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नई दिल्ली

Earthquake Assessment: पुराने बिल्डिंग स्ट्रक्चर व ब्रिजों पर भूकंप के आकलन की जरूरत : प्रो दीप्ति रंजन साहू, आईआईटी दिल्ली

तुर्की और सीरिया में आए भूकंप के बाद अब भारत में चिंताएं बढ़ गई हैं। भूकंप के लिए हाई रिस्क वाले सिस्मिक जोन 4 और 5 में देश के कई राज्य आते हैं। ऐसे में अब इस बात पर काफी ज्यादा ध्यान देने की जरूरत है कि भारत में भूकंप अवरोधी स्ट्रक्चर को भी ज्यादा से ज्यादा तैयार करने की दिशा में उचित कदम उठाए जाएं और साथ ही पुरानी बिल्डिंगों को कैसे भूकंप अवरोधी बनाया जा सके। आईआईटी दिल्ली के स्ट्रक्चरल इंजीनियरिंग के प्रो दीप्ति रंजन साहू ने भूकंप अवरोधी बिल्डिंग स्ट्रक्चर के संबंध में पत्रिका बातचीत की।

नई दिल्लीFeb 08, 2023 / 07:41 pm

Rahul Manav

Earthquake assessment needed on old building bridges said prof sahoo

आईआईटी दिल्ली के स्ट्रक्चरल इंजीनियरिंग के प्रो दीप्ति रंजन साहू ने भूकंप अवरोधी बिल्डिंग स्ट्रक्चर के संबंध में पत्रिका बातचीत करते हुए कहा कि पुरानी बिल्डिंग स्ट्रक्चर और ब्रिजों पर भूकंप का आकलन करने की आवश्यकता है।

आईआईटी दिल्ली (IIT Delhi) के स्ट्रक्चरल इंजीनियरिंग के प्रो दीप्ति रंजन साहू ने पत्रिका से बातचीत में बताया कि देश भर में पुरानी (2001 से पहले) प्रकार की बिल्डिंगों और ब्रिजों का इवेल्यूशन करने की आवश्यकता है। साथ ही नई बिल्डिंग स्ट्रक्चर के भी इवेल्यूशन की जरूरत है। जिससे यह पता लगाया जा सके कि वह कितनी भूकंप अवरोधी हैं और उनमें कितने रिक्टर स्केल के भूकंप को झेलने की क्षमता है। इसमें सबसे ज्यादा हाई रिस्क वाले सिस्मिक जोन 4 और 5 में पुरानी और नई बिल्डिंग स्ट्रक्चर के इवेल्यूशन करने की जरूरत है।
लाइफ लाइन स्ट्रक्चर को भूकंप अवरोधी बनाने की है जरूरत

प्रो साहू ने बताया कि हमारा सबसे ज्यादा फोकस लाइफ लाइन स्ट्रक्चर जैसे हॉस्पिटल, ब्रिज, डैम, ईंधन की पाइप लाइन, ऑप्टिकल केबल फाइबर, इंटरनेट केबल जैसे स्ट्रक्चर को भूकंप अवरोधी बनाने की जरूरत। इसके लिए नई टेक्नोलॉजी को अपनाने की जरूरत है। मौजूदा स्ट्रक्चर में भी कुछ मॉडिफिकेशन करके, रेट्रोफिटिंग करते हुए उन्हें भूकंप अवरोधी बनाया जा सकता है।
हाई रिस्क बिल्डिंगों की जांच के लिए तैयार हो रहा है कोड

प्रो साहू ने बताया कि ब्यूरो ऑफ इंडियन स्टैंडर्ड (बीआईएस) द्वारा सिविल इंजीनियरिंग डिवीजन (सीईडी) -39 कमेटी का गठन करते हुए भूकंप के लिए गाइडलाइन तैयार हो रही हैं। साथ ही सीईडी-39 के तहत कोड भी जारी किया जाएगा। जिससे देश भर में भूकंप की तीव्रता से किसी भी तरह का नुकसान बिल्डिंग स्ट्रक्चर को न हो, इसके लिए लोगों में स्ट्रक्चर के निर्माण को लेकर गाइडलाइंस जारी की जाएंगी। सीईडी-39 कोड के जरिए सभी बिल्डिंगों पर कलर कोडिंग होगी। जिसमें कलर कोड के जरिए बताया जाएगा कि कौन सी बिल्डिंग कितनी हाई रिस्क में आती है। इसमें ग्रीन, रेड जैसे कलर के जरिए बिल्डिंग के भूकंप के मद्देनजर कोडिंग की जाएगी।
बीआरबी, स्ट्रक्चरल फ्यूज तकनीकों से बिल्डिंग स्ट्रक्चर को बनाया जा सकता है भूकंप अवरोधी

