नई दिल्ली

Rabindra Nath Jayanti 2022: नोबेल पुरस्कार पाने वाले पहले भारतीय रविंद्र नाथ टैगोर ने एक नहीं बल्कि तीन देशों का लिखा है राष्ट्रगान

रवींद्रनाथ टैगोर इतने महान कवि थे कि उन्होंने भारत, बांग्लादेश के राष्ट्रगान की रचना की और यहां तक कि उन्होंने श्रीलंका के राष्ट्रगान में भी योगदान दिया, जिसके कारण वे पूरी दुनिया में एक प्रसिद्ध व्यक्तित्व बन गए। रवींद्रनाथ टैगोर एकमात्र ऐसे व्यक्ति थे, जिन्होंने एक से अधिक देशों के लिए राष्ट्रगान लिखा था।

नई दिल्लीMay 09, 2022 / 02:57 pm

Archana Keshri

भारत के राष्ट्रगान के रचयिता, कवि और बहुमुखी प्रतिभा के धनी रवींद्रनाथ टैगोर की आज जयंती है। 9 मई 1861 में रवींद्रनाथ टैगोर का जन्म एक बंगाली परिवार में हुआ था। रवींद्रनाथ टैगोर को गुरुदेव के नाम से भी जाना जाता है। कोलकाता में पैदा हुए रबीन्द्रनाथ टैगोर ने अपनी रचनाओं के माध्यम से पूरे विश्व का भ्रमण कर लिया था। वह एशिया के पहले नोबल पुरस्कार विजेता हैं, वह कई उपन्यास, निबंध, लघु कथाएँ, यात्रावृन्त, नाटक व गाने लिखे चुके हैं। रबीन्द्रनाथ टैगोर ने साहित्य को अप्रतिम योगदान दिया है और अपने भारत देश को उसका राष्ट्रगान ‘जन गण मन’ दिया है। लेकिन कम लोग ही जानते हैं कि टैगोर ने भारत के अलवा बांग्लादेश और श्रीलंका के लिए भी राष्ट्रगान लिखा है।
बचपन में ही रवींद्रनाथ टैगोर का रुझान कविता और कहानी की ओर था। उन्होंने अपनी पहली कविता 8 साल की उम्र में लिखी थी. 1877 में वह 16 साल के थे जब उनकी पहली लघुकथा प्रकाशित हुई थी। गुरुदेव को उनकी सबसे लोकप्रिय रचना गीतांजलि के लिए 1913 में नोबेल अवॉर्ड से सम्मानित किया गया था। टैगोर को ‘नाइटहुड’ की उपाधि भी मिली हुई थी. जिसे टैगोर ने जलियांवाला बाग हत्याकांड (1919) के बाद अपनी लौटा दिया था। 1921 में उन्होंने ‘शांति निकेतन’ की नींव रखी थी। जिसे ‘विश्व भारती’ यूनिवर्सिटी के नाम से भी जाना जाता है।
वैसे तो टैगोर ने कई रचनाए लिखीं, लेकिन जब बांग्ला में उन्होंने ‘जन गन मन’ लिखा तो वह काफी पॉपुलर हुआ था। जो आगे चलकर भारत का राष्ट्रगान बन गया। वहीं, ‘आमान सोनार बंग्ला’ गुरुदेव ने ही लिखी थी, जो बाद में बांग्लादेश का राष्ट्रगान बना। इसकी रचना उन्होंने 1905 में किया था। वहीं, टैगोर ने जब शांति निकेतन में विश्व भारती, यूनिवर्सिटी की स्थापना की तो श्रीलंका के आनंद समरकून यहां पढ़ने आए थे। छह महीने बाद वह अपने देश लौट गए। यहां से लौटने के बाद उन्होंने ‘श्रीलंका माता’ की रचना की। यही रचना बाद में श्रीलंका का राष्ट्रगान बना।

यह भी पढ़ें

Mothers Day 2022: कब, क्यों और कैसे हुई मदर्स डे मनाने की शुरुआत, जानें मां से जुड़े इस खास दिन का इतिहास

बताया जाता है कि आनंद समाराकून ने 1940 में ‘नमो नमो माता’ की रचना की थी। यह काफी हद तक रविन्द्र नाथ टैगोर से प्रभावित थी। कुछ जानकारों का कहना है कि टैगोर ने इसका संगीत तैयार किया था। जबकि, कुछ इतिहासकारों का कहना है कि टैगोर की यह रचना थी। 1951 में यह गीत श्रीलंका का आधिकारिक राष्ट्रगान बन गया। वहीं, इस पर जब विवाद शुरू हुआ तो 1961 में ‘नमो नमो मात’ की जगह ‘श्रीलंका माता’ कर दिया गया। सीधे तौर पर कहें तो टैगोर द्वारा 1938 में लिखे इस गीत को सिंहली में अनुवादित कर वहां का राष्ट्रगान बना दिया गया।
कहा जाता है की जब सरकार ने राष्ट्रगान को ‘नमो नमो मात’ की जगह ‘श्रीलंका माता’ नाम दिया, तब सरकार द्वारा किए गए इस संशोधन का आनंद ने विरोध किया। गुस्से में आकर श्रीलंका के इस राष्ट्रगीत के रचयिता और टैगोर के शिष्य आनंदा समाराकून ने आत्महत्या कर ली और सुसाइड नोट में इसकी वजह भी लिखकर गए, लेकिन सरकार ने बदलाव फिर भी नहीं हटाया।

यह भी पढ़ें

पिता ने भेजा रिश्ता, बेटी ने लड़के को दिया जॉब का ऑफर

Hindi News / New Delhi / Rabindra Nath Jayanti 2022: नोबेल पुरस्कार पाने वाले पहले भारतीय रविंद्र नाथ टैगोर ने एक नहीं बल्कि तीन देशों का लिखा है राष्ट्रगान

Copyright © 2024 Patrika Group. All Rights Reserved.