अगर भारत में आरक्षण के इतिहास की बात करें तो इसके लिए हमें कई सालों पीछे जाना होगा। दरअसल, भारत में आजादी से पहले ही नौकरियों और शिक्षा में पिछड़ी जातियों के लिए आरक्षण देने की शुरुआत हो चुकी थी। इसके लिए विभिन्न राज्यों में विशेष आरक्षण के लिए समय-समय पर कई आंदोलन हुए हैं। जिनमें राजस्थान का गुर्जर आंदोलन, हरियाणा का जाट आंदोलन और गुजरात का पाटीदार (पटेल) आंदोलन प्रमुख हैं।
क्या है आरक्षण का अर्थ आरक्षण (Reservation) का अर्थ अपना जगह सुरक्षित करना है। यात्रा करने के लिए रेल का डिब्बा हो, किसी भी स्तर पर चुनाव लड़ना हो या फिर किसी सरकारी विभाग में नौकरी पाना हो। हर किसी की इच्छा होती है उस स्थान पर शख्स की जगह सुरक्षित हो।
आखिर क्यों दिया जाता है आरक्षण भारत में सरकारी सेवाओं और संस्थानों में पर्याप्त प्रतिनिधित्व नहीं रखने वाले पिछड़े समुदायों तथा अनुसूचित जातियों और जनजातियों के सामाजिक और शैक्षिक पिछड़ेपन को दूर करने के लिए भारत सरकार ने सरकारी तथा सार्वजनिक क्षेत्रों की इकाइयों और धार्मिक/भाषाई अल्पसंख्यक शैक्षिक संस्थानों को छोड़कर सभी सार्वजनिक तथा निजी शैक्षिक संस्थानों में पदों तथा सीटों के प्रतिशत को आरक्षित करने के लिए कोटा प्रणाली लागू की है। भारत के संसद में अनुसूचित जाति और अनुसूचित जनजाति के प्रतिनिधित्व के लिए भी आरक्षण नीति को विस्तारित किया गया है।
ज्योतिराव फुले ने भारत में रखी आरक्षण की नींव भारत में आरक्षण की शुरूआत 1882 में हंटर आयोग के गठन के साथ हुई थी| उस दौरान विख्यात समाज सुधारक महात्मा ज्योतिराव फुले ने सभी को नि:शुल्क और अनिवार्य शिक्षा तथा अंग्रेज सरकार की नौकरियों में आनुपातिक आरक्षण/प्रतिनिधित्व की मांग की थी। इसके बाद 1891 के आरंभ में त्रावणकोर के सामंती रियासत में सार्वजनिक सेवा में योग्य मूल निवासियों की अनदेखी और विदेशियों को भर्ती करने के खिलाफ प्रदर्शन किया। इसके साथ ही सरकारी नौकरियों में भारतीयों के लिए आरक्षण की मांग उठाई।
भारत सरकार अधिनियम में आरक्षण का प्रवाधान 1901 में महाराष्ट्र के सामंती रियासत कोल्हापुर में शाहू महाराज द्वारा आरक्षण की शुरूआत की गई। यह अधिसूचना भारत में दलित वर्गों के कल्याण के लिए आरक्षण उपलब्ध कराने वाला पहला सरकारी आदेश है। वहीं 1908 में अंग्रेजों द्वारा बहुत सारी जातियों और समुदायों के पक्ष में, प्रशासन में जिनका थोड़ा-बहुत हिस्सा था, के लिए आरक्षण शुरू किया गया। 1909 और 1919 में भारत सरकार अधिनियम में आरक्षण का प्रावधान किया गया।
मद्रास प्रेसीडेंसी का जतिगत सरकारी आज्ञापत्र
1921 में मद्रास प्रेसीडेंसी ने जातिगत सरकारी आज्ञापत्र जारी किया। इस पत्र में गैर-ब्राह्मणों के लिए 44 प्रतिशत, ब्राह्मणों के लिए 16 प्रतिशत, मुसलमानों के लिए 16 प्रतिशत, भारतीय-एंग्लो/ईसाइयों के लिए 16 प्रतिशत और अनुसूचित जातियों के लिए 8 प्रतिशत आरक्षण की व्यवस्था की गई थी। वही 1935 में भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस ने प्रस्ताव पास किया, जो पूना समझौता कहलाता है। इस प्रस्ताव में दलित वर्ग के लिए अलग निर्वाचन क्षेत्र की मांग की गई थी।
