नई दिल्ली. लोकसभा चुनाव में कांग्रेस भले ही 99 सीटें जीत गई हो, लेकिन कई बड़े राज्यों में अपेक्षाकृत सफलता नहीं मिलने से कांग्रेस में बेचैनी है। खासतौर पर छह राज्यों में हार के कारण तलाशने के लिए कांग्रेस की फेक्ट फाइडिंग कमेटियां नेताओं और कार्यकर्ताओं से फीडबैठक ले रही है। कमेटियों ने प्रारंभिक रिपोर्ट में कमजोर संगठन, खराब उम्मीदवार और नेताओं-कार्यकर्ताओं का जनता से कटाव को जिम्मेदार बताया हैै। इसके अलावा दिल्ली में शराब घोटाले के आरोपों के चलते आप के साथ चुनाव लडऩा कांग्रेस के लिए घातक साबित हुआ है। कमेटियां जल्द ही आलाकमान को विस्तृत रिपोर्ट सौंपने जा रही है, जिसके बाद कई प्रदेशों के संगठनों में बड़ा बदलाव देखने को मिल सकता है।
दरअसल, कांग्रेस को छत्तीसगढ़ में विधानसभा चुनाव के बाद लोकसभा चुनाव में सिर्फ एक सीट जीतने से बड़ा झटका लगा। इसी तरह मध्यप्रदेश में कमलनाथ की परंपरागत सीट छिंदवाड़ा और दिग्विजय सिंह की राजगढ़ समेत सभी 29 सीटों पर हार मिली। वहीं दिल्ली व ओडिशा में कांग्रेस के सफाये के साथ सत्तारूढ़ कर्नाटक व तेलंगाना में अपेक्षाकृत सफलता नहीं मिलना भी पार्टी को परेशान कर गया। इन छह राज्यों के अलावा पार्टी पश्चिम बंगाल, आंध्र प्रदेश, हिमाचल प्रदेश व उत्तराखंड में पार्टी का खाता नहीं खुलने से चिंतित है।
संगठन के साथ रणनीति में होगा बदलाव
कांग्रेस सूत्रों का कहना है कि खराब प्रदर्शन वाले राज्यों के संगठन में बदलाव के साथ रणनीति में भी बदलाव होगा। इसकी शुरुआत पश्चिम बंगाल से होने जा रही है। जहां जल्द ही नया प्रदेश अध्यक्ष नियुक्त करने के साथ सीपीएम से पल्ला झाड़ा जाएगा। कांग्रेस की रणनीति टीएमसी की बजाय भाजपा से मुकाबले की रह सकती है। इसी तरह दिल्ली में अब कांग्रेस आक्रमक रूप से आप पर हमला कर विधानसभा चुनाव की तैयारी में जुटने वाली है। हिमाचल प्रदेश और उत्तराखंड में विधानसभा चुनाव के लिए अलग रणनीति पर काम होगा।
छत्तीसगढ़: नेताओं का अहंकार, घोटालों से बदनामी
कांग्रेस सूत्रों ने बताया कि छत्तीसगढ़ को लेकर कांग्रेस में सबसे अच्छा माहौल था, लेकिन सबसे बुरी हार यही मिली है। इसकी वजह पार्टी के कई बड़े नेताओं का अहंकारी होकर कार्यकर्ताओं से दूरी बनाकर रखना। यह नेता भाजपा से ज्यादा अपने प्रतिद्वंदी नेताओं को हराने में जुटे रहे। साथ ही सरकार रहते हुए कई घोटालों के आरोपों की बदनामी का असर विधानसभा के बाद लोकसभा चुनाव में दिखा। जबकि एक-दो सीटों पर खराब उम्मीदवार उतारने का कारण भी बताया जा रहा है।
मध्यप्रदेश: चरमराया संगठन, हताश नेता-कार्यकर्ता
इस बार दिग्गज नेता कमलनाथ की परपंरागत सीट छिंदवाड़ा से उनके बेटे नकुलनाथ की हार से मध्यप्रदेश में कांग्रेस की बदतर स्थिति सामने आ गई। फेक्ट फाइडिंग कमेटी के सामने कार्यकर्ताओं ने साफ कह दिया कि संगठन बेहद कमजोर है। वहीं नेता भी जनता की नब्ज को पकड़ नहीं पा रहे हैं। ऐसी सूरत में कई नेताओं और कार्यकर्ताओं का पार्टी छोडऩा कोढ़ में खाज कर गया है। नेताओं और कार्यकर्ता घोर निराशा में डूबे थे, जिसका चुनाव प्रचार में असर दिखा। भाजपा के नरेटिव और उसके उठाए मुद्दों का जवाब देने के लिए प्रदेश स्तर पर पार्टी का एक भी नेता सामने नहीं आ सका।
दिल्ली: शराब घोटाले से कांग्रेस को नुकसान
आप के साथ चुनाव लडऩे को लेकर दिल्ली के कांग्रेस नेता कभी भी एकमत नहीं थे। आखिर में लगातार तीसरी बार दिल्ली में कांग्रेस का खाता नहीं खुला। वहीं अब कांग्रेस नेता खुलकर कहने लगे हैं कि शराब घोटाले को कांग्रेस ने उजागर किया था, जिसमें अरविंद केजरीवाल की गिरफ्तारी भी हुई। इसी तरह चुनाव के दौरान स्वाति मालीवाल के प्रकरण से समीकरण गड़बड़ हो गए। पार्टी नेताओं का मानना है कि देश में कांग्रेस के पक्ष में माहौल था। यदि अकेले लड़ते तो शायद प्रदर्शन कुछ अच्छा होता।
तेलंगाना व कर्नाटक में चुनौती
भाजपा ने कांग्रेस की सरकार वाले दोनों राज्यों में अच्छा प्रदर्शन किया है। यही वजह है कि पार्टी यहां हार के कारणों को तलाश रही है। कर्नाटक में रिश्तेदारों के चुनाव में उतारने के साथ आपसी कलह को बड़ा कारण बताया जा रहा है। तेलंगाना में मुख्यमंत्री रेवंत रेड्डी को फ्री हेंड देकर अन्य नेताओं की उपेक्षा करना भारी पड़ गया।