राष्ट्रपति गोटबाया राजपक्षे ने 1 अप्रैल से आपातकाल लगाने की घोषणा करते हुए एक गजट जारी किया। दरअसल श्रीलंका सरकार के पास तेल आयात करने के लिए विदेशी मुद्रा भंडार की भारी कमी है और इस कारण देश में ईंधन की भारी कमी हो रही है। पेट्रोल-डीजल के लिए लोगों के घंटों लाइन में लगना पड़ रहा है।
दो करोड़ बीस लाख की आबादी वाले द्वीप देश श्रीलंका आजादी के बाद से सबसे खराब मंदी की चपेट में है। यहां तक कि वहां सबसे आवश्यक वस्तुओं के आयात के लिए भुगतान के लिए भी विदेशी मुद्रा की किल्लत हो गई है। हालात इतने खराब हैं कि गुरुवार को बसों और वाणिज्यिक वाहनों के लिए मुख्य ईंधन डीजल पूरे देश में कहीं भी उपलब्ध नहीं था।
इसके अलावा महंगाई के आलम यह है कि शिक्षा विभाग के पास कागज और स्याही खत्म हो गई है। देश में अधिकांश स्थानों पर 13-14 घंटे बिजली काटी जा रही है। दूध पेट्रोल से भी महंगा हो गया है। लोगों के पास खाने-पीने की चीजें नहीं हैं। श्रीलंका में चावल-दाल दवाओं की कीमतें आसमान छू रही है। पैरासीटामोल की 10 टैबलेट की पत्ती 450 रुपये में बिक रही है।
वहीं, लोगों की गुस्से और उनके हिंसक प्रदर्शन को वहाँ की राजपक्षे सरकार ने ‘आतंकी कृत्य’ बता दिया था और कहा था कि विपक्षी दलों से जुड़े ‘चरमपंथी तत्वों’ द्वारा ऐसी घटनाओं को अंजाम दिया जा रहा है। सरकार की विफलता को ढंकने के लिए वहाँ की सरकार विपक्षी दलों को जिम्मेवार ठहरा रही है।
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इस आपातकाल के जरिए राष्ट्रपति राजपक्षे ने पब्लिक सिक्युरिटी अध्यादेश के प्रावधानों को लागू कर दिया है। इससे उन्हें सार्वजनिक सुरक्षा, सार्वजनिक व्यवस्था के संरक्षण, विद्रोह के दमन, दंगा या नागरिक हंगामा या आवश्यक आपूर्ति के रख-रखाव के लिए नियम बनाने का अधिकार मिल गया है। आपातकालीन नियमों के तहत, राष्ट्रपति किसी भी संपत्ति पर कब्जा करने और किसी भी परिसर की तलाशी लेने के लिए हिरासत को अधिकृत कर सकते हैं। वे किसी भी कानून को बदल या निलंबित भी कर सकते हैं।