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शहरों को नहीं मिल पाई है लैंडफिल साइटों से निजात

भारत के शहरी अपशिष्ट प्रबंधन परिदृश्य में लैंडफिल साइट अब भी चुनौती बनी हुई है। स्वच्छ भारत मिशन के तहत महत्त्वपूर्ण प्रगति के बावजूद, विरासत में मिले कचरे और लैंडफिल का एक बड़ा हिस्सा शहरों के लिए पर्यावरण, स्वास्थ्य और जगह की कमी पेश करता है। हालांकि प्रयास जारी हैं, मगर मौजूदा तरीके अपर्याप्त हैं।

जयपुरOct 08, 2024 / 08:32 pm

Gyan Chand Patni

प्रो. डी.पी. शर्मा
स्वच्छ भारत मिशन के पीएम द्वारा मनोनीत राष्ट्रीय ब्रांड एंबेसडर, संयुक्त राष्ट्र से जुड़े डिजिटल डिप्लोमेट
वर्ष 2024 तक स्वच्छ और खुले में शौच मुक्त भारत के महत्त्वाकांक्षी लक्ष्य के साथ वर्ष 2014 में शुरू किए गए स्वच्छ भारत अभियान ने निस्संदेह महत्त्वपूर्ण उपलब्धियां हासिल की हैं। हालांकि, एक दशक बाद, जब हम इसकी प्रगति का आकलन करते हैं, तो चुनौतियां भी नजर आती हैं। स्वच्छ भारत मिशन के तहत देश भर में लाखों शौचालयों का निर्माण किया गया है, जिससे सार्वजनिक स्वास्थ्य में सुधार हुआ है। यह विशेष रूप से ग्रामीण क्षेत्रों में प्रभावशाली रहा है, जहां स्वच्छता सुविधाओं तक पहुंच पहले सीमित थी। इसके अलावा, मिशन ने स्वच्छता और साफ-सफाई के बारे में जागरूकता बढ़ाई है, जिससे स्वच्छ प्रथाओं की ओर सांस्कृतिक बदलाव को बढ़ावा मिला है। इसका सबसे प्रमुख परिणाम तो यह रहा कि बच्चों और युवाओं में एक विशेष जागरूकता उत्पन्न हुई है। यद्यपि हम इसके लक्ष्यों से अभी बहुत दूर हैं। यूं तो सन 2021 में लॉन्च किए गए, स्वच्छ भारत मिशन अर्बन 2.0 का लक्ष्य 2025-2026 तक देश में लगभग 2,400 पुरानी लैंडफिल साइटों को साफ करने का था। यानी पुराने बड़े शहरों में 50 प्रतिशत लैंडफिल को साफ करने का लक्ष्य तय किया गया था।
हाल में आवास और शहरी मामलों के मंत्रालय द्वारा बनाए गए स्वच्छ भारत डैशबोर्ड ने 27 सितंबर को दिखाया कि 1 मिलियन से अधिक आबादी वाले शहरों में कुल 69 लैंडफिल साइटों में से 35 साइटों पर भूमि अभी तक साफ नहीं हो पाई है। यानी सरकारी आंकड़ों से पता चलता है कि पांच साल के स्वच्छ भारत मिशन शहरी 2.0 के तीन साल बाद भी बड़े शहरों ने अभी तक अपनी पुरानी लैंडफिल साइटों में से आधे में जमीन खाली नहीं की है। कुल डंप किए गए कचरे का केवल 38 प्रतिशत ही अब तक ठीक किया जा सका है। इसके अतिरिक्त आंकड़े बताते हैं कि देश के कुल 69 स्थलों में 1,258 लाख टन कचरे वाले कुल 3,354 एकड़ क्षेत्र में से, 475 लाख टन कचरे वाले 1,171 एकड़ क्षेत्र को ही अभी तक साफ किया गया है। अब दो साल से भी कम समय बचा है, जब शहरों की शेष 65 प्रतिशत भूमि को साफ करने और पुराने लैंडफिल स्थलों पर छोड़े गए 62 प्रतिशत कचरे को ठीक किया जाना बाकी है जो कि चुनौतीपूर्ण है। यानी बड़े शहरों की ये 69 साइटें देश में लैंडफिल में फेंके जाने वाले कुल कचरे का 57प्रतिशत हिस्सा है।
देश भर में, शहरों में चिह्नित कुल 2,421 विरासत लैंडफिल साइटें हैं जो 14,822 एकड़ भूमि में फैली हुई हैं। इनमें 2,211 लाख मीट्रिक टन कचरा है जिसमें से 41 प्रतिशत कचरे का निवारण कर दिया गया है और 30 प्रतिशत भूमि को पुन: प्राप्त कर लिया गया है। इन आंकड़ों से पता चलता है कि अब तक कुल लैंडफिल का लगभग 20 प्रतिशत (474) ही ठीक किया गया है। केंद्रीय आवास और शहरी मामलों के मंत्री मनोहर लाल खट्टर ने 13 सितंबर को कहा था कि सभी विरासती डंप साइटों को ठीक करने के लिए सफाई प्रक्रिया जारी है। प्रगति के बारे में एक अन्य सवाल का जवाब देते हुए उन्होंने कहा, ‘दो वर्ष में, 20 प्रतिशत साइटें पूरी तरह से साफ कर दी गई हैं मगर कुछ अन्य साइटें भी हैं जहां काम 50-70 प्रतिशत कार्य पूरा हो चुका है जो एक बड़ी सफलता को इंगित करता है। उम्मीद है कि यह काम अगले दो साल में पूरा हो जाएगा।’ भारत के शहरी अपशिष्ट प्रबंधन परिदृश्य में लैंडफिल साइट अब भी चुनौती बनी हुई है। स्वच्छ भारत मिशन के तहत महत्त्वपूर्ण प्रगति के बावजूद, विरासत में मिले कचरे और लैंडफिल का एक बड़ा हिस्सा शहरों के लिए पर्यावरण, स्वास्थ्य और जगह की कमी पेश करता है। हालांकि प्रयास जारी हैं, मगर मौजूदा तरीके अपर्याप्त हैं।
सेंटर फॉर साइंस में ठोस अपशिष्ट प्रबंधन और परिपत्र अर्थव्यवस्था के अधिकारी त्रिभुवन सिंह बिष्ट ने कहा कि पर्यावरण, परिवेश, पड़ोस, एवं परिस्थिति सबसे गंभीर चुनौती है, जहां सुधार के दौर से गुजर रही साइटों का उपयोग अब भी कचरा डंपिंग के लिए हो रहा है। अब देखना यह है कि स्वच्छता अभियान की इस मेगा परियोजना को हम लोगों के व्यवहार में उतार पाएंगे या फिर स्लोगन, फोटो, कार्यक्रम और भाषणों में ही महिमा मंडित करते रहेंगे। इसकी सफलता सरकार एवं स्थानीय निकायों के साथ जनता और जनमानस के व्यवहार पर निर्भर है।

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