दरअसल, महाराष्ट्र के विधानसभा अध्यक्ष ने पिछले साल 5 जुलाई को सदन से 12 भाजपा विधायकों का निलंबन एक साल के लिए कर दिया था। इसे सुप्रीम कोर्ट में चुनौती दी गई। शीर्ष अदालत ने टिप्पणी की कि सदन से निष्कासन की स्थिति में संबंधित सीट को भरने की संवैधानिक व्यवस्था है और चुनाव आयोग संबंधित निर्वाचन क्षेत्र में चुनाव करवाता है, लेकिन निलंबन की अवस्था में चुनाव नहीं कराए जाते।
एक साल का निलंबन सदन में संबंधित निर्वाचन क्षेत्र के प्रतिनिधित्व को प्रभावित करता है। सुप्रीम कोर्ट की यह टिप्पणी पूरी तरह से साफ करती है कि इस तरह के फैसलों में दूरगामी प्रभाव को नजरअंदाज किया गया। बहुमत के प्रभाव की वजह से कई राज्यों में ऐसे फैसले सामान्य हो गए हैं। देश में संवैधानिक व्यवस्था है।
यह भी पढ़ें – भ्रष्टाचार व छुआछूत सबसे बड़ा दंश
बहुमत की आड़ में विपक्ष की आवाज को अनसुना नहीं किया जाना चाहिए। सदन एक ऐसी जगह है, जहां पर सत्ता पक्ष और विपक्ष साथ आकर राज्य और देश की व्यवस्था को आगे बढ़ाते हैं। मत-मतान्तर होना लोकतंत्र की खूबसूरती है, लेकिन उसके लिए सदन को बाधित करना भी सही नहीं कहा जा सकता है। साथ ही इसको भी सही नहीं ठहराया जा सकता है कि एक लंबे समय के लिए सदन से किसी को निलंबित करके दंडित किया जाए।
सदन की व्यवस्था के मामले सुप्रीम कोर्ट में पहुंचना भी दुर्भाग्यपूर्ण ही कहा जाएगा। जिन मसलों को विधानसभा अध्यक्ष, सरकार और विपक्ष को साथ बैठकर निपटाना चाहिए, वे अदालत में जा रहे हैं। यह स्थिति चिंताजनक ही कही जाएगी। हालांकि, किसी भी संस्था को मनमाने ढंग से निर्णय लेने की छूट नहीं हो सकती है। अगर बार-बार ऐसा होता है, तो यह लोकतंत्र के लिए अच्छा संकेत नहीं है।
यह भी पढ़ें – राजनीति से गायब क्यों है साफ हवा का मुद्दा
एक साल का निलंबन सदन में संबंधित निर्वाचन क्षेत्र के प्रतिनिधित्व को प्रभावित करता है। सुप्रीम कोर्ट की यह टिप्पणी पूरी तरह से साफ करती है कि इस तरह के फैसलों में दूरगामी प्रभाव को नजरअंदाज किया गया। बहुमत के प्रभाव की वजह से कई राज्यों में ऐसे फैसले सामान्य हो गए हैं। देश में संवैधानिक व्यवस्था है।
यह भी पढ़ें – भ्रष्टाचार व छुआछूत सबसे बड़ा दंश
बहुमत की आड़ में विपक्ष की आवाज को अनसुना नहीं किया जाना चाहिए। सदन एक ऐसी जगह है, जहां पर सत्ता पक्ष और विपक्ष साथ आकर राज्य और देश की व्यवस्था को आगे बढ़ाते हैं। मत-मतान्तर होना लोकतंत्र की खूबसूरती है, लेकिन उसके लिए सदन को बाधित करना भी सही नहीं कहा जा सकता है। साथ ही इसको भी सही नहीं ठहराया जा सकता है कि एक लंबे समय के लिए सदन से किसी को निलंबित करके दंडित किया जाए।
सदन की व्यवस्था के मामले सुप्रीम कोर्ट में पहुंचना भी दुर्भाग्यपूर्ण ही कहा जाएगा। जिन मसलों को विधानसभा अध्यक्ष, सरकार और विपक्ष को साथ बैठकर निपटाना चाहिए, वे अदालत में जा रहे हैं। यह स्थिति चिंताजनक ही कही जाएगी। हालांकि, किसी भी संस्था को मनमाने ढंग से निर्णय लेने की छूट नहीं हो सकती है। अगर बार-बार ऐसा होता है, तो यह लोकतंत्र के लिए अच्छा संकेत नहीं है।
यह भी पढ़ें – राजनीति से गायब क्यों है साफ हवा का मुद्दा