2019 के विधानसभा चुनाव के दौरान सीटों को लेकर बात न बनने पर भाजपा का आजसू से गठबंधन टूट गया था। इसका नुकसान दोनों दलों को हुआ था। 2014 में जहां आजसू के साथ मिलकर चुनाव लड़ने पर भाजपा सरकार बनाने में सफल हुई थी, वहीं 2019 में गठबंधन टूटने पर सत्ता से बाहर हो गई थी। दोनों दलों ने मौके की नजाकत को समझते हुए इस बार हाथ मिलाया। आजसू 13 से 14 सीटें मांग रही थी, लेकिन भाजपा ने 10 सीटें देकर मना लिया। इससे पहले 2014 में आजसू को भाजपा ने 8 सीटें दी थीं, जिसमें 5 सीटें जीतने में सफल रही थी।
झारखंड में आदिवासियों के बाद सबसे बड़ा वोटबैंक कुर्मी समाज का है। ऐसे में आजसू को साथ रखना भाजपा के लिए मजबूरी और मजबूती दोनों का मामला है। राज्य में 16 प्रतिशत कुर्मियों की आबादी है और इस वर्ग में आजसू मुखिया सुदेश महतो का अच्छा प्रभाव है। लोकसभा चुनाव में भाजपा ने आजसू को गिरिडीह की सीट दी थी, जिसे पार्टी जीतने में सफल रही थी।