भीमराव अम्बेडकर ने मांगा अनुसूचित जातियों के लिए आरक्षण
साल 1935 के भारत सरकार अधिनियम में आरक्षण का प्रावधान किया गया था। 1942 में बी. आर. अम्बेडकर ने अनुसूचित जातियों की उन्नति के समर्थन के लिए अखिल भारतीय दलित वर्ग महासंघ की स्थापना की। उन्होंने सरकारी सेवाओं और शिक्षा के क्षेत्र में अनुसूचित जातियों के लिए आरक्षण की मांग की। 1946 के कैबिनेट मिशन प्रस्ताव में अन्य कई सिफारिशों के साथ आनुपातिक प्रतिनिधित्व का प्रस्ताव दिया गया था।
आजादी के बाद भारत में आरक्षण
इन घटनाक्रमों के बाद 15 अगस्त 1947 को देश आजाद हुआ और 26 जनवरी 1950 को भारत में संविधान लागू हो गया। भारतीय संविधान में सभी नागरिकों के लिए समान अवसर प्रदान करते हुए सामाजिक और शैक्षिक रूप से पिछले वर्गों या अनुसूचित जाति और अनुसूचित जनजाति की उन्नति के लिए संविधान में विशेष धाराएं रखी गई हैं। इसके अलावा 10 सालों के लिए उनके राजनीतिक प्रतिनिधित्व को सुनिश्चित करने के लिए अनुसूचित जातियों और जनजातियों के लिए अलग से निर्वाचन क्षेत्र आवंटित किए गए थे, जिसे हर दस साल के बाद सांविधानिक संशोधन के जरिए इन्हें बढ़ा दिया जाता है।
कालेलकर आयोग में आरक्षण की सिफारिश पर फैसला 1953 में सामाजिक और शैक्षिक रूप से पिछड़े वर्ग की स्थिति का मूल्यांकन करने के लिए कालेलकर आयोग का गठन किया गया था। इस आयोग के द्वारा सौंपी गई अनुसूचित जातियों और अनुसूचित जनजातियों से संबंधित रिपोर्ट को स्वीकार कर लिया गया, लेकिन अन्य पिछड़ी जाति (OBC) के लिए की गई सिफारिशों को अस्वीकार कर दिया गया।
इसके बाद 1979 में सामाजिक और शैक्षिक रूप से पिछड़े वर्गों की स्थिति का मूल्यांकन करने के लिए मंडल आयोग की स्थापना की गई। इस आयोग के पास अन्य पिछड़े वर्ग (OBC) के बारे में कोई सटीक आंकड़ा था और इस आयोग ने ओबीसी की 52% आबादी का मूल्यांकन करने के लिए 1930 की जनगणना के आंकड़े का इस्तेमाल करते हुए पिछड़े वर्ग के रूप में 1,257 समुदायों का वर्गीकरण किया।
मंडल आयोग की रिपोर्ट का प्रभाव
साल 1980 में मंडल आयोग (mandal commission) ने एक रिपोर्ट पेश की और तत्कालीन कोटा में बदलाव करते हुए इसे 22% से बढ़ाकर 49.5% करने की सिफारिश की। फिर 2006 तक पिछड़ी जातियों की सूची में जातियों की संख्या 2297 तक पहुंच गई, जो मंडल आयोग द्वारा तैयार समुदाय सूची में 60% की वृद्धि है। 1990 में मंडल आयोग की सिफारिशों को विश्वनाथ प्रताप सिंह द्वारा सरकारी नौकरियों में लागू किया गया। छात्र संगठनों ने इसके विरोध में राष्ट्रव्यापी प्रदर्शन शुरू किया और दिल्ली विश्वविद्यालय के छात्र राजीव गोस्वामी ने आत्मदाह की कोशिश की थी।
