उन्होंने याचिका में सरकार से ये भी अपील की थी कि उन पर कोई अधिनियम, नियम, विनियम और अधिसूचनाएं लागू न की जाएं, क्योंकि ये चीजें उनसे अल्पसंख्यक समुदाय के रूप में उनके अधिकारों को छीन लेती हैं। याचिका में एक और अपील किगई थी की शैक्षणिक अधिकारियों को उस स्कूल के कामकाज में हस्तक्षेप न करने का निर्देश दिया जाए जिसे उन्होंने 1924 में तूतीकोरिन में शुरू किया था।
उन्होंने मांग की थी कि वे भारतीय संविधान के अनुच्छेद 25 से 30 के तहत प्रदत्त लाभों और विशेषाधिकारों के हकदार हैं। लेकिन अदालत ने कहा कि याचिकाकर्ताओं द्वारा पालन किए जाने वाले धार्मिक समारोहों, दर्शन या अनुष्ठानों का पालन तमिलनाडु राज्य में अन्य ब्राह्मणों द्वारा भी किया जाता है। वहीं स्कूल संबंधित अपील के के बारे मेंअदालत ने कहा कि एक समुदाय जो एक संप्रदाय का गठन नहीं करता है, वह भारत के संविधान के अनुच्छेद 26 के तहत लाभ का हकदार नहीं है।
कोर्ट ने तर्क दिया कि राष्ट्रीय अल्पसंख्यक शैक्षणिक संस्थान अधिनियम 2004 के अधिनियमन के बाद, कोई भी शैक्षणिक संस्थान जो अल्पसंख्यक दर्जे का दावा करता है, अल्पसंख्यक दर्जे की घोषणा के लिए आयोग से संपर्क कर सकता है, और उसके लिए एक सिविल सूट कायम नहीं किया जा सकता है।
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कोर्ट ने कहा कि स्मार्त ब्राह्मण केवल एक जाति/समुदाय है बिना किसी विशेष खासियत के जो उन्हें तमिलनाडु राज्य के अन्य ब्राह्मणों से अलग करता है। इसलिए, वे खुद को धार्मिक संप्रदाय नहीं कह सकते। नतीजतन, वे भारत के संविधान के अनुच्छेद 26 के तहत लाभों के हकदार नहीं हैं। यह भी पढ़ें