– नए जमाने की नई स्थितियां बच्चों को बना रहीं आलसी मोबाइल के साथ निढाल सोफे पर पसरे हैं तो हो जाइए सावधान, मौत के दे रहे हैं आमंत्रण सागर. नए जमाने की नई परिस्थितियां बच्चों को काउच पोटैटो की स्थिति में ला रहीं हैं। काउच पोटैटो वह स्थिति है जब बच्चे घर में मोबाइल और टीवी स्क्रीन के सामने बैठकर सिर्फ पैक्ड फूड खाते रहते हैं और किसी भी कार्य में रूचि नहीं लेते। बच्चे घर के अंदर रहकर आलसी हो जाते हैं। शारीरिक गतिविधियां न होने से बच्चों में मोटापा सहित कई गंभीर समस्याएं उत्पन्न हो रहीं हैं जो उनके वयस्क होने पर घातक भी हो सकती हैं। कहीं आपका बच्चा भी काउच पोटैटो तो नहीं बन रहा।
बीएमसी के शिशु रोग विशेषज्ञ डॉ. आशीष जैन की मानें तो महानगरों की तरह सागर में ज्यादा केस नहीं हैं लेकिन फिर भी शुरूआत शहर में हो चुकी है। कई परिजन बताते हैं कि बच्चे स्कूल से आने के बाद मोबाइल, टीवी के सामने बैठ जाते हैं जो कि घंटों तक वहीं बैठे रहते हैं। बाहर जाना भी पसंद नहीं करते, कई घरों में परिजन भी बच्चों को घर से बाहर जाने की मनाही कर देते हैं जो कि जाने अनजाने में बच्चों की सेहत से खिलवाड़ है। कई बच्चे बगैर मोबाइल, टीवी के खाना नहीं खाते। यह परिवर्तन कोरोना काल से ज्यादा सामने आ रहा है।
बच्चों में ये समस्याएं हो सकती हैं- – काम को टालने की आदत। -उत्साह की कमी। -मेहनत से बचना। -मोटापा। -आंखों की समस्या। -वयस्क होने पर बीपी, शुगर, हार्ट की समस्या।
परिजन ये उपाय कर सकते हैं- -खेल व संगीत और नृत्य जैसी शारीरिक गतिविधि के अवसर दें। -स्कूल व्यायाम या ग्राउंड पर खेलने के लिए प्रेरित करें। -मोबाइल चलाना धीरे-धीरे कम करवाएं।
-टीवी के सामने 1 घंटे से ज्यादा न बैठने दें। -डिब्बा या पैक बंद खाद्य सामग्री न खिलाएं। एक्सपर्ट व्यू: डॉ. आशीष जैन बीएमसी। -लोगों का जीवन स्तर सुधर रहा है, उनकी आय बढ़ी है, घर में सुख सुविधाओं के साधन बढऩे से शहरों में बच्चे मोबाइल व टीवी के सामने बैठे रहते हैं। बैठकर चिप्स व डिब्बा बंद सामग्री खाते रहते हैं। कई मामलों में परिजन स्वयं बच्चों के हाथ में मोबाइल दे देते हैं। यह स्थिति चिंताजनक है। ऐसे में बच्चों में मोटापा बढऩे के साथ-साथ बच्चे आलसी होते जा रहे हैं, जो कि उनके जीवन संघर्ष के लिए घातक है। महानगरों की तरह सागर में भी कूच पोटैटो की स्थिति की शुरूआत हो रही है।
ीमारियां और प्रभावित होने वाले लोग
डिप्रेशन और एंग्जायटी-21 करोड़ 57 लाख
हाइपरटेंशन-23 करोड़ 46 लाख
डिमेंशिया-01 करोड़ 12 लाख
हृदय संबंधी रोग-12 करोड़ 5 लाख
टाइप 2 डाइबिटीज-11 करोड़ 2 लाख
स्ट्रोक-66 लाख
कैंसर-34 लाख
डब्ल्यूएचओ के अनुसार युवाओं और बच्चों में शारीरिक सक्रियता बढ़ाने के लिए कई देशों में इसके लिए पॉलिसी बनायी है। लेकिन भारत में इसकी मॉनिटरिंग तक नहीं होती। जरूरत पॉलिसी बनाकर फिजिकल एक्टीविटीज को बढ़ाने की है ताकि लोगों को जागरुक किया जा सके।
डिप्रेशन और एंग्जायटी-21 करोड़ 57 लाख
हाइपरटेंशन-23 करोड़ 46 लाख
डिमेंशिया-01 करोड़ 12 लाख
हृदय संबंधी रोग-12 करोड़ 5 लाख
टाइप 2 डाइबिटीज-11 करोड़ 2 लाख
स्ट्रोक-66 लाख
कैंसर-34 लाख
डब्ल्यूएचओ के अनुसार युवाओं और बच्चों में शारीरिक सक्रियता बढ़ाने के लिए कई देशों में इसके लिए पॉलिसी बनायी है। लेकिन भारत में इसकी मॉनिटरिंग तक नहीं होती। जरूरत पॉलिसी बनाकर फिजिकल एक्टीविटीज को बढ़ाने की है ताकि लोगों को जागरुक किया जा सके।
वर्जन
हमारे पास आने वाले अधिकतर वे पेशेंट्स हैं जो फिजिकल एक्टिविटीज नहीं करते। इसलिए वे कम उम्र में बीमारियों के शिकार हो रहे हैं। इसलिए सप्ताह में कम से कम 30 से 40 मिनट वॉक या एक्सरसाइज की सलाह दी जाती है। इससे ऑक्सीजन की खपत बढ़ती है और ब्लड सप्लाई ज्यादा होती है। इससे हृदय संबंधी बीमारियों से बचा जा सकता है।
हमारे पास आने वाले अधिकतर वे पेशेंट्स हैं जो फिजिकल एक्टिविटीज नहीं करते। इसलिए वे कम उम्र में बीमारियों के शिकार हो रहे हैं। इसलिए सप्ताह में कम से कम 30 से 40 मिनट वॉक या एक्सरसाइज की सलाह दी जाती है। इससे ऑक्सीजन की खपत बढ़ती है और ब्लड सप्लाई ज्यादा होती है। इससे हृदय संबंधी बीमारियों से बचा जा सकता है।
- डॉ विवेक त्रिपाठी,कार्डियोलॉजिस्ट
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