अगड़ी जातियों में आरक्षण की शुरुआत 1991 में नरसिम्हा राव सरकार ने अलग से अगड़ी जातियों में गरीबों के लिए 10% आरक्षण की शुरूआत की। 1992 में इंदिरा साहनी मामले में सर्वोच्च न्यायालय ने अन्य पिछड़े वर्गों के लिए आरक्षण को सही ठहराया। सन 1995 में संसद ने 77वें सांविधानिक संशोधन द्वारा अनुसूचित जाति और अनुसूचित जनजाति की तरक्की के लिए आरक्षण का समर्थन करते हुए अनुच्छेद 16(4)(ए) का गठन किया। बाद में आगे भी 85वें संशोधन द्वारा इसमें पदोन्नति में वरिष्ठता को शामिल किया गया था।
2005 में आरक्षण पर सुप्रीम कोर्ट का फैसला 12 अगस्त 2005 को उच्चतम न्यायालय ने पी. ए. इनामदार और अन्य बनाम महाराष्ट्र राज्य और अन्य के मामले में 7 जजों द्वारा सर्वसम्मति से फैसला सुनाया। इस फैसले में कहा गया कि राज्य पेशेवर कॉलेजों समेत सहायता प्राप्त कॉलेजों में अपनी आरक्षण नीति को अल्पसंख्यक और गैर-अल्पसंख्यक पर नहीं थोप सकता है। वहीं इसी साल निजी शिक्षण संस्थानों में पिछड़े वर्गों और अनुसूचित जाति तथा जनजाति के लिए आरक्षण को सुनिश्चित करने के लिए 93वां सांविधानिक संशोधन लाया गया। इसने अगस्त 2005 में सर्वोच्च न्यायालय के फैसले को प्रभावी रूप से उलट दिया।
आरक्षण नीति से बाहर क्रीमी लेयर
वर्ष 2006 से केंद्रीय सरकार के शैक्षिक संस्थानों में अन्य पिछड़े वर्गों के लिए आरक्षण शुरू हुआ। 10 अप्रैल 2008 को भारत के सर्वोच्च न्यायालय ने सरकारी धन से पोषित संस्थानों में 27% ओबीसी (OBC) कोटा शुरू करने के लिए सरकारी कदम को सही ठहराया। इसके अलावा न्यायालय ने स्पष्ट किया कि ‘क्रीमी लेयर’ को आरक्षण नीति के दायरे से बाहर रखा जाना चाहिए।
देश में क्या आरक्षण की वर्तमान स्थिति मौजूदा दौर में अगर भारत में आरक्षण की स्थिति की बात करें तो केंद्र सरकार ने उच्च शिक्षा में 49.5% आरक्षण दिया है। वहीं विभिन्न राज्य आरक्षणों में वृद्धि के लिए कानून बना सकते हैं। सर्वोच्च न्यायालय के फैसले के अनुसार 50% से अधिक आरक्षण नहीं दिया जा सकता है, लेकिन राजस्थान और तमिलनाडु जैसे कुछ राज्यों ने क्रमशः 68% और 87% तक आरक्षण का प्रस्ताव रखा है, जिसमें अगड़ी जातियों के लिए 14% आरक्षण भी शामिल है।
भारत में आरक्षण के प्रकार भारत में कई तरह से आरक्षण देने का प्रावधान है। जैसे जाति आधारित आरक्षण, प्रबंधन कोटा, जेंडर पर आधारित आरक्षण, धर्म आधारित आरक्षण, राज्य के स्थायी निवासियों के लिए आरक्षण, पूर्वस्नातक के लिए आरक्षण, आरक्षण के लिए अन्य मानदंड सहित सेवानिवृत सैनिकों के लिए आरक्षण, शहीदों के परिवारों को मिलने वाला आरक्षण और अंतर-जातीय विवाह से पैदा हुए बच्चों के लिए आरक्षण शामिल हैं।
गौरतलब है कि आज सरकार लोकसभा में संसद में संविधान के अनुच्छेद 342-ए और 366(26) सी के संशोधन विधेयक पारित होने से राज्यों के पास ओबीसी सूची में अपनी मर्जी से जातियों को अधिसूचित करने का अधिकार होगा। महाराष्ट्र में मराठा समुदाय, हरियाणा में जाट समुदाय, गुजरात में पटेल समुदाय और कर्नाटक में लिंगायत समुदाय को ओबीसी वर्ग में शामिल होने का मौका मिल सकता है।