-दिल्ली से बाहर भी जनता इस राजनीतिक स्टार्टअप को आजमाने को तैयार
-दो राज्यों में सरकार वाली अकेली क्षेत्रीय पार्टी होगी आप
-अब फटाफट नतीजे ला कर काम दिखाने का मौका होगा
-केंद्र की अड़चन का बहाना नहीं होगा, नतीजे दिखाने होंगे
-आप ने पंजाब में नहीं किया दलबदलुओं से परहेज
मुकेश केजरीवाल, चंडीगढ़
चंडीगढ़ से गांधीनगर की दूरी 1200 किलोमीटर है। लेकिन पंजाब के नतीजे आते ही ज्यादातर गंभीर राजनीतिक खिलाड़ी गुजरात की टिकट कटवाने में जुट गए हैं। क्योंकि पंजाब के नतीजे वर्तमान से ज्यादा भविष्य के लिए मायने रखते हैं। आप को अब लग रहा है कि उसके लिए कांग्रेस की जगह लेना आसान है। भाजपा परेशान है कि लोग नए को आजमाने को भी तैयार हैं। कांग्रेस को चिंता है कि विपक्ष में एक और पार्टी के आने से भाजपा को हराना उसके लिए और मुश्किल होता जाएगा।
पौने तीन करोड़ आबादी वाले सूबे ने 135 करोड़ को झकझोरा
हाल के किसी दूसरे चुनाव ने इतना हैरान नहीं किया। खेल कोई हो, जीत जितनी चौंकाने वाली हो उतनी बड़ी मानी जाती है। फिर पंजाब में सिर्फ आप जीती नहीं है, लगभग जितने भी कद्दावर और स्थापित नेता थे, सब के सब एक साथ धराशायी हो गए हैं। फिर चाहे मौजूदा सीएम चन्नी हों, कांग्रेस के सबसे मजबूत क्षत्रप माने जाने वाले कैप्टन हों या फिर बादल पिता-पुत्र हों सब हार गए हैं। तभी तो महज पौने तीन करोड़ आबादी वाले सूबे ने 135 करोड़ लोगों की राजनीति को झकझोर दिया है।
यूनीकॉर्न के दर्जे पर पहुंचा स्टार्टअप
आम आदमी पार्टी के रूप में एक राजनीतिक स्टार्टअप ने वर्तमान में एक साथ दो राज्यों में सरकार बनाने वाली अकेली क्षेत्रीय पार्टी बन कर जैसे यूनीकॉर्न (एक अरब डॉलर की बड़ी कंपनी) का दर्जा हासिल कर लिया है। अब यह दिल्ली की पार्टी के खाने से बाहर निकल गई है और फिर से देश की राजनिति में विकल्प पेश करने का ताल ठोंकने लगी है। लोगों की नजर इसिलए भी है कि पंजाब पूर्ण राज्य है और जल्दी ही या तो यहां अपने ‘विकास मॉडल’ को कामयाब कर और लोकप्रिय होगी या फिर केंद्र की अड़चन का बहाना गंवा कर नजरों से उतर जाएगी।
आप की थीं कई कमियां-कमजोरियां
राजनीति को गंभीरता से लेने पंजाब के नतीजों को इसलिए भी बहुत गंभीरता से ले रहे हैं क्योंकि यहां केजरीवाल के पास संगठन तो नहीं ही था पिछले लोकसभा और विधानसभा चुनाव में हारे हुए का ठप्पा भी लग चुका था। ऊपर से पिछली बार की तरह सिर्फ राजनीति को बदलने वालों की बजाय पार्टी बदलने वालों को भी खूब मौका दिया। स्थानीय अस्मिता और अपनी अलग पहचान को ले कर सतर्क रहने वाले पंजाब में केजरीवाल के नेतृत्व को मंजूरी दिलाना भी आसान नहीं था।
गुजरात और हिमाचल का मुकाबला हुआ और रोचक
पंजाब के नतीजों ने इस साल होने जा रहे गुजरात और हिमाचल प्रदेश के चुनावों को और दिलचस्प बना दिया है। दोनों ही जगह भाजपा और कांग्रेस के बीच मुकाबला रहा है। गुजरात में शुक्रवार को ही पीएम नरेंद्र मोदी रोडशो सहित कई कार्यक्रम करेंगे। वहीं आम आदमी पार्टी की पूरी चुनाव मशीनरी इसी हफ्ते वहां रवाना हो जाएगी। यहां तक कि कांग्रेस ने भी अपने साथ जुड़े चुनावी प्रोफेशल्स को गुजरात रवाना होने का आदेश जारी कर दिया है।
आप को हर वर्ग, संप्रदाय ने स्वीकारा
इस चुनाव के बाद आप पर सिर्फ किसी एक वर्ग या संप्रदाय के समर्थन का ठप्पा भी नहीं लग सकेगा। राज्य में पिछली बार जहां उसके 20 में से 18 विधायक सिर्फ मालवा से आए थे, इस बार उसे माझा और दोआबा की जनता ने भी उसी तरह स्वीकार किया है। अलग-अलग वर्ग और धर्म के प्रभाव वाली सीटों की सभी श्रेणियों में आप ने बढ़त हासिल की है।
केंद्रीय राजनीति में आने के लिए लंबा रास्ता
हालांकि केंद्रीय राजनीति में अपनी ताकत दिखाने से पहले आप को हर हाल में राज्यों में अपनी ताकत दिखानी होगी। वर्ना दिल्ली में भी लोगों ने विधानसभा में भारी-भरकम जीत देने के तुरंत बाद पिछले लोकसभा चुनाव में तीसरे स्थान पर धकेल दिया था।