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निरस्त्रीकरण: लक्ष्य पाने में अभी कई अड़चनें

24 अक्टूबर को संयुक्त राष्ट्र दिवस, 1945 में संयुक्त राष्ट्र चार्टर के लागू होने की वर्षगांठ का प्रतीक है। संयुक्त राष्ट्र, जिसे वैश्विक एकता के लिए आशा का प्रतीक कहते हैं, जैसा कोई अन्य वैश्विक संगठन नहीं है, क्योंकि यही संगठन बेहतर दुनिया की उम्मीद देता है। हर साल इसी दिन के साथ निरस्त्रीकरण सप्ताह की भी शुरुआत होती है क्योंकि स्थापना से ही अंतरराष्ट्रीय शांति और सुरक्षा बनाए रखने के लिए संयुक्त राष्ट्र के प्रयासों के केंद्र में बहुपक्षीय निरस्त्रीकरण और हथियारों की संख्या घटाना शामिल रहा है।

जयपुरOct 24, 2024 / 10:17 pm

Nitin Kumar

डॉ. वेसलिन पोपोवस्की, प्रोफेसर और संयुक्त राष्ट्र अध्ययन केंद्र के निदेशक
अमित उपाध्याय, एसोसिएट प्रोफेसर, प्रतिस्पर्धा कानून से जुड़े मुद्दों पर पॉलिसी एडवोकेसी कर चुके हैं
अभिनव मेहरोत्रा, सहायक प्रोफेसर व संयुक्त राष्ट्र अध्ययन केंद्र के सहायक निदेशक
(लेखक जिंदल ग्लोबल लॉ स्कूल, ओ.पी. जिंदल ग्लोबल यूनिवर्सिटी से संबद्ध हैं)
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यूक्रेन और गाजा में चल रहे युद्धों के मद्देनजर निरस्त्रीकरण का मुद्दा एक बार फिर से महत्त्वपूर्ण हो चला है। अंतरराष्ट्रीय शांति और सुरक्षा बनाए रखने के लिए निरस्त्रीकरण संयुक्त राष्ट्र के चार्टर के अनुच्छेद 26 के तहत हथियारों के नियंत्रण और उनके प्रसार को रोकने के उद्देश्य से सदैव महत्त्वपूर्ण रहा है। 1945 में अपनी स्थापना के बाद से ही संयुक्त राष्ट्र निरस्त्रीकरण के प्रयासों में सक्रिय रूप से शामिल रहा है, जिसका प्रमुख निशाना परमाणु हथियार रहे हैं। महासभा द्वारा पारित परमाणु हथियारों को नष्ट करने की मांग वाला पहला प्रस्ताव निरस्त्रीकरण की दिशा में पहला कदम था। शीत युद्ध के दौरान और सोवियत संघ के विघटन के बाद भी संयुक्त राष्ट्र ने निरस्त्रीकरण की दिशा में आगे बढऩे के लिए विभिन्न कानूनी ढांचे तैयार किए हैं और संधियां की हैं।
संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद, क्षेत्रीय निरस्त्रीकरण के महत्त्वपूर्ण मुद्दों को लेकर भी महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाती है। सैन्य स्टाफ समिति की सहायता से अस्त्र नियंत्रण की एक प्रणाली स्थापित करने की योजना प्रस्तुत की जाती है। अनुच्छेद 26 के तहत किसी योजना के रूप में प्रस्ताव को तभी मान्यता मिलती है जब उसका ठोस स्वरूप हो यानी उसमें विशेष व्यावहारिक उपाय शामिल हों। अनुच्छेद 26 में प्रयुक्त ‘सिस्टम’ शब्द से तात्पर्य है कि सुरक्षा परिषद द्वारा बनाई गई कोई भी योजना व्यापक और बहुआयामी होनी चाहिए और अलग-अलग व्यक्तिगत उपाय तब तक पर्याप्त नहीं माने जाएंगे, जब तक वे एक सुसम्बद्ध संगठित प्रणाली का हिस्सा न हों। पिछले कुछ वर्षों के दौरान हथियारों के उपयोग, प्रसार और कब्जे को नियंत्रित करने के लिए कई संधियां और सम्मेलन अस्तित्व में आए हैं। संयुक्त राष्ट्र ने निरस्त्रीकरण और अंतरराष्ट्रीय सुरक्षा के मुद्दों को सुलझाने के लिए दो प्रमुख संरचनाएं तैयार की हैं- महासभा की पहली समिति और संयुक्त राष्ट्र निरस्त्रीकरण आयोग (यूएनडीसी)। महासभा की पहली समिति, जिसे औपचारिक रूप से