– भारत में heat wave की संख्या, समय और सघनता सभी बढ़ रही हैं
– लेकिन बेहतर पूर्वानुमान और कार्ययोजना ने इससे होने वाली मौतें घटाईं, अब बीमारियों को भी घटाना है
– पांच साल में भारत में मौसम पूर्वानुमान की सटीकता 50 फीसदी तक बढ़ी
प्रश्न- गर्मी का मौसम ज्यादा गर्म होता जा रहा है। इस बार तो हालत और खराब है। विज्ञान क्या कहता है…?
भारत में मकर संक्रांति के बाद धीरे-धीरे तापमान में वृद्धि होती है और जून में मानसून आने से पहले तक यह सबसे ज्यादा पर पहुंच जाता है। इस साल मार्च के महीने में ही मध्य भारत से ले कर ओडिशा और तेलंगाना तक के तापमान में काफी ज्यादा वृद्धि हुई। उत्तर-पश्चिम भाग से ले कर जम्मू-कश्मीर और हिमाचल जैसे पहाड़ी इलाकों तक में तापमान सामान्य से चार से सात डिग्री ज्यादा रहा। अब तक दो बार हीटवेब आ चुकी हैं। दोनों ही बार यह सौराष्ट्र-कच्छ और दक्षिण राजस्थान से सटे इलाके से शुरू हुई और धीरे-धीरे पूर्व व उत्तर की तरफ बढ़ी।
ऐतिहासिक परिदृष्य में देखें तो मार्च महीने में हीटवेब पहले भी आई है। लेकिन इस बार इसकी अवधि बड़ी थी और यह लगभग दो हफ्ते तक जारी रहा। इसी तरह यह इसकी आवृत्ति भी बढ़ गई।
प्रश्न- क्या इस बार आगे के महीने भी ज्यादा गर्म रहेंगे?
हमने मार्च में बताया था कि उस महीने में मध्य भारत में सामान्य से ज्यादा तापमान रहेगा और हीटवेब रहेगी और वही हुआ। इसी तरह अप्रैल का हमारा पूर्वानुमान है कि उत्तर-पश्चिम और मध्य भारत में तापमान सामान्य से ज्यादा रहेगा और इसकी वजह से हीटवेब की सघनता बढ़ सकती है। इस महीने के अंत तक हम अगले तीन महीने का पूर्वानुमान जारी करेंगे। हमारे पूर्वानुमान के आधार पर राज्य सरकारें, केंद्र, स्थानीय निकाय और दूसरे संस्थान मिल कर कार्ययोजना तैयार करते हैं।
प्रश्न- ये जो बदलाव दिख रहे हैं, इन्हें व्यापक संदर्भ में आप कैसे देखते हैं?
धरती का तापमान औद्योगिकरण के बाद से ज्यादा तेजी से बढ़ने लगा है। पिछले सौ साल में यह लगभग 1.15 डिग्री सेल्सियल बढ़ा है। भारत में यह सौ साल में 0.62 डिग्री बढ़ा है। इसी तरह वर्ष 1970 के बाद से यह वृद्धि और तेज हुई है।
तापमान में बढ़ोतरी सामान्य भी हो सकती है लेकिन जब मानव निर्मित बदलावों की वजह से ऐसा होता है तो उसे दुरुस्त करना मुश्किल हो जाता है। हमारी विभिन्न औद्योगिक और अन्य शहरी गतिविधियों की वजह से कार्बन डाय ऑक्साइड जैसी जहरीली गैसें उत्सर्जित होती हैं और ये तापमान बढ़ा देती हैं। आईपीसीसी रिपोर्ट के आधार पर अनुमान है कि अगले दो दशक में तापमान में बढ़ोतरी 1.5 डिग्री सेल्सियल तक पहुंच सकती है।
प्रश्न- इन सब का असर हमारे जीवन पर कैसे हो रहा है? हमारे स्थानीय संदर्भ में?
