Childhood Education: एंट्री स्तर पर 3 से 6 वर्ष के बच्चों की शिक्षा पर GDP का 1.2 से 2.2 पर्सेंट हो खर्च, एनजीओ सेव द चिल्ड्रन ने रिपोर्ट जारी की
भारत में तीन से छह साल की उम्र के बच्चों की एंट्री लेवल पर मिलने वाली शिक्षा पर देश की GDP का सिर्फ 0.1 परसेंट ही खर्च किया जाता है। सेव द चिल्ड्रन एनजीओ ने मंगलवार को अपनी रिपोर्ट जारी करते हुए इन आंकड़ों के बारे में जानकारी देते हुए दावा किया। एनजीओ के अनुसार इन छोटे उम्र के बच्चों के लिए देश भर में केंद्र व राज्य सरकारों को कदम उठाने चाहिए। एनजीओ की एजुकेशन हेड कमल गौड़ ने पत्रिका से बातचीत में कहा कि इन बच्चों के लिए देश के जीडीपी का 1.2 से 2.2 पर्सेंट तक खर्च किया जाना चाहिए।
सेद द चिल्ड्रन एनजीओ ने मंगलवार को इंडिया इंटरनेशनल सेंटर एनेक्स में अर्ली चाइल्डहुड एजुकेशन (ECE) की भारत की स्थिति पर रिपोर्ट जारी की।
सेद द चिल्ड्रन एनजीओ ने मंगलवार को इंडिया इंटरनेशनल सेंटर एनेक्स में कार्यक्रम का आयोजन किया। जिसमें अर्ली चाइल्डहुड एजुकेशन (ECE) की भारत की स्थिति पर रिपोर्ट जारी करते हुए कहा कि देश में तीन से छह साल की उम्र के बच्चों की प्राथमिक शिक्षा पर देश के जीडीपी का 1.2 से 2.2 पर्सेंट तक खर्च किया जाना चाहिए। एनजीओ ने कई मॉडल टाइप को भी साझा किया। इसमें दो परिदृश्यों पर दो टाइप के मॉडल को प्रस्तुत किया गया। पहले परिदृश्य के तहत ECE में 3 से 6 साल की उम्र के देश के सभी बच्चों को देश की जीडीपी के कुल फीसद लागत को खर्च करने का विश्लेषण करते हुए मॉडल पेश किया। इस मॉडल में बताया गया कि प्री स्कूलों और डे केयर सेंटर में 1.6 से 2.5 परसेंट देश की जीडीपी का खर्च किया जा सकता है। वहीं, आंगनबाड़ी केंद्रों में 1.5 से 2 पर्सेंट तक देश के जीडीपी का खर्च किया जा सकता है। वहीं, प्राइमरी स्कूलों में प्री प्राइमरी सेक्शन में 2.1 से 2.2 पर्सेंट तक देश की कुल जीडीपी का खर्च किया जा सकता है।
ईसीई सुविधा में एनरोल न होने वालों के लिए भी जारी किए आंकड़े वहीं, दूसरे मॉडल में 3 से 6 साल के उन बच्चों का जिक्र किया गया। जो अभी ईसीई की सुविधा में एनरोल नहीं हैं। इस मॉडल में एनजीओ ने विश्लेषण करते हुए आंकड़े जारी किए। जिसमें बताया गया कि सिर्फ प्री स्कूलों और डे केयर सेंटर में 0.6 से 0.9 पर्सेंट देश की जीडीपी का खर्च किया जा सकता है। वहीं, सिर्फ आंगनवाड़ी केंद्रों में 0.5 से 0.8 पर्सेंट तक देश के जीडीपी का खर्च किया जा सकता है। इसके अलावा एनजीओ ने उम्मीद जताई कि प्राइमरी स्कूलों में प्री प्राइमरी सेक्शन में 0.78 से 0.82 पर्सेंट तक देश की कुल जीडीपी का खर्च किया जा सकता है।
ईसीई के मुद्दे पर होने लगी है चर्चा एनजीओ की एजुकेशन हेड कमल गौड़ ने कहा कि ईसीई एक प्रक्रिया से गुजरता है। यह आसान कार्य नहीं है। यह अच्छी बात है कि इस पर अब चर्चा होने लगी है। हम इस मुद्दे को राज्य समेत राष्ट्रीय स्तर पर विभिन्न संस्थाओं के सामने लेकर जाना चाहते हैं और चर्चा करना चाहते हैं। साथ ही राज्य सरकारें और केंद्र सरकार के समक्ष भी इसको लेकर बातचीत करना चाहते हैं।
बच्चों की शिक्षा पर हुआ पैनल डिस्कशन कार्यक्रम में इन बच्चों की शिक्षा पर एक पैनल डिस्कशन भी हुआ। जिसमें विशेषज्ञों ने राय दी कि देश में इन बच्चों पर कॉस्ट को देखकर खर्च न करें बल्कि इंवेस्टमेंट के तौर पर तीन साल या इससे भी ज्यादा समय तक खर्च करें। इस मुद्दों को लेकर चर्चा की जानी चाहिए कि एंट्री लेवल पर बच्चों को शिक्षा मुहैया हो सके। इसमें राजनीतिक व प्रशासनिक इच्छाशक्ति की जरूरत है। पैनल में मौजूद विशेषज्ञ शुभरत दास ने कहा कि ऐसी भी अवधारणा है कि उच्च प्रशासनिक स्तर पर यानी मुख्यमंत्री के स्तर पर सिर्फ नतीजों के बारे में चर्चा होती है। नतीजों की मूरत रूप नजर आनी चाहिए जैसे सड़कों, एयरपोर्ट इंफ्रास्ट्रक्चर पर अगर रुपये खर्च किए जाते हैं। तो इनके निर्माण होने के बाद वह नजर आते हैं। लेकिन इन छोटे बच्चों की शिक्षा पर फंड खर्च करने के लिए सिर्फ लागत के रूप में उस फंड को देखा नहीं जाना चाहिए। बल्कि उनके पर फंड खर्च करते हुए उसे इंवेस्टमेंट के तौर पर देखा जाना चाहिए। सेंट्रल फाइनेंस कमीशन ग्रांट और स्टेट फाइनेंस कमीशन ग्रांट इन बच्चों को मिलनी चाहिए। उन्होंने दावा करते हुए कहा कि मौजूदा समय में तीन से छह साल की उम्र के बच्चों पर सरकारी स्कूलों में प्रत्येक बच्चे पर सिर्फ एक हजार रुपये वार्षिक तौर पर खर्च होते हैं। जबकि, प्राइवेट स्कूलों में इन उम्र के बच्चों में प्रत्येक बच्चों पर 13 हजार रुपये वार्षिक तौर पर खर्च होते हैं। जबकि, कई जगहों पर प्राइवेट स्कूलों में यह आंकड़ा 1 लाख 25 हजार तक भी वार्षिक तौर पर जाता है।
बच्चों के बौद्धिक विकास के लिए जरूरी है ईसीई का महत्व
एनजीओ के कार्यक्रम में विभिन्न पहलुओं व आंकड़ों को प्रस्तुत करते हुए अपनी बातें रखीं। विशेषज्ञों ने कहा कि इन तीन से छह साल के छोटे उम्र के बच्चों में बौद्धिक विकास के लिए ईसीई का महत्व जरूरी है। आर्थिक रूप से कमजोर वर्ग के इन बच्चों के लिए देश की जीडीपी में निर्धारित फंड खर्च किया जाना चाहिए।
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