धर्मेंद्र प्रधान ने हरियाणा का चुनाव प्रभारी बनने के तुरंत बाद अपना कैम्प रोहतक, कुरुक्षेत्र, पंचकुला बनाकर रखा। हेलीकॉप्टर लेकर बड़ी सभा करने की जगह कार से ग्राउंड जीरो पर जाकर छोटी छोटी बैठकें करने पर ध्यान दिया। कार्यकर्ताओं से मीटिंग कर रियलटाइम फीडबैक लेते और नेतृत्व को अवगत कराकर कमियों को तुरंत दुरुस्त करते। हरियाणा में रुठों को मनाया भी और कमजोर बूथों की पहचान कर दूसरे दलों के मज़बूत कार्यकर्ताओं को अपनाया भी। कार्यकर्ताओं को टीवी और सोशल मीडिया पर पार्टी के खिलाफ चल रही गॉसिप से निराश न होकर ज़मीन पर दोगुने जोश के साथ कार्य के लिए प्रेरित किया। रात दो से तीन बजे तक जागकर रणनीति बनाई और सुबह उठकर हर इलाक़े के प्रमुख नेताओं से पहले फ़ोन पर मीटिंग लेकर फील्ड में निकलते।
इसी तरह भाजपा ने सतीश पुनिया के संगठन कौशल को पहचानते हुए उन्हें हरियाणा का प्रदेश प्रभारी बनाया। जाट बहुल माने जाने वाले प्रदेश में राजस्थान के जाट चेहरे पुनिया को जिम्मेदारी एक रणनीति के तहत मिली। पुनिया ने रोहतक को कैंप बनाकर कार्य किया। जाट बहुल इलाकों से लेकर पूरे प्रदेश में कार्यकर्ताओं में जोश भरा। जिस तरह से जाट बेल्ट में भी पार्टी को सफलता मिली, उससे साफ है कि वे नेतृत्व की उम्मीदों पर खरे उतरे। इसी तरह जब बिप्लब देब त्रिपुरा के मुख्यमंत्री पद से हटे थे तो उन्हें पार्टी ने राज्यसभा सांसद बनाकर हरियाणा का प्रदेश प्रभारी बनाया था। प्रदेश प्रभारी रहते बिप्लब ने पूरे प्रदेश में संगठन की कमियों को चिन्हित किया, जिसे पार्टी ने समय रहते दूर किया। बाद में चुनाव आने पर जब पार्टी ने धर्मेंद्र प्रधान को प्रदेश चुनाव प्रभारी बनाया तो बिप्लब को सह चुनाव प्रचार की कमान मिली।