प्रो साहू ने बताया कि विश्व में बक्लिंग रेजिस्टेंट ब्रेस (BRB), स्ट्रक्चरल फ्यूज (Structural Fuse) जैसी तकनीकों का इस्तेमाल करते हुए कई बिल्डिंग स्ट्रक्चर को तैयार किया जा रहा है। इससे भूकंप अवरोधी, बिल्डिंग स्ट्रक्चर को तैयार किया जा सकता है। बीआरबी, एक तरह का स्टील ट्यूब होती है। जिसे बिल्डिंग स्ट्रक्चर के पिलर के साथ लगा सकते हैं। भूकंप के आने पर बीआरबी अपने ऊपर काफी तीव्र क्षमता को खींच लेती है। जिससे भूकंप से होने वाले नुकसान से बचा जा सकता है। इसके अलावा स्ट्रक्चर फ्यूज, एक डिवाइज होता है। जिसे बिल्डिंग स्ट्रक्चर के अंदर फिट किया जाता है। यह भी भूकंप के आने पर अपने ऊपर काफी तीव्रता को खींच लेता है, जैसे बिजली मीटर में फ्यूज की तरह होता है, जब जरूरत से ज्यादा बिजली की खपत होती है। तब फ्यूज बिना मीटर को नुकसान किए, खुद जल जाता है। यह भी ठीक इसी तरीके से काम करता है। इसके अलावा बेस आइसोलेशन (Base Isolation) तकनीक का भी बिल्डिंग स्ट्रक्चर पर इस्तेमाल किया जाता है। इसमें बिल्डिंग की नींव में स्टील रोलर लगाया जाता है। जिससे भूकंप आने पर यह बिल्डिंग को जरा सा स्लाइड करता है, इससे भूकंप से होने वाले नुकसान से बचा जा सकता है।
तैयार किया है लो-कॉस्ट बीआरबी, बेहद गंभीर श्रेणी के भूकंप में है कारगर

प्रो साहू ने बताया कि पिछले दस साल से लो-कॉस्ट बीआरबी तकनीक पर रिसर्च वर्क किया है। इसमें देश में बीआरबी की किफायती टेक्नोलॉजी बिल्डिंग स्ट्रक्चर के लिए लोगों को उपलब्ध होगी। इसके पेटेंट के लिए अप्लाई कर दिया गया है। साथ ही कुछ कंपनियों से भी बात चल रही है। जिससे यह बाजार में इंडस्ट्री सेक्टर समेत लोगों को भी बिल्डिंग स्ट्रक्चर के लिए उपलब्ध करा सकें। प्रो साहू ने दावा करते हुए कहा कि इसे 8.5 से 9 रिक्टर स्केल तक की तीव्रता वाले भूकंप के मद्देनजर टेस्ट किया गया है। यह लो-कॉस्ट बीआरबी गंभीर से बेहद गंभीर यानी 8.5 से 9 रिक्टर स्केल वाले भूकंप की क्षमता को झेलने में सक्षम है। प्रो साहू ने बताया कि इस बीआरबी तकनीक रिसर्च वर्क को केंद्र सरकार के डिपार्टमेंट ऑफ साइंस एंड टेक्नोलॉजी (DST) की तरफ से रिसर्च जर्नल में प्रकाशित भी किया गया है। हालांकि, प्रो साहू ने स्पष्ट किया है कि भूकंप की तीव्रता से ज्यादा भूकंप का एपीसेंटर कहां पर है और जहां भूकंप का एपीसेंटर है और उसका प्रभाव जिस जगह पर पड़ रहा है, उस जमीन की मिट्टी कैसी है। भूकंप की तीव्रता के बाद पड़ने वाले असर पर इन सब फैक्टर के आधार पर भी निर्भर करता है। भारत समेत दुनिया भर में भूकंप अवरोधी स्ट्रक्चर के प्रति कम जागरूकता है। लेकिन अब कई लाइफ लाइन स्ट्रक्चर की कंस्ट्रक्शन भूकंप अवरोधी टेक्नोलॉजी के लिहाज से भी की जा रही है।
बीआरबी तकनीक भूकंप के बचाव में है कारगर : प्रो साहू

प्रो साहू ने बताया कि बक्लिंग रेजिस्टेंट ब्रेस (BRB) एक स्टील की ट्यूब होती है। जिसे किसी भी बिल्डिंग स्ट्रक्चर के कंस्ट्रक्शन के समय या किसी पुरानी बिल्डिंग में रेट्रोफिटिंग करते हुए लगाया जा सकते है। यह भूकंप के बचाव के लिए एक कारगर तकनीक है। इससे यह भूकंप के आने के बाद अपने ऊपर काफी क्षमता को खींच लेती है। जिससे भूकंप से होने वाले नुकसान से बचा जा सकता है।
सिस्मिक जोन-5 में भूकंप के प्रभावों की होती है ज्यादा संभावना

प्रो साहू ने बताया कि सिस्मिक जोन-5 में उच्च भूकंपीय प्रभावों की संभावना अधिक होती है। सिस्मिक जोन-5 में आने वाले इलाके फॉल्ट लाइन के ज्यादा नजदीक होते हैं। जहां से भूकंप उत्पन्न होता है या मिट्टी की स्थिति ऐसी होती है कि वह भूकंप के झटकों को बढ़ा देते हैं। सिस्मिक जोन-5 ज्यादातर हिमालय क्षेत्रों के साथ मौजूद है, जहां पर फॉल्ट लाइन मौजूद हैं। भूकंप ज्यादातर फॉल्ट लाइन में ही होते हैं। फॉल्ट लाइन में ही जमीन की अंदरूनी प्लेट्स आपस में टकराती हैं और इससे हलचल पैदा होती है। जिसके कारण भूकंप के झटके उत्पन्न होते हैं।

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