-दक्षिणी राज्यों के खुले विरोध के चलते सियासत तेज -अमित शाह: जनसंख्या के चलते नहीं होगा किसी भी राज्य को नुकसान -जयराम: वाजपेयी ने रोका था 2031 की जनगणना तक, अब पहले जनगणना हो
नई दिल्ली। देश में लोकसभा और विधानसभा सीटों का संभावित परिसीमन 2026 में शुरू होना है। इससे पहले जनसंख्या दर घटने के चलते उत्तर राज्यों के मुकाबले दक्षिणी राज्यों में सीटों की संख्या में संभावित कम बढ़ोतरी पर सियासी पारा चढ़ चुका है। इसके चलते सियासत गरमा गई है। हालांकि गृह मंत्री अमित शाह कई मौकों पर आश्वासन दे चुके हैं कि जनसंख्या के चलते दक्षिणी राज्यों का नुकसान नहीं होने देंगे। इस बीच परिसीमन को लेकर कई रिसर्च सामने आए हैं, जिनके सहारे सरकार इसका रास्ता निकालने की कोशिश कर सकती है।
लोकसभा में सीटों की संख्या को संवैधानिक सीमा 550 से अधिक किया जाए, जिससे हर सीट की जनसंख्या पूरे देश में एक जैसी हो सकें। अमेरिका स्थित थिंक टैंक कार्नेगी एंडोमेंट फॉर इंटरनेशनल पीस के फेलो मिलन वैष्णव और जेमी हिंटसन के अनुसार 2026 की अनुमानित जनसंख्या के आंकड़े बताते हैं कि लोकसभा को 848 निर्वाचन क्षेत्रों की जरूरत होगी, ताकि रिओपोरशन से किसी भी राज्य की मौजूदा सीटें कम नहीं हो। 80 सीटों वाले उत्तर प्रदेश को परिसीमन से 143 सीटें मिलेंगी। जबकि 38 सीटें वाले तमिलनाडु को 49 सीटें मिल जाएंगी। इसी तरह 25 सीट वाले राजस्थान को 50 सीटें, 29 सीट वाले मध्यप्रदेश को 52 और 11 सीट वाले छत्तीसगढ़ में 19 सीटें हो जाएंगी।
रिटायर्ड आइएएस अधिकारी रंगराजन आर के एक जनरल में तर्क दिया गया कि भारत की जनसंख्या चरम पर पहुंचने के बाद 2060 के दशक में घटने लगेगी। इसलिए लोकसभा की सीटों की बजाय राज्य विधानसभाओं में सीटों की संख्या बढ़ाई जानी चाहिए। विधायक अपने निर्वाचन क्षेत्र के लोगों के नजदीक रहकर काम करते हैं।
कनाडा ने 2011 में संविधान में संशोधन कर बड़े, तेजी से बढ़ते प्रांतों और छोटे, धीमी गति से बढ़ते प्रांतों में संतुलन बनाने के लिए डिग्रेसिव प्रोपोर्शनल लागू किया। इकोनॉमिक एंड पॉलिटिकल वीकली में छपे एक पेपर में हैदराबाद यूनिवर्सिटी के प्रो. एस राजा सेतु दुरई और तमिलनाडु राज्य योजना आयोग के सदस्य आर श्रीनिवासन ने बताया कि कनाडाई प्रणाली को लोकसभा में लागू करने से कुल संख्या 552 हो जाएगी। उत्तर प्रदेश को नौ सीटे ज्यादा मिलेंगी, जिससे यह 89 हो जाएगी। वहीं तमिलनाडु की सीटें 39 ही रहेंगी।
