उपराष्ट्रपति ने इस बात पर जोर दिया कि बच्चों को पहले अपनी मातृभाषा सीखनी चाहिए और फिर दूसरी भाषाएं सीखनी चाहिए। उन्होंने कहा कि व्यक्ति को अपनी भाषा में पारंगत होना चाहिए और मूल विचार रखने चाहिए। भारतीय शिक्षा प्रणाली को ‘हमारी संस्कृति’ पर भी ध्यान देना चाहिए। उन्होंने आगे कहा, सभी को अपनी मातृमें प्रवीण होना चाहिए और उससे संबंधित मूल विचारों का बोध होना चाहिए।
आपको बता दें, दिल्ली विश्वविद्यालय के कुलाधिपति उपराष्ट्रपति वेंकैया नायडू शताब्दी समारोह कार्यक्रम में मुख्य अतिथि के तौर पर शामिल हुए जबकि शिक्षा मंत्री धर्मेंद्र प्रधान विशिष्ट अतिथि थे। नायडू ने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी द्वारा शनिवार को एक कार्यक्रम में की गयी उस टिप्पणी का भी जिक्र किया, जिसमें अदालतों में स्थानीय भाषा के उपयोग को प्रोत्साहित करने की आवश्यकता को रेखांकित किया गया था।
उन्होंने कहा, “कल प्रधानमंत्री मोदी ने अदालतों में स्थानीय भाषाओं की आवश्यकता के बारे में भी बात की थी। केवल अदालतें ही क्यों, इसे हर जगह लागू किया जाना चाहिए।” तो वहीं इस कार्यक्रम के दौरान उपराष्ट्रपति ने सौ रुपये का एक स्मारक सिक्का, एक स्मारक शताब्दी टिकट और एक स्मारक शताब्दी खंड (किताब) को लान्च किया। इस किताब में विश्वविद्यालय की यात्रा का एक सचित्र प्रतिनिधित्व दर्शाया गया।
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उपराष्ट्रपति ने दिल्ली विश्वविद्यालय को 100 साल पूरे करने पर बधाई भी दी। उन्होंने कहा, “मैं इस विश्वविद्यालय की उन्नति, विकास और प्रगति के लिए तथा इसे प्रतिष्ठित संस्थानों में से एक बनाने के लिए सभी लोगों को बधाई देना चाहता हूं।” नायडू ने अंडरग्रेजुएट करिकुलर फ्रेमवर्क (यूजीसीएफ) 2022 (हिंदी संस्करण), अंडरग्रेजुएट करिकुलर फ्रेमवर्क (यूजीसीएफ) 2022 (संस्कृत संस्करण), और एक ब्रोशर ‘दिल्ली विश्वविद्यालय: ए झलक’ भी लॉन्च किया। शिक्षा मंत्री धर्मेंद्र प्रधान ने कार्यक्रम को संबोधित करते हुए कहा कि स्थानीय भाषाओं को बढ़ावा देने से छात्रों की रचनात्मकता को आगे बढ़ाने में मदद मिलेगी। प्रधान ने कहा, “राष्ट्रीय शिक्षा नीति में स्थानीय भाषा के महत्व पर जोर दिया गया है। स्थानीय भाषा छात्रों की रचनात्मकता को दिशा देने में मदद करती है।”
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