सूत्रों के मुताबिक बैठक में कई नेताओं ने दर्द बयां कर कहा कि हार में अपने लोग भी बड़ा कारण रहे। इन नेताओं का फीडबैक भी पहले ही दे दिया गया, लेकिन कुछ नहीं हुआ। इन नेताओं ने अंदरखाने साथ रहने का नाटक किया, लेकिन उनके समर्थकों ने पार्टी को हरवाने में दिन-रात एक कर दिया।
बैठक में सामने आया कि कांग्रेस ने जिस तरह एससी-एसटी आरक्षण खत्म होने का प्रचार किया। उसका समय पर जवाब नहीं दे सके। इससे एससी-एसटी वोट का काफी नुकसान हुआ। इसके अलावा ओवर कॉन्फिडेंस भी हार का बड़ा कारण रहा। इसी प्रकार संगठन के जिन नेताओं के पास बड़े पद थे, वे भी वोट नहीं दिला सके।
पदाधिकारी हुए आमने-सामने… भरतपुर लोकसभा की बैठक में क्षेत्रीय पदाधिकारी ही आमने-सामने हो गए। वहीं प्रत्याशी ने कहा कि चुनाव में सामुहिक प्रयास नहीं हो सके। लोकसभा प्रभारी व संभाग सह प्रभारी के बीच सामंजस्य नहीं रहा। टिकट मिलने के बाद 22 मंडल अध्यक्षों को बदला गया। आखिर टिकट मिलने के बाद बदलने की क्या वजह थी। इसी तरह टिकट मिलने के 24 दिन बाद लोकसभा प्रभारी को लगाया गया। इससे संगठनात्मक काम भी नहीं हो सके। बाद में मुख्यमंत्री भजनलाल शर्मा ने सभी से कहा कि आगे से मिलकर काम करना है। आगे भी निकाय व अन्य चुनाव हैं।
अभी कई चुनौतियां… बैठक के बाद प्रदेश चुनाव प्रभारी विनय सहस्त्र बुद्धे ने मीडिया से कहा कि पार्टी की रीति और पद्धति के अनुसार मंथन किया गया है। हार की जिम्मेदारी के सवाल को वे टाल गए। कहा कि आने वाले समय में पार्टी के सामने कई चुनौतियां हैं। उप चुनाव में तैयारी को लेकर भी चर्चा हुई है।
मंथन का संगठन और राजनीतिक नियुक्तियों में दिखेगा असर बताया जा रहा कि मंथन में आए फीडबैक के आधार पर कई बड़े नेताओं के नंबर घटेंगे-बढ़ेंगे। उसी आधार पर आगामी दिनों में संगठन और राजनीतिक नियुक्तियों में असर देखने को मिलेगा। जो नेता चुनाव में पूरी तरह नहीं लगे, उनका कद कम हो सकता है। वहीं जिन्होंने पूरी तरह चुनाव में मेहनत की, उन्हें पदोन्नति मिल सकती है।