चिडिय़ा को उठाया और दोनों मिलकर उसे घर ले आए। दोनों ने मिलकर मां से पूछकर दवाई लगाई। दाना और पानी दिया और उसका बहुत ध्यान रखा। कुछ दिनों बाद ठीक होने पर चिडिय़ा को उन्होंने आजाद कर दिया। कॉलोनी में सबने रोहित और रोहन की प्रशंसा की। इस कहानी से हमें शिक्षा मिलती है कि हमें दूसरों की मदद करनी चाहिए और सबके प्रति संवेदनशील होना चाहिए।
ध्रुवी बंसल, उम्र- 8 वर्ष
…………………………………………………………………………………………………………………… चिडिय़ा का दाना
रोहन और मोनु दो दोस्त थे। वे एक दिन एक पार्क में खेल रहे थे। वहां के हरे-भरे पेड़ और खूबसूरत फूलों ने उनका मन मोह लिया था। खेलते-खेलते उन्होंने देखा कि पार्क में कई पक्षी भी थे, जो भोजन की तलाश में इधर-उधर उड़ रहे थे। रोहन ने मोनु से कहा, मोनु, देखो! ये पक्षी भूखे हैं। क्यों न हम उन्हें कुछ खाना दें। दोनों घर से अनाज ले आए। उन्होंने पक्षियों के लिए अनाज बिखेर दिया। पक्षी दाना चुगने लगे।
…………………………………………………………………………………………………………………… चिडिय़ा का दाना
रोहन और मोनु दो दोस्त थे। वे एक दिन एक पार्क में खेल रहे थे। वहां के हरे-भरे पेड़ और खूबसूरत फूलों ने उनका मन मोह लिया था। खेलते-खेलते उन्होंने देखा कि पार्क में कई पक्षी भी थे, जो भोजन की तलाश में इधर-उधर उड़ रहे थे। रोहन ने मोनु से कहा, मोनु, देखो! ये पक्षी भूखे हैं। क्यों न हम उन्हें कुछ खाना दें। दोनों घर से अनाज ले आए। उन्होंने पक्षियों के लिए अनाज बिखेर दिया। पक्षी दाना चुगने लगे।
रोहन ने कहा, “देखो, मोनु! पक्षी हमें धन्यवाद दे रहे हैं।” मोनु ने कहा, “हां, रोहन! हमने उनकी मदद की और वे खुश हैं। दोनों दोस्त पक्षियों के साथ खेलने लगे। उन्होंने पक्षियों को पानी भी पिलाया। उस दिन रोहन और मोनु ने सीखा कि मदद करना और दूसरों की खुशी में शामिल होना कितना अच्छा लगता है।
देवांश शर्मा, उम्र- 13 साल
…………………………………………………………………………………………………………………… सबका भला हो
एक घर में दो भाई रहते थे। एक भाई का नाम मदन था और दूसरे भाई का नाम मोहन था। वह दोनों भाई हमेशा मिल-जुलकर रहते थे। एक बार की बात है। दोनों भाई कहीं बाहर घूमने गए। वे जिस जगह पर गए थे, वह जगह बहुत खूबसूरत थी। वह दोनों भाई पकड़म-पकडाई खेल रहे थे। तभी उन्हें दोनों भाइयों को एक चिडिय़ा दिखाई दी। वह चिडिय़ा अकेली बैठी थी। वह उस चिडिय़ा को उसके परिवार से मिलाना चाहते थे, लेकिन उनको कोई उपाय नहीं सूझ रहा था।
…………………………………………………………………………………………………………………… सबका भला हो
एक घर में दो भाई रहते थे। एक भाई का नाम मदन था और दूसरे भाई का नाम मोहन था। वह दोनों भाई हमेशा मिल-जुलकर रहते थे। एक बार की बात है। दोनों भाई कहीं बाहर घूमने गए। वे जिस जगह पर गए थे, वह जगह बहुत खूबसूरत थी। वह दोनों भाई पकड़म-पकडाई खेल रहे थे। तभी उन्हें दोनों भाइयों को एक चिडिय़ा दिखाई दी। वह चिडिय़ा अकेली बैठी थी। वह उस चिडिय़ा को उसके परिवार से मिलाना चाहते थे, लेकिन उनको कोई उपाय नहीं सूझ रहा था।
