सीबीएसई ने 2022-23 का नया शैक्षणिक पाठ्यक्रम में से फैज की दो नज्मों को बाहर रख दिया गया है। पिछले एक दशक से भी अधिक समय से सीबीएसई के छात्रों ने एनसीईआरटी की कक्षा 10 की पाठ्यपुस्तक ‘डेमोक्रेटिक पॉलिटिक्स’ के ‘धर्म, सांप्रदायिकता और राजनीति – सांप्रदायिकता, धर्मनिरपेक्ष राज्य’ खंड में फैज़ अहमद फैज़ द्वारा उर्दू में इन कविताओं के नज्मों को पढ़ा है।
अब इसे पाठ्यक्रम से बाहर कर दिया गया है। इसमें सांप्रदायिकता में राजनीति की भूमिका समझाने के लिए तीन कार्टून दिए गए थे। पहले दो कार्टून में फैज की एक-एक शायरी और तीसरा कार्टून ‘टाइम्स ऑफ इंडिया’ से लिया गया था।
इन बदलावों पर शिक्षक समुदाय की राय बंटी हुई है। कोई विद्यार्थियों के फायदे में बता रहा है तो किसी का मानना है कि इससे स्टूडेंट्स बहुत सी महत्वपूर्ण बातें जानने से महरूम हो जाएंगे। वेब पोर्टल रेख़्ता के अनुसार जिस कविता से ये छंद लिए गए थे, उसकी रचना फैज अहमद फैज ने तब की थी जब उन्हें लाहौर की एक जेल से जंजीरों में जकड़ कर एक दंत चिकित्सक के कार्यालय में एक तांगे में ले जाया जा रहा था, जो उनसे परिचित थे।
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दूसरे पोस्टर की शायरी उन्होंने ढाका के दौरे के बाद 1974 में लिखी थी। वहीं, तीसरे में अजीत निनन का कार्टून है जिसमें धार्मिक प्रतीकों से सजी हुई एक खाली कुर्सी दर्शायी गई है। कक्षा 11वीं की इतिहास की पुस्तक से मध्य इस्लामी भूमि का चैप्टर हटा दिया गया है। इस अध्याय में अफ्रीकी-एशियाई क्षेत्रों में इस्लामी साम्राज्य के उदय और वहां की अर्थव्यवस्था और समाज पर इसके प्रभाव के बारे में बताया गया था। इसी तरह 12वीं की राजनीति शास्त्र पुस्तक से शीत युद्ध और गुटनिरपेक्ष आंदोलन के अध्याय को भी हटा दिया गया है। यह भी पढ़ें