ग्लोबल वार्मिंग का सबसे पहला असर तो होता है हीटवेब की सघनता, आवृत्ति और अवधि में। यानी ये ज्यादा बार आएंगी, ज्यादा गंभीर रूप से आएंगी और लंबे समय के लिए आएंगी। भारत में देखें तो हीटवेब का क्षेत्र उत्तरी और मध्य भारत रहा है। लेकिन जलवायु परिवर्तन के बाद साउथ पेनेन्सुला में जहां हीटवेब नहीं होता था वहां भी हो सकता है। इसी तरह हीटवेब में जहां हम दिन का तापमान देखते हैं, लेकिन साथ ही रात का तापमान भी असामान्य रूप से बढ़ा है। मतलब है कि ना सिर्फ दिन गर्म होंगे, बल्कि रातें भी गर्म होंगी।
इसका असर मानव जीवन पर कई तरह से होता है। हमारी सेहत से ले कर हर तरह की सामाजिक-आर्थिक गतिविधियां इससे प्रभावित होती हैं।
मानव शरीर का तापमान सामान्य रूप से 98 डिग्री फारनहाइट होता है और 104 डिग्री से ज्यादा हो जाता है तो हम उसे सहने में अक्षम होने लगते हैं। इसलिए हीटवेब का हमारा पैमाना 40 डिग्री सेल्सियस यानी 104 डिग्री फारनहाइट है। बार-बार आते हीटवेब से निपटने में मानव शरीर को समस्या हो सकती है। रक्तचाप सहित विभिन्न प्रक्रिया पर प्रभाव पड़ता है और मृत्यु तक हो सकती है। हाल के वर्षों में अपनाए गए हीटवेब एक्शन प्लान की वजह से मृत्यु में तो हमने कमी लाई है, लेकिन इससे होने वाली बीमारियों को अभी कम करना है।
प्रश्न- भारत की मुख्य फसलों और खाद्य सुरक्षा पर भी क्या इसका असर हो रहा है?
ग्लोबल वार्मिंग की वजह से विभिन्न फसलों की पैदावार पांच प्रतिशत या उससे अधिक घट सकती है। किसी भी फसल के लिए एक अनुकूल तापमान होता है और उससे अधिक होने पर उसके विकास पर असर पड़ता है और पैदावार भी प्रभावित हो जाती है। इस वजह से कौन सी फसल कब लगाई जाए इसमें भी बदलाव करना होगा। सिंचाई की जरूरत बढ़ जाएगी। कई तरह के बदलाव करने होंगे। फसल की किस्में बदलनी पड़ सकती हैं। तापमान बढ़ने से खर-पतवार और कीटों के लिहाज से भी बदलाव होता है।
खेती के साथ ही पोल्ट्री और पशुपालन पर भी असर पड़ता है। पशुओं में कई तरह की बीमारियां आ सकती हैं। इस वजह से पशुपालकों का बड़े स्तर पर नुकसान हो जाता है। यहां तक कि गायें दूध देना तक कम कर सकती हैं।
प्रश्न- इससे बचाव कैसे हो?
जलवायु परिवर्तन संबंधी जो उपाय हम करेंगे उनका फायदा मिलने में भी समय लगेगा। इसलिए जरूरी है कि जल्द से जल्द इन उपायों को शुरू करें। ये हम व्यक्तिगत और सरकारी दोनों स्तर पर जरूरी हैं। लोगों को भी ध्यान रखना चाहिए कि वे प्रदूषण करने वाले साधनों का उपयोग कम से कम करें। प्लास्टिक का उपयोग कम करें। हमें यह भी देखना होगा कि वन क्षेत्र में कमी नहीं आए।
जलवायु परिवर्तन की वजह से बढ़ते प्राकृतिक हादसों में लोगों की जान जा रही है और कई खतरे बढ़ रहे हैं। इनसे बचाने के लिए हमें एडोप्टेशन और मिटिगेशन के कई उपाय करने होंगे। ऊर्जा क्षेत्र प्रदूषण का एक बड़ा स्रोत है। इसलिए सरकार ने वैकल्पिक ऊर्जा को ले कर बहुत गंभीर प्रयास शुरू किए हैं।
प्रश्न- सटीक पूर्वानुमान का इसमें कितना योगदान होगा?
मौसम विभाग की यह जिम्मेदारी है कि सटीक से सटीक पूर्वानुमान करे ताकि लोग और सरकारें उसी अनुसार अपनी योजना तैयर कर सकें। पूरे मौसम से ले कर उस दिन व हफ्ते का अनुमान भी लोगों की उत्पादकता को कायम रखने के लिए बेहद जरूरी है। साइक्लोन जैसी जो बड़ी आपदाएं आती हैं उनको ले कर हमने बहुत सटीक पूर्वानुमान करना शुरू किया है और उससे बहुत सी जिंदगियां बचाई गई हैं।
एक ओर जहां जलवायु परिवर्तन पूर्वानुमान की सटीकता को प्रभावित करता है, लेकिन भारत के मौसम विज्ञान विभाग ने पिछले पांच साल में 40-50 फीसदी सटीकता बढ़ाई है।
प्रश्न- राजस्थान में क्या परिवर्तन दिखे हैं?
यहां भी तापमान बढ़ रहा है। हीट वेब की सघनता, अवधि और आवृत्ति बढ़ी है। लेकिन बारिश की बात करें तो पश्चि का जो सूखा प्रभावित इलाका है वहां इसमें बढ़ोतरी दिख रही है जो एक अच्छा संकेत है।