उमा प्रजापति, भोपाल।
अंधे कत्ल या लावारिस लाशों की शिनाख्त करना अब आसान होगा। अब तक पुलिस को मृतक की पहचान करने में लंबी प्रक्रिया और काफी मशक्कत करनी पड़ती थी। कई बार तो मृतक की पहचान न होने के कारण उसे लावारिस मानते हुए अंतिम संस्कार तक करना पड़ता था। लेकिन नेशनल फॉरेंसिक यूनिवर्सिटी (एनएफएसयू) द्वारा विकसित किए गए एआई टूल्स ने मृतकों की पहचान के तरीकों को एक नया मोड़ दिया है।
अंधे कत्ल या लावारिस लाशों की शिनाख्त करना अब आसान होगा। अब तक पुलिस को मृतक की पहचान करने में लंबी प्रक्रिया और काफी मशक्कत करनी पड़ती थी। कई बार तो मृतक की पहचान न होने के कारण उसे लावारिस मानते हुए अंतिम संस्कार तक करना पड़ता था। लेकिन नेशनल फॉरेंसिक यूनिवर्सिटी (एनएफएसयू) द्वारा विकसित किए गए एआई टूल्स ने मृतकों की पहचान के तरीकों को एक नया मोड़ दिया है।
एआई तकनीक से आसान होगी पहचान
आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस (एआई) टूल्स की मदद से मृत व्यक्ति की आंखें खोलना अब संभव हो गया है, जिससे उनकी पहचान करना आसान हो सकेगा। नेशनल फॉरेंसिक यूनिवर्सिटी द्वारा किए गए इस प्रयोग से यह साबित हुआ है कि एआई और मशीन लर्निंग तकनीकों के माध्यम से मृतकों के शरीर से महत्वपूर्ण जानकारी पुनः प्राप्त की जा सकती है।
आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस (एआई) टूल्स की मदद से मृत व्यक्ति की आंखें खोलना अब संभव हो गया है, जिससे उनकी पहचान करना आसान हो सकेगा। नेशनल फॉरेंसिक यूनिवर्सिटी द्वारा किए गए इस प्रयोग से यह साबित हुआ है कि एआई और मशीन लर्निंग तकनीकों के माध्यम से मृतकों के शरीर से महत्वपूर्ण जानकारी पुनः प्राप्त की जा सकती है।
आंखें बंद होने से होती है पहचान में दिक्कत
यूनिवर्सिटी के डायरेक्टर प्रो. (डॉ.) सतीश कुमार ने बताया कि एआई टूल्स की सहायता से मृतकों की आंखें खोलने की प्रक्रिया में स्वचालित उपकरणों और एल्गोरिदम का उपयोग किया जाता है। इससे बिना शारीरिक हस्तक्षेप के आंखें खोली जा सकती हैं। यह तकनीक मृतक के चेहरे की पहचान करने, आंखों के रंग और अन्य विशेषताओं का विश्लेषण करने में मदद करती है, जिससे उनकी पहचान स्थापित करना आसान हो जाता है।
यूनिवर्सिटी के डायरेक्टर प्रो. (डॉ.) सतीश कुमार ने बताया कि एआई टूल्स की सहायता से मृतकों की आंखें खोलने की प्रक्रिया में स्वचालित उपकरणों और एल्गोरिदम का उपयोग किया जाता है। इससे बिना शारीरिक हस्तक्षेप के आंखें खोली जा सकती हैं। यह तकनीक मृतक के चेहरे की पहचान करने, आंखों के रंग और अन्य विशेषताओं का विश्लेषण करने में मदद करती है, जिससे उनकी पहचान स्थापित करना आसान हो जाता है।
जांच में मिलेगी बड़ी मदद
यूनिवर्सिटी के अधिकारियों ने बताया कि यह तकनीक विशेष रूप से उन मामलों में उपयोगी है, जहां मृतक की पहचान अज्ञात होती है या उनके चेहरे पर चोट के कारण पहचान करना मुश्किल हो जाता है। फॉरेंसिक साइंस लैब में एआई टूल्स के प्रयोग से विशेषज्ञों को तेजी से और सटीक परिणाम प्राप्त करने में सफलता मिली है। इससे जांच प्रक्रिया अधिक प्रभावी होगी।
यूनिवर्सिटी के अधिकारियों ने बताया कि यह तकनीक विशेष रूप से उन मामलों में उपयोगी है, जहां मृतक की पहचान अज्ञात होती है या उनके चेहरे पर चोट के कारण पहचान करना मुश्किल हो जाता है। फॉरेंसिक साइंस लैब में एआई टूल्स के प्रयोग से विशेषज्ञों को तेजी से और सटीक परिणाम प्राप्त करने में सफलता मिली है। इससे जांच प्रक्रिया अधिक प्रभावी होगी।
कैसे काम करती है यह तकनीक? यह अत्याधुनिक तकनीक स्वचालित उपकरणों और एल्गोरिदम का उपयोग करती है। बिना शारीरिक संपर्क के मृतक की आंखें खोली जा सकती हैं। आंखों की संरचना, रंग और विशेषताओं का विश्लेषण करके पहचान स्थापित की जाती है।
चेहरे की फेशियल रिकॉग्निशन तकनीक के जरिए मृतक का प्रोफाइल तैयार किया जाता है, जिससे पहचान की पुष्टि की जाती है। किन मामलों में है सबसे ज्यादा फायदेमंद? जब मृतक की पहचान अज्ञात हो।
चेहरे पर चोट या विकृति के कारण पहचान करना कठिन हो। गुमशुदा लोगों के मामलों में तेजी से परिणाम चाहिए हों। जांच ने होगा सुधार
नेशनल फॉरेंसिक यूनिवर्सिटी द्वारा विकसित यह तकनीक कानून प्रवर्तन एजेंसियों के लिए एक बड़ी उपलब्धि है। इससे मृतकों की पहचान की प्रक्रिया तेज और सटीक होने के साथ-साथ जांच में भी महत्वपूर्ण सुधार होगा।
नेशनल फॉरेंसिक यूनिवर्सिटी द्वारा विकसित यह तकनीक कानून प्रवर्तन एजेंसियों के लिए एक बड़ी उपलब्धि है। इससे मृतकों की पहचान की प्रक्रिया तेज और सटीक होने के साथ-साथ जांच में भी महत्वपूर्ण सुधार होगा।