नई दिल्ली

जब थानेदार ने अंजाने में प्रधानमंत्री से ली रिश्वत, सस्पेंड हो गया पूरा थाना

जब चौधरी चरण सिंह प्रधानमंत्री बने तो बिना किसी सेक्योरिटी के वो आम लोगों के बीच पहुंच जाते थे। वो भले ही केवल 6 महीने के लिए भारत के प्रधानमंत्री रहे, लेकिन इन 6 महीनों में ही उन्होंने साबित कर दिया था कि वो एक ज़िम्मेदार नेता थे।

नई दिल्लीApr 24, 2022 / 12:30 pm

Archana Keshri

जब थानेदार ने अंजाने में प्रधानमंत्री से ली रिश्वत, सस्पेंड हो गया पूरा थाना

देश में कई ऐसे प्रधानमंत्री हुए जिन्हें अपनी सादगी के लिए जाना जाता है। चौधरी चरण सिंह उन प्रधानमंत्रियों में से एक हैं। किसान परिवार से ताल्लुक रखने वाले चरण सिंह को आम लोगों के नेता के तौर पर भी जाना जाता था। वो भले ही 6 महीनों के लिए प्रधानमंत्री बने थे मगर उन्होंने अपने काम से खुद को एक ज़िम्मेदार नेता साबित किया। चौधरी चरण सिंह को लेकर एक किस्सा काफी मशहूर है, जब उन्होंने एक थाने के सभी ऑफिसर को संस्पेंड कर दिया था।
बात सन 1979 की है, उस दौरान चौधरी चरण सिंह देश के नए-नए प्रधानमंत्री बने थे। यूपी के कई जिलों से चरण सिंह को किसानों की शिकायतें मिल रही थीं। किसानों का आरोप था कि, पुलिस ठेकेदार से घूस लेकर उन्हें परेशान कर रहे हैं। ऐसे में एक किसान नेता होने के नाते उन्होंने इस समस्या का खुद ही हल ढूंढने की कोशिश की।
एक शाम उत्तर प्रदेश के इटावा ज़िले में मैला कुचैला धोती-कुर्ता पहने एक बुज़ुर्ग किसान अपने बैल चोरी की शिकायत लिखवाने ऊसराहार थाने पहुंचा। सिपाही ने इंतजार करने को कहा। सिपाही ने इंतजार करने को कहा। कुछ देर तक इंतजार करने के बाद फिर किसान ने रपट लिखने की गुहार की, मगर सिपाही ने अनसुना कर दिया।
कुछ देर बाद सिपाही ने आकर कहा, ‘चलो छोटे दारोगा जी बुला रहे हैं।’ तो वहीं छोटे दरोग़ा साहब ने पुलिसिया अंदाज़ में उनