भारत में 55 स्थानों से मौसम गुब्बारों के माध्यम से सेंसर भेजकर वायुमंडलीय आंकड़ें इकट्ठे किए जाते हैं। इन गुब्बारों में रेडियोसॉन्ड, हाइजिस्टर व ट्रांसमीटर जैसे उपकरण लगाए जाते हैं। यह सीधे जीपीएस सिस्टम से जुड़ा रहता है। इससे मौसम विभाग को तापमान, हवा की दिशा व रफ्तार के साथ आर्द्रता की जानकारी मिलती है। हाइड्रोजन युक्त ये गुब्बारा 12 किलोमीटर से 38 किलोमीटर की ऊंचाई तक जा सकता है। जीपीएस सिस्टम से जुड़े होने के कारण इतनी ऊंचाई तक की पूरी जानकारी मौसम विभाग दर्ज करता है।
हालांकि, मौसम विभाग को ये गुब्बारे वापस नहीं मिल पाते हैं क्योंकि वे मौसम केंद्रों से दूर चले जाते हैं और इसमें लगे उपकरण भी इनके साथ चले जाते हैं। और इसी वजह से इन्हें दिन में कम से कम दो बार आसमान में छोड़े जाने की आवश्यकता पड़ती है, ताकि मौसम में होने वाले बदलाव की जानकारी ली जा सके। लेकिन अब जल्द ही ड्रोन इन मौसम गुब्बारों की जगह ले सकते हैं।
पृथ्वी विज्ञान मंत्रालय के सचिव एम रविचंद्रन के अनुसार, “हम अब इन वायुमंडलीय आंकड़ों को इकट्ठा करने के लिए ड्रोन का उपयोग करने की संभावना तलाश रहे हैं जो मौसम की भविष्यवाणी के लिए महत्वपूर्ण है।” मौसम गुब्बारों की तुलना में ड्रोन का सबसे अधिक लाभ यह है कि उन्हें नियंत्रित किया जा सकता है, कम या ज्यादा ऊंचाई पर उड़ने के लिए निर्देशित किया जा सकता है।
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भारत मौसम विभाग (IMD) की योजना 5 किलोमीटर की ऊंचाई तक के डेटा को इकट्ठा करने के लिए ड्रोन का उपयोग करने और पारंपरिक मौसम गुब्बारों का उपयोग करके एकत्र किए गए डाटा के साथ तुलना करने की है। तो वहीं IMD ने मौसम के आंकडें एकत्र करने के लिए ड्रोन प्रौद्योगिकी की क्षमता को परखने के लिए शिक्षाविदों और अन्य को आमंत्रित किया है। बताया जा रहा है कि मौसम के गुब्बारे की उड़ान आमतौर पर दो घंटे तक चलती है, जबकि IMD को ड्रोन का उपयोग करके 40 मिनट की उड़ान से डाटा एकत्र करने की उम्मीद है। अगर इसमें सफलता मिलती है तो गुब्बारों में लगाए जाने वाले उपकरणों के नुकसान को कम किया जा सकेगा। IMD के अनुसार वो हर दिन में 100 से गुब्बारों के जरिए उपकरणों को खो देते हैं।
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