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पन्ना की मैं गंगा… पुराणों में मेरा वर्णन, प्रदूषित होकर अब अंतिम सांसें गिन रही हूं, मुझे बचा लो

अनदेखी से दम तोड़ रही जीवनदायिनी किलकिला नदी पन्ना. पन्ना की मैं गंगा हूं, पुराणों में मेरा वर्णन है। एक समय मेरा जल बीमारों के लिए दवा का काम करता था, लोग सात समंदर पार मेरा जल ले जाकर घरों में श्रद्धा-आस्था के साथ रखते थे। कभी गोताखोर अमराई घाट पर डुबकियां लगाते थे, कल-कल […]

पन्नाJun 09, 2024 / 07:39 pm

Anil singh kushwah

अनदेखी से दम तोड़ रही जीवनदायिनी किलकिला नदी

अनदेखी से दम तोड़ रही जीवनदायिनी किलकिला नदी

अनदेखी से दम तोड़ रही जीवनदायिनी किलकिला नदी

पन्ना. पन्ना की मैं गंगा हूं, पुराणों में मेरा वर्णन है। एक समय मेरा जल बीमारों के लिए दवा का काम करता था, लोग सात समंदर पार मेरा जल ले जाकर घरों में श्रद्धा-आस्था के साथ रखते थे। कभी गोताखोर अमराई घाट पर डुबकियां लगाते थे, कल-कल जल प्रवाहित होता था। अब घाट में कीचड़ बचा है, धार टूट गई है। गंदे नालों-नालियों का पानी मुझमें मिलाया जाने लगा। मैं प्रदूषित हो गई हूं, लोग अब मेरा जल छूने से भी डरने लगे हैं। लोग अब मेरी ओर झांकने भी नहीं आते हैं, मैं अंतिम सांस गिन रही हूं। मुझे बचा लो, मैं फिर जीवनदायिनी बन जाउंगी। किलकिला नदी यदि अपना दर्द बयां कर पाती को कुछ इस तरह बोलती।
गंदे-नाले-नालियों ने किया प्रदूषित
किलकिला नदी का उद्गम पन्ना जिले की बहेरा के निकट छापर टेक पहाड़ी पर है। किलकिला का उद्गम और विसर्जन दोनों पन्ना जिले में है। यह पूर्व दिशा से पश्चिम को बहती है। पन्ना के सलैया और भापतपुर के बीच में केन नदी में मिल जाती है। पन्ना पहुंचने के पहले नदी की हालत कुछ ठीक है लेकिन पन्ना शहर के गंदे-नाले और नालियों का पानी इसमें मिलता है। गंदे पानी की वजह से किलकिला प्रदूषित हो जाती है। प्रदूषित पानी का उपयोग स्वास्थ्य के लिए खतरनाक हो सकता है। नदी के प्रदूषण का हाल यह है कि ठंड के मौसम में पानी में जगह-जगह सफेद झाग बनने लगता है। किलकिला जल प्रपात के पहले इस तरह के अनेक जगह पर झाग बनते हैं। लोगों ने नदी के पानी का उपयोग तो दूर छूना भी बंद कर दिया है।
प्रणामी सम्प्रदाय के लोग घर ले जाते थे जल
धर्म उपदेशक खेमराज शर्मा ने बताया, प्रणामी सम्प्रदाय के लोगों के लिए किलकिला नदी गंगा की तरह पूज्य है। मान्यता है कि निजानन्द सम्प्रदाय के प्राणनाथजी संवत 1684 में किलकिला नदी के तट पर आए थे। नदी के तट पर पहुंचकर स्नान करना चाहा तो स्थानीय आदिवासियों ने उन्हें रोक दिया था। आदिवासियों का कहना था कि नदी का जल विषैला है, इसके ऊपर से गुजरने वाले पक्षी भी मृत हो जाते हैं। लेकिन प्राणनाथ के अंगूठे के स्पर्श मात्र से यह विषैला जल अमृत हो गया। वह स्थान आज भी अमराई घाट के नाम से जाना जाता है। यह स्थान पवित्र स्थल माना जाता है। फिर प्राणनाथ यही बस गए, प्रणामी सम्प्रदाय के लोगों के लिए यह स्थान किसी तीर्थ स्थल से कम नहीं है। दुनियाभर में फैले प्रणामी सम्प्रदाय के लोग नदी का जल ले जाते थे।
तालाबों को भरने के थे पुख्ता इंतजाम
बारिश के दौरान किलकिला नदी के पानी को व्यर्थ बहने से रोककर उससे नगर के तालाबों को भरने के लिए किलकिला फीडर और उसकी नहर बनाई गई थी। प्राचीन काल में ही बारिश के पानी से इन तालाबों को भी भरने की पुख्ता व्यवस्था की गई थी। जिम्मेदारों ने इस ओर ध्यान देना बांद कर दिया तो धीरे-धीरे किलकिला फीटर टूट गया और इसकी नहर पर लोगों ने अतिक्रमण कर लिया।
सामूहिक प्रयास की आवश्यकता
किलकिला नदी को प्रणामी सम्प्रदाय में गंगा की तरह पूज्य माना गया है। नदी को बचाने के लिए सामूहिक प्रयास की आवश्यकता है, सभी को आगे आना होगा। सभी को अपनी जिम्मेदारी समझना होगा, तभी किलकिला नदी का पुराना स्वरूप लौट सकता है। खेमराज शर्मा, धर्म उपदेशक
किलकिला को प्रदूषण से बचाने के लिए हम लगातार प्रयास कर रहे हैं। वॉटर ट्रीटमेंट प्लांट प्रस्तावित है, गंदे नाले-नालियों का पानी किलकिला में सीधे मिलने से रोक जाएगा। जिससे नदी प्रदूषित होने से बचेगी, आम लोग पानी का उपयोग कर पाएंगे।बृजेंद्र प्रताप, विधायक पन्ना
किलकिला में मिलने वाले गंदे नाले-नालियों का पानी रोकने के लिए वाटर ट्रीटमेंट प्लांट प्रस्तावित है। इसके अलावा किलकिला फीडर का काम भी तेज गति से चल रहा है। शहरवासियों को जल्द ही पर्याप्त जलापूर्ति की जा सकेगी।
सुरेश कुमार, कलेक्टर पन्ना

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