प्रो. एस राजा सेथु दुरई और आर श्रीनिवासन ने टोटल फर्टिलिटी रेट (टीएफआर) को भी परिसीमन में शामिल करने का तर्क दिया। 15वें वित्त आयोग ने जनसंख्या संतुलन के लिए टीएफआर का इस्तेमाल किया, जिससे टीएफआर कंट्रोल करने वाले राज्यों को दंडित नहीं किया जाए। दुरई और श्रीनिवासन ने 2011 की जनगणना से टीएफआर-समायोजित आबादी को कैलकुलेट करने के लिए एक फॉर्मूला तैयार किया। इससे लोकसभा सीटों को 750 तक बढ़ाना होगा, लेकिन सीटों का इस तरह से रिओपोरशन किया जा सकता है कि कम स्पीड से बढ़ती आबादी वाले राज्यों को नुकसान नहीं हो। इस फॉर्मूले से उत्तर प्रदेश को 106 और बिहार को 50 सीटें मिलेंगी। तमिलनाडु जैसे कम आबादी वाले राज्य को 55 सीटें मिल सकती है।
जनसंख्या के आधार पर परिसीमन से नुक़सान की आशंका पर दक्षिण के राजनीतिक दल पहले से विरोध करते रहे हैं। यही वजह है कि 1981 और 1991 की जनगणना के बाद जनसंख्या के आधार पर परिसीमन टाल दिया गया था। ताकि जनसंख्या नियंत्रण का दक्षिण के राज्यों के हितों पर फर्क न पड़े। आखिरी बार वर्ष 2002-08 तक परिसीमन हुआ, तब 2001 की जनगणना को आधार बनाया गया। लेकिन वर्ष 1971 की जनगणना के अनुसार, विधानसभाओं और संसद में तय की गई सीटों की कुल संख्या में कोई बदलाव नहीं किया गया था।
| वर्ष | लोकसभा सीटों की संख्या | जनसंख्या (करोड़ मे) | प्रति सीट औसत जनसंख्या (लाख में) |
| 1951 | 494 | 36.1 | 7.30 |
| 1961 | 522 | 43.9 | 8.4 |
| 1971 | 543 | 54.8 | 10.1 |
प्रो - रेटा आधार पर होगा परिसीमन : केंद्र
केंद्र का कहना है कि दक्षिणी राज्यों को जनसंख्या नियंत्रण के लिए दंडित नहीं किया जाएगा और उनकी लोकसभा सीटों की संख्या में कमी नहीं होगी। गृहमंत्री अमित शाह तमिलनाडु दौरे के दौरान दक्षिण के राजनीतिक दलों को आश्वस्त कर चुके हैं कि परिसीमन में दक्षिण भारत को नुक़सान नहीं होने देंगे, परिसीमन के बाद प्रोरेटा के हिसाब से दक्षिण के एक भी राज्य की एक भी सीट कम नहीं होगी। परिसीमन में दक्षिण भारत को उचित हिस्सा दिया जाएगा और प्रोरेटा में किसी भी सीट का नुकसान गलत तरीके से नहीं होगा। इसमें कोई शंका रखने की आवश्यकता नहीं है।
कांग्रेस के राष्ट्रीय महासचिव व सांसद जयराम रमेश ने कहा कि परिसीमन, महिला आरक्षण, लोकसभा सीटों के पुनर्गठन के लिए जनगणना अनिवार्य है। जनगणना के नए आंकड़ों के आधार पर ही इस आगे बढ़ा जा सकता है। 2002 में तत्कालीन अटल बिहारी वाजपेयी सरकार ने संविधान संशोधन करके यह व्यवस्था की थी कि परिसीमन को 2026 के बाद पहली जनगणना होने तक स्थगित रखा जाएगा, जिसका अर्थ है कि यह प्रक्रिया 2031 में की जाएगी। इसी कारण 1971 की जनसंख्या को आधार मानकर परिसीमन को स्थिर रखा गया था। चार साल बीत चुके हैं, लेकिन जनगणना की कोई स्पष्ट योजना नहीं है। यदि हम 2025 की अनुमानित जनसंख्या को देखें, तो परिवार नियोजन में सफल रहे कई राज्यों को नुकसान होगा। क्या यह सही होगा कि जिन राज्यों ने प्रजनन दर को नियंत्रित किया, उन्हें दंडित किया जाए? यह पूरी तरह से अस्वीकार्य है। किसी भी राज्य को उसकी सफल जनसंख्या नीति के लिए सजा नहीं मिलनी चाहिए।