मुंबई। महाराष्ट्र विधानसभा चुनाव में सबसे ज्यादा अगर किसी की प्रतिष्ठा दांव पर लगी है तो वो हैं तीन नेता – उद्धव ठाकरे, एकनाथ शिंदे और अजीत पवार। इनके सामने अस्तित्व की लड़ाई का सवाल है। वजह कि इनके नेतृत्व वाली पार्टी हारी तो फिर राज्य की राजनीति में अस्तित्व संकट में पड़ सकता है। यह चुनाव तीनों नेताओं की राजनीति का भविष्य तय करेगा। तीनों को मालूम है कि यह चुनाव या तो उन्हें स्थापित करेगा या फिर अस्तित्व संकट में डाल देगा। साथ ही यह चुनाव इस सवाल का भी जवाब दे देगा कि शिवसेना और एनसीपी के चुनाव चिन्ह “तीर कमान” और “घड़ी” का असली हकदार कौन है ?
दरअसल, भाजपा, कांग्रेस हों या शरद पवार तीनों के लिए यह चुनाव भी सामान्य चुनाव की तरह ही है। हार हो या जीत, उनकी राजनीति में प्रासंगिकता नहीं खत्म होने वाली। भाजपा और कांग्रेस को किसी मोर्चे पर साबित नहीं करना है। शरद पवार, लोकसभा चुनाव में 8 सीट जीतकर दमखम साबित कर चुके हैं। लेकिन, उद्धव ठाकरे, एकनाथ शिंदे और अजित पवार के लिए यह चुनाव बहुत विशेष है और उन्हें राज्य की राजनीति में खुद को साबित करने का सबसे बड़ा अवसर है।
बात उद्धव ठाकरे की करें तो चुनाव आयोग की अदालत में एकनाथ शिंदे गुट के हाथों चुनाव चिन्ह गंवा चुके हैं। लेकिन, विधानसभा चुनाव में ही यह तय होना है कि जनता और कार्यकर्ता किसके साथ हैं। जहां तक शरद पवार की बात है तो लोकसभा चुनाव में वो खुद को साबित कर चुके हैं और बेटी सुप्रिया सुले भी बारामती से लोकसभा चुनाव जीतकर खुद का लोहा मनवा चुकी हैं। लोकसभा में मौका चूक जाने वाले अजीत पवार के सामने विधानसभा चुनाव ही वो अवसर है, जिसमें वे राज्य की राजनीति में खुद को साबित कर सकते हैं। अगर उद्धव ठाकरे हारते हैं तो फिर शिवसेना के उन ख़ांटी कार्यकर्ताओं में भी एकनाथ शिंदे का वर्चस्व बढ़ेगा, हो विपरीत हालात में भी उनके साथ खड़े रहे थे। अगर अजीत पवार लोकसभा के बाद विधानसभा में भी छाप छोड़ने में असफल रहते हैं तो फिर न इधर के रहेंगे न उधर के रहेंगे। अगर शिंदे गुट अच्छा प्रदर्शन नहीं कर पाता है तो फिर एनडीए में भाव कम होगा।