निरस्त्रीकरण और अंतरराष्ट्रीय सुरक्षा समिति के रूप में जाना जाता है, निरस्त्रीकरण के मुद्दों को सुलझाने वाली मुख्य इकाइयों में से एक है। यह सदस्य राष्ट्रों को अंतरराष्ट्रीय सुरक्षा चिंताओं पर संवाद करने और हथियारों के प्रसार को रोकने के लिए सिफारिशें तैयार करने का मंच प्रदान करती है। यूएनडीसी एक विशेष निकाय है, जो निरस्त्रीकरण मामलों पर चर्चा और उभरते सुरक्षा खतरों के समाधान के लिए काम करता है। यह महासभा का एक सहायक निकाय है, जो सभी संयुक्त राष्ट्र सदस्य देशों से बना है, पर इसमें निर्णयों को लागू करने वाले बाध्यकारी तंत्र का अभाव है।
हालांकि अनुच्छेद 26 की स्पष्टता के बावजूद न तो इस अनुच्छेद की भाषा और न ही संयुक्त राष्ट्र चार्टर के किसी अन्य प्रावधान में ‘अस्त्रों के विनियमन’ वाक्यांश की कोई सटीक परिभाषा दी गई है। इसके अलावा, एक सांविधिक परिभाषा की अनुपस्थिति में इसकी व्याख्या बहस का विषय बनी हुई है। अपने महत्त्व के बावजूद अनुच्छेद 26 अब तक पूरी तरह से लागू नहीं हो पाया है। इस अनुच्छेद का उद्देश्य ऐसी प्रणाली बनाना था जो हथियारों को नियंत्रित करे और जिससे मानवीय विकास के संसाधनों की ज्यादा हानि न हो। पर व्यवहार में सुरक्षा परिषद की सहायता के लिए बनाई जाने वाली सैन्य स्टाफ समिति कभी गठित नहीं हो सकी। इसके अलावा, शस्त्रों के विनियमन के लिए एक संपूर्ण प्रणाली भी कभी स्थापित नहीं हो सकी। अनुच्छेद 26 के लक्ष्यों को पूरा करने में दशकों की निष्क्रियता और असफलता के बाद अब एक दूसरे चार्टर की आवश्यकता पर चर्चा हो रही है। इस प्रस्तावित संशोधन से निरस्त्रीकरण की जिम्मेदारी सुरक्षा परिषद से महासभा को हस्तांतरित की जा सकती है और संभवत: एक नई संसदीय सभा के माध्यम से निरस्त्रीकरण के लिए एक प्रोटोकॉल लाया जा सकता है, जो सदस्य देशों द्वारा अनुपालन सुनिश्चित करवाएगा।
हालांकि कई कानूनी प्रावधान और संस्थाएं मौजूद हैं, फिर भी निरस्त्रीकरण के एजेंडे का अधिकांश हिस्सा अभी तक पूरी तरह से साकार नहीं हो सका है। अनुच्छेद 26 व अन्य प्रावधान को लागू करने की चुनौतियां दर्शाती हैं कि अंतरराष्ट्रीय निरस्त्रीकरण के प्रयासों में कितनी जटिलता है। दिसंबर 1954 में भारत से निरस्त्रीकरण के लिए एक महत्त्वपूर्ण प्रस्ताव आया था, जिसमें परमाणु परीक्षणों को पूरी तरह से रोकने की बात की गई थी। उस समय इस प्रस्ताव पर मतदान नहीं हुआ था, पर वैश्विक परमाणु निरस्त्रीकरण की दिशा में एक महत्त्वपूर्ण कदम के रूप में इस पर पुनर्विचार किया जा सकता है। परमाणु अप्रसार संधि के संदर्भ में निरस्त्रीकरण की धीमी प्रगति और यूक्रेन युद्ध के कारण रूस, यूरोपीय संघ और संयुक्त राज्य अमरीका के बीच भविष्य के संबंधों को लेकर अनिश्चितता बनी हुई है, जो निरस्त्रीकरण के मार्ग में बड़ी चुनौतियां हैं। राजनीतिक और कूटनीतिक प्रक्रियाओं के साथ प्रवर्तन कार्रवाई से निरस्त्रीकरण प्रयासों में सकारात्मक परिणाम मिल सकते हैं, पर इसके लिए सदस्य देशों को अपने प्रयासों को एकजुट करना होगा और सुरक्षा परिषद के ढांचे के भीतर उद्देश्यपूर्ण रूप से सहभागिता करनी होगी। वैश्विक अस्त्र नियंत्रण लक्ष्य को प्राप्त करने और उसे बनाए रखने के लिए निरंतर संवाद और नए सुधार भविष्य की कुंजी हो सकते हैं।

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