उत्तर प्रदेश के गाजियाबाद से 30 किलोमीटर दूर स्थित मुरादनगर के सुराना गांव में लोग रक्षाबंधन का त्यौहार नहीं मनाते हैं। गांव के लोग इस दिन को ‘काला दिन’ भी मानते हैं। यहां के लोग 12वीं सदी से रक्षाबंधन का पर्व नहीं मनाते है। सुराना गांव पहले 11वीं सदी में सोनगढ़ के नाम से जाना जाता था। इस गांव में करीब 20 हजार से भी अधिक लोग निवास करते हैं। माना जाता है कि इस गांव ने बहुत से योद्धाओं और बाहुबलियों को जन्म दिया है।
इस गांव के मूल निवासियों के अनुसार 12वीं सदी में मोहम्मद गौरी ने रक्षा बंधन के दिन इस गांव पर आक्रमण कर कत्लेआम मचाया था। गांव के लोगों के अनुसार, सन 1206 में राजस्थान से आए पृथ्वीराज चौहान के वंशज सोन सिंह राणा ने हिंडन नदी के किनारे डेरा डाला था। जब मोहम्मद गौरी को पता चला कि सोहनगढ़ में पृथ्वीराज चौहान के वंशज रहते हैं, तो उसने रक्षाबंधन वाले दिन सोहनगढ़ पर हमला करके औरतों, बच्चों, बुजुर्ग और जवान युवकों को हाथियों के पैरों तले जिंदा कुचलवा दिया। मायके में होने के कारण महज एक महिला जयकौर ही जीवित बची थी। मुगलों के आक्रमण के दौरान जयकौर अपने दो बेटों लखन व चूंडा के साथ राजस्थान ददहेड़ा गई हुई थी।
वहीं, मोहम्मद गौरी के हमले के बाद गांव फिर से आबाद हुआ और फिर से रक्षाबंधन का त्योहार मनाया गया। लेकिन उसी समय गांव का एक बच्चा विकलांग हो गया। इसके बाद से ही रक्षाबंधन को शापित मानकर गांववालों ने इस त्योहार को मनाना बंद कर दिया। ग्रामीणों का कहना है कि रक्षाबंधन न मनाने की प्राचीन परंपरा को कई बार तोड़ने की कोशिश की गई, लेकिन हर बार ऐसी अनहोनी हो जाती है कि ग्रामीण इस त्योहार को मनाने से पीछे हट जाते हैं।