इसके साथ ही यह भी आरोप लगया गया की कई स्कूलों में प्रार्थना भी बदलवा दी गई और स्कूल बोर्ड पर उर्दू स्कूल लिख दिया गया था। हालांकि जब मामला सुर्खियों में आया तो हेमंत सरकार एक्टिव हुई और अब जांच के बाद 43 स्कूलों ने लिखित रुप में यह आश्वासन दिया है कि वह फिर से रविवार को छुट्टिया बहाल कर देंगे और पुरानी व्यवस्था लागू कर दी जाएगी। वहीं आदेश न मानने वाली स्कूल प्रबंधन समितियों की मान्यता रद्द करने की जिला प्रशासन की ओर से चेतावनी दी गई है। कहा गया है कि अगर ऐसा नहीं हुआ तो संबंधित क्षेत्र के शिक्षा पदाधिकारियों पर भी कार्रवाई की जाएगी।
बता दें कि जामताड़ा जिले के 100 से ज्यादा स्कूलों के छात्रों को रविवार के बजाय शुक्रवार को छुट्टी दी रही थी। ये बदलाव स्कूलों में मुस्लिम आबादी का हवाला देते हूए किया गया था। इन स्कूलों में लगभग 70% छात्र मुस्लिम समुदाय के हैं। जिला शिक्षा अधिकारी अभय शंकर के अनुसार अपग्रेड किए गए प्राइमरी स्कूल में रविवार की जगह शुक्रवार को छुट्टी करने का कदम लॉकडाउन में उठा लिया गया था। मामला सामने आने के बाद जिला जिला प्रबंधन समिति को भंग कर दिया गया है और अब नई समिति का गठन जल्द किया जाएगा।
वहीं राज्य के प्राथमिक शिक्षा निदेशक दिलीप टोप्पो ने सभी जिलों के जिला शिक्षा अधीक्षकों से स्कूलों में होने वाली साप्ताहिक छुट्टी, प्रार्थना के तौर-तरीकों और बगैर इजाजत स्कूलों के नाम बदलने के बारे में एक हफ्ते के अंदर रिपोर्ट मांगी है। उन्होंने कहा है कि जिलों से रिपोर्ट आने के बाद नियमों का उल्लंघन करने वाले स्कूलों के शिक्षकों और ग्राम शिक्षा समितियों के खिलाफ कार्रवाई की जाएगी।
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इस मामले को लेकर राज्य के शिक्षा मंत्री जगरनाथ महतो ने विभिन्न जिलों में तैनात शिक्षा विभाग के अधिकारियों के साथ वीडियो कांफ्रेंसिंग के जरिए बात की थी। इस दौरान उन्होंने पूछा था कि सरकार के आदेश के बगैर ये व्यवस्था कैसे बहाल हो गई? इस सवाल के जवाब में कुछ अफसरों ने कहा की देख रेख के लिए गठित ग्राम शिक्षा समितियों के दबाव में शिक्षकों ने ये व्यवस्था लागू कर दी। अफसरों के इस जवाब को सुन कर मंत्री ने आदेश दिया कि इस तरह की हिमाकत करने वाली ग्राम शिक्षा समितियों को तत्काल भंग किया जाए। साथ हीं मंत्री जगरनाथ महतो ने अफसरों को यह भी कहा कि इससे ये साबित होता है कि आप लोग विद्यालयों का निरीक्षण नहीं करते। ये कैसे हो सकता है कि ग्राम शिक्षा समितियां सरकारी आदेश की अनदेखी पर अपने कायदे-कानून लागू कर दें?
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