अचानक से मदन को अपनी मां की बात याद आई। उनकी मां ने कहा था, मैं कुछ गेहूं के दाने रख रही हूं, अगर तुम्हें कोई पक्षी दिखे तो उसे यह गेहूं के दाने खिला देना। मदन ने यह बात मोहन को याद दिलाई। मदन और मोहन को एक साथ एक उपाय सूझा। वे दोनों चिडिय़ा के लिए दाना डालने लगे। कुछ ही देर बाद कुछ चिडिय़ां वहां आ गईं और वह चिडिय़ा भी दाने चुगने लगी। मदन और मोहन उनके साथ खेलने लगे और जब वह सारी चिडिय़ां दाना चुग कर उड़ गईं, तो उन्ही चिडिय़ों के साथ वह बिछड़ी हुई चिडिय़ा भी उड़ गई। इस कहानी से शिक्षा मिलती है कि सबकी भलाई के बारे में सोचना चाहिए।
भव्या शर्मा, उम्र -9 वर्ष
…………………………………………………………………………………………………………………… प्यारे-प्यारे पक्षी
दो भाई थे, मोहित और रोहित। हर रविवार घंटों बाहर खेलते रहते थे। एक दिन अपने बाग में आई कुछ चिडिय़ों को दाना चुगने के लिए डाल रहे थे। तभी मोहित ने रोहित से कहा, यह देखो भाई कितनी प्यारी प्यारी चिडिय़ां है और दाना भी कितनी तेजी से खा रही हैं। तभी वे देखते हैं कि एक चिडिय़ा उड़ नहीं पा रही थी।
…………………………………………………………………………………………………………………… प्यारे-प्यारे पक्षी
दो भाई थे, मोहित और रोहित। हर रविवार घंटों बाहर खेलते रहते थे। एक दिन अपने बाग में आई कुछ चिडिय़ों को दाना चुगने के लिए डाल रहे थे। तभी मोहित ने रोहित से कहा, यह देखो भाई कितनी प्यारी प्यारी चिडिय़ां है और दाना भी कितनी तेजी से खा रही हैं। तभी वे देखते हैं कि एक चिडिय़ा उड़ नहीं पा रही थी।
वे उसके पास गए और देखा कि उसके पंख के ऊपर एक पत्थर गिरा हुआ था। पत्थर हटाते हैं और उसे सहलाते हैं। थोड़ी देर बाद वही चिडिय़ा उनके लिए पेड़ से फल गिराने लगी। उन्होंने फलों को इक_ा कर लिया। उसी बीच उनकी मां ने उन्हें पुकारा। घर जाकर पूरी बात बताई। मां ने उनकी पीठ थपथपाई और कहा ऐसे ही सबकी मदद करते रहना। दोनों बहुत खुश हो गए।
प्रबीर लाहोटी, उम्र – 10 वर्ष
……………………………………………………………………………………………………………….. चहचहातीं चिडिय़ां
एक समय की बात है। दो दोस्त थे। एक-दूसरे से बहुत प्यार करते थे। दोनों पक्षियों से भी बहुत प्यार करते थे। रोजाना वे बगीचे में खेलने जाते थे। एक दोस्त पक्षियों को दाना खिलाता था, जबकि दूसरा उन्हें प्यार करता था। वे बदल-बदल कर यह काम करते थे। दिन एक दोस्त दाना खिलाता और दूसरा प्यार करता, तो अगले दिन दूसरा दाना खिलाता और पहला दोस्त प्यार करता। बगीचे में जो पक्षी आते थे।
……………………………………………………………………………………………………………….. चहचहातीं चिडिय़ां
