एनजीटी के जस्टिस शिव कुमार सिंह ने यह आदेश नाहरगढ़ वन एवं वन्य जीव सुरक्षा एवं सेवा समिति अध्यक्ष राजेंद्र तिवाड़ी की ओर से दायर की गई जनहित याचिका पर दिए हैं। एनजीटी ने इस मामले को वाइल्ड लाइफ प्रोटेक्शन एक्ट 1972 की धारा 20 का उल्लंघन माना है। पूरे मामले को लेकर कोर्ट ने कई सवाल उठाए। कहा कि कृषि भूमि कैसे कॉमर्शियल बन गई? जस्टिस सिंह ने आदेश में कहा है कि क्रिटिकल टाइगर हैबीटेट (सीटीएच) एरिया का नोटिफिकेशन 2007 में हो गया था, तब से लेकर वर्ष 2024 तक यह जमीन वन विभाग के रिकॉर्ड में क्यों नहीं आई?सीटीएच एरिया में होटल-रेस्टोरेंट से लेकर अन्य कॉमर्शियल गतिविधियां किस तरह संचालित हो रही हैं? इस सभी सवालों के जवाब उच्च स्तरीय कमेटी अपनी जांच रिपोर्ट में देगी। यह कमेटी खनन आदि गतिविधियों को भी अपने रिकॉर्ड पर लेगी। प्रतिष्ठानों की ओर से वन्यजीव बोर्ड से अनुमति ली गई है या नहीं, इसका भी उल्लेख जांच में करना होगा।
बड़े स्तर पर हुआ घोटाला…सीबीआई देगी जवाब याचिका में कहा गया था कि इस पूरे मामले में बड़े स्तर पर घोटाला हुआ है। पूर्व में सीबीआई के संज्ञान में लाया गया था, लेकिन कार्रवाई नहीं हो पाई। इस पर एनजीटी ने सीबीआई को भी नोटिस जारी कर जवाब मांगा है। इस मामले में ईडी की ओर से अब तक की गई कार्रवाई के बारे में भी जवाब प्रदेश सरकार को देने के लिए कहा गया है।
उच्च स्तरीय जांच कमेटी में यह शामिल – एनजीटी के एक जज – पर्यावरण मंत्रालय के सचिव – अतिरिक्त मुख्य सचिव फॉरेस्ट एंड वाइल्ड लाइफ – जिला कलक्टर अलवर – प्रिंसिपल चीफ कन्जर्वेटर राजस्थान
– राजस्थान प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड के सचिव इन तहसीलदारों को जारी हुए नोटिस एनजीटी ने अलवर जिले के तहसीलदार टहला, मालाखेड़ा, थानागाजी, अलवर, नारायणपुर, प्रतापगढ़ व बानसूर को नोटिस जारी किया है। इन्हें भी 4 जुलाई को जवाब देना है। इन पर आरोप हैं कि सीटीएच एरिया की 88 हजार हेक्टेयर जमीन में से 44 हजार हेक्टेयर जमीन वन विभाग के रिकॉर्ड में दर्ज ही नहीं की। लैंडयूज बदलकर ये जमीन होटल, रेस्टोरेंट, खानों आदि के नाम कर दी गई। संस्था अध्यक्ष राजेंद्र तिवाड़ी ने कहा कि सुनियोजित तरीके से एनवायरमेंटबिगाड़ा गया है। पूरा सिस्टम इसमें दोषी है। जितने अफसर तैनात रहे हैं, उन पर कड़ी कार्रवाई हो।