सांसद हनुमान बेनीवाल ने मंगलवार को उच्च न्यायालय और सर्वोच्च न्यायालय न्यायाधीश (वेतन और सेवा की शर्तें) संशोधन विधेयक, 2021 की चर्चा दौरान कहा कि न्यायपालिका में कई जगह दलित-आदिवासी-पिछड़ों और अल्पसंख्यकों की बात नहीं सुनी जाती, उन्हें न्याय नहीं मिलता और जहां खुद पारदर्शिता नहीं है, वहां हम न्याय की अपेक्षा कैसे कर सकते हैं। उन्होंने कहा कि लोकतंत्र के दो स्तंभ विधान पालिका और कार्यपालिका में आरक्षण है तो न्यायपालिका में क्यों नहीं? कोलीजियम पद्धति में न्यायाधीश ही न्यायाधीश की नियुक्ति करते हैं। देश में संविधान का अनुपालन सुनिश्चित करने के लिए बनी यह संस्था अपने यहाँ नियुक्तियों पर एकाधिकार क्यों चाहती है? क्या कारण है कि आरक्षण जैसी समावेशी व्यवस्था को न्यायपालिका में तरजीह नहीं दी गई?
बेनीवाल ने कहा कि बात सिर्फ आरक्षण की नहीं है, बल्कि सबके लिए अवसर होने चाहिए। शोषित वंचित जातियों के साथ तो भेदभाव तो है ही, लेकिन गरीब सवर्ण या गरीब ब्राह्मण का लड़का-लड़की भी वहां तक पहुंचने का सपना नहीं देख सकता है। उन्होंने कहा कि देश में कोई भी व्यक्ति संघ लोकसेवा आयोग की परीक्षा पास करके भारतीय प्रशासनिक सेवा, भारतीय पुलिस सेवा आदि में जा सकता है लेकिन वो देश की शीर्ष न्यायपालिका का न्यायाधीश नहीं बन सकता है।
बेनीवाल ने कहा कि विभिन्न उच्च न्यायालयों में 400 से अधिक रिक्तियां हैं, किंतु वहां भी न्यायाधीशों की नियुक्ति की दिशा में कोई उल्लेखनीय पहल नहीं की गई। यह स्थिति तब और चिंताजनक हो जाती है जब निचली अदालतों में करीब 3.8 करोड़ और उच्च न्यायालयों में 57 लाख से अधिक तथा उच्चतम न्यायालय में एक लाख से अधिक मामले लंबित हैं। उन्होंने आरोप लगाते हुए कहा कि उच्चतर न्यायालयों में न्यायाधीशों की नियुक्तियों में भाई-भतीजावाद की शिकायतें भी आम हो गई हैं। सांसद ने राजस्थान के उदयपुर में भी उच्च न्यायालय की बेंच की मांग उठाई।
जन धन खाता धारकों से डिजिटल ट्रांजेक्शन के नाम पर शुल्क काटना न्यायोचित नहीं-
हनुमान बेनीवाल ने लोकसभा में शुन्य काल में प्रधानमंत्री जन-धन योजना के अन्तर्गत खाता धारकों से स्टेट बैंक ऑफ इंडिया सहित अन्य बैंकों की ओर से डिजिटल ट्रांजेक्शन के नाम पर गलत रूप से काटे गए शुल्क का मुद्दा उठाते हुए गलत रूप से काटी गई राशि पुन: लौटाने की मांग की। उन्होंने आईआईटी बॉम्बे की ट्रांजेक्शन शुल्क की रिपोर्ट का हवाला देते हुए कहा की 2017 से 2019 तक महीने में 4 से अधिक डिजिटल लेन देन पर 12 करोड़ जन धन खाता धारकों से स्टेट बैंक ऑफ इंडिया ने 164 करोड़ रुपए वसूले है। यह सही नहीं है आमलोगों को यह पैसे वापस लौटाने चाहिए।