जस्टिस डॉ रविरंजन व जस्टिस सुजीत नारायण प्रसाद की खंडपीठ ने झारखंड सरकार की उन दलीलों को खारिज कर दिया, जिनमें इस याचिका को निरस्त करने की मांग की गई थी। बता दें, मुख्यमंत्री और राज्य सरकार मामले को खारिज कराने के लिए हाईकोर्ट पहुंचे थे। हाईकोर्ट ने अपनी व्यवस्था में कहा था कि पहले हाईकोर्ट विचार करेगा कि याचिका सुनवाई योग्य है या नहीं।
सोरेन और उनके परिवार के सदस्यों के खिलाफ दो जनहित याचिकाएं दायर की गई हैं। एक सोरेन द्वारा खुद को 2021 में दिए गए पत्थर खनन पट्टे से संबंधित है, जिसे उन्होंने इस साल 4 फरवरी में आत्मसमर्पण कर दिया था। दूसरी जनहित याचिका इन आरोपों से संबंधित है कि सोरेन और उनके परिवार के सदस्यों ने कथित तौर पर शेल कंपनियों में अपने सहयोगियों के माध्यम से बेहिसाब धन जमा किया है।
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राज्य सरकार की ओर से सुप्रीम कोर्ट में स्पेशल लीव पिटीशन (SLP) दायर कर झारखंड हाईकोर्ट के फैसले को सुप्रीम कोर्ट में चुनौती दी गयी है। शिवशंकर शर्मा नामक व्यक्ति की ओर से दायर याचिका में आरोप लगाया गया है कि सीएम हेमंत सोरेन के कई करीबियों ने कई शेल कंपनियों में बड़े पैमाने पर निवेश किया है, जिसमें 88 डिसमिल जमीन पर आवंटित माइनिंग लीज की जांच CBI व ED से कराने की मांग को लेकर झारखंड हाइकोर्ट में जनहित याचिका दायर की है, जिसे अदालत ने अभी इसे स्वीकार नहीं किया है। हाईकोर्ट ने सभी पक्षों को सुनने के बाद शुक्रवार को जारी आदेश में इसे मेंटनेबल बताया है। अब याचिका की मेरिट पर विस्तृत सुनवाई के लिए 10 जून की तारीख तय की गई है। 10 जून के दिन सुनवाई के लिए यह पहला केस होगा।
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