एक समय की बात है। दो दोस्त थे। एक-दूसरे से बहुत प्यार करते थे। दोनों पक्षियों से भी बहुत प्यार करते थे। रोजाना वे बगीचे में खेलने जाते थे। एक दोस्त पक्षियों को दाना खिलाता था, जबकि दूसरा उन्हें प्यार करता था। वे बदल-बदल कर यह काम करते थे। दिन एक दोस्त दाना खिलाता और दूसरा प्यार करता, तो अगले दिन दूसरा दाना खिलाता और पहला दोस्त प्यार करता। बगीचे में जो पक्षी आते थे।
वे उन्हें प्यारे लगते थे। कु छ येलो होते, कुछ ब्लू और कुछ पर्पल। उनकी पक्षियों से दोस्ती हो गई थी। उनके बगीचे में पहुंचते ही पक्षी उड़ते हुए आ जाते। दोस्तों ने पक्षियों से एक खास रिश्ता बना लिया था। जब भी वे दाना डालते, पक्षी खुशी-खुशी उसे खाने लगते और चहचहाने लगते। उन्हें भी बहुत खुशी मिलती। इससे शिक्षा मिलती है कि हमें पशु हो या पक्षी सभी की परवाह करनी चाहिए।
ओबलेश प्रजापत, उम्र- 10 वर्ष
……………………………………………………………………………………………………………….. पक्षियों के दोस्त
रवि और मोहन भाई थे और उन्हें प्रकृ ति से बहुत प्यार था। एक दिन वे पार्क में घूमने गए और उन्होंने देखा कि वहां बहुत सारे छोटे पक्षी उड़ रहे थे। रवि ने सोचा कि इन पक्षियों को करीब से देखने का कितना अच्छा अनुभव होगा। उसने मोहन से कहा, चलो, हम इनके लिए कु छ दाना लाते है। दोनों भाई घर से थोड़ा दाना लेकर आए।
……………………………………………………………………………………………………………….. पक्षियों के दोस्त
रवि और मोहन भाई थे और उन्हें प्रकृ ति से बहुत प्यार था। एक दिन वे पार्क में घूमने गए और उन्होंने देखा कि वहां बहुत सारे छोटे पक्षी उड़ रहे थे। रवि ने सोचा कि इन पक्षियों को करीब से देखने का कितना अच्छा अनुभव होगा। उसने मोहन से कहा, चलो, हम इनके लिए कु छ दाना लाते है। दोनों भाई घर से थोड़ा दाना लेकर आए।
मोहन ने एक थाली में दाना बिखेरा और देखते ही देखते कुछ रंग-बिरंगे पक्षी वहां आकर बैठ गए। रवि ने ध्यान से एक पक्षी को अपने हाथ में उठा लिया और उसकी कोमलता महसूस की। मोहन ने भी कोशिश की और जल्द ही दोनों पक्षियों के साथ खेलने लगे। पक्षियों के साथ बिताए वे पल उनके लिए बहुत खास थे। रवि और मोहन ने सीखा कि छोटे-छोटे जीवों के साथ मिल-जुलकर रहना कितना सुकून भरा है। जब वे पक्षियों को वापस उड़ते देखते, तो उन्हें संतोष महसूस होता।
वेदांश राठौड़, उम्र- 9 वर्ष
…………………………………………………………………………………………………………………… गहरी मित्रता
एक गांव में एक किसान रहता था। वह गांव के बाहर एक खुले मैदान में बगीचे के पास नदी के किनारे रोज पक्षियों को दाना खिलाने जाता था। उसका मानना था कि ‘खाया सो खोया, खिलाया सो पाया। उसके दो बेटे थे। उनके नाम रोहित और मोहित थे। रोहित बड़ा और समझदार था, जबकि मोहित छोटा और नासमझ बालक था। रोहित रोज अपने पिता के साथ पक्षियों को दाना खिलाने जाता था और उनके साथ खेलता था। कु छ समय बाद पिता ने यह पूरा काम रोहित को ही सौंप दिया। रोहित प्रतिदिन पक्षियों को दाना खिलाता था, क्योंकि यह काम उसने अपने पिता से सीखा था।
…………………………………………………………………………………………………………………… गहरी मित्रता
एक गांव में एक किसान रहता था। वह गांव के बाहर एक खुले मैदान में बगीचे के पास नदी के किनारे रोज पक्षियों को दाना खिलाने जाता था। उसका मानना था कि ‘खाया सो खोया, खिलाया सो पाया। उसके दो बेटे थे। उनके नाम रोहित और मोहित थे। रोहित बड़ा और समझदार था, जबकि मोहित छोटा और नासमझ बालक था। रोहित रोज अपने पिता के साथ पक्षियों को दाना खिलाने जाता था और उनके साथ खेलता था। कु छ समय बाद पिता ने यह पूरा काम रोहित को ही सौंप दिया। रोहित प्रतिदिन पक्षियों को दाना खिलाता था, क्योंकि यह काम उसने अपने पिता से सीखा था।
जब भी वह पक्षियों को दाना देता, पक्षी उसके कंधे या हाथ पर आकर बैठ जाते थे। इस प्रकार दोनों में गहरी मित्रता हो गई। एक दिन मोहित ने अपने बड़े भाई को पक्षियों के साथ खेलते हुए देखा। उसका भी पक्षियों के साथ खेलने का मन करने लगा। जब उसने यह बात अपने बड़े भाई रोहित को बताई, तो रोहित ने मोहित को भी पक्षियों को दाना खिलाने के लिए कहा। अगले दिन मोहित भी रोहित के साथ पक्षियों को दाना खिलाने आया। इस तरह वह रोज अपने भाई के साथ आने लगा। धीरे-धीरे पक्षी मोहित के भी दोस्त बन गए।
युग यादव, उम्र- 13 साल …………………………………………………………………………………………………………………… प्यारी दोस्त
दो भाई थे। दोनों को पक्षियों से बड़ा प्यार था। दोनों रोज पार्क जाते थे। पक्षियों के लिए दाना लेकर जाते थे। वहां जाकर उनको दाना खिलाते। दाना खिलाते-खिलाते एक चिडिय़ा रोज उन दोनों के कंधे पर आकर बैठ जाती। उनके चारों तरफ मंडराती। कभी हाथ पर बैठ जाती। यह देखकर दोनों को बहुत अच्छा लगता था। इसलिए वे नियमित पार्क जाते थे। एक दिन ऐसा हुआ कि चिडिय़ा उनके पास नहीं आई। वे सोचने लगे कि आखिर उनकी प्यारी दोस्त को क्या हुआ।
दो भाई थे। दोनों को पक्षियों से बड़ा प्यार था। दोनों रोज पार्क जाते थे। पक्षियों के लिए दाना लेकर जाते थे। वहां जाकर उनको दाना खिलाते। दाना खिलाते-खिलाते एक चिडिय़ा रोज उन दोनों के कंधे पर आकर बैठ जाती। उनके चारों तरफ मंडराती। कभी हाथ पर बैठ जाती। यह देखकर दोनों को बहुत अच्छा लगता था। इसलिए वे नियमित पार्क जाते थे। एक दिन ऐसा हुआ कि चिडिय़ा उनके पास नहीं आई। वे सोचने लगे कि आखिर उनकी प्यारी दोस्त को क्या हुआ।
वे इधर-उधर उसे देखने लगते हैं। तभी उन्होंने देखा चिडिय़ा को चोट लगी है। वे तुरंत घर गए और अपने माता-पिता के साथ उसे पक्षियों के डॉक्टर के पास ले गए। जहां उन्होंने उसका इलाज किया। फिर उसे घर ले आए। कुछ दिन में जब वह ठीक हो गई, तो उसे वापस पार्क में छोड़ दिया। उसने उड़ान भरी और फिर हम हमारे कंधों पर आकर बैठ गई।
निकिता कुमावत , उम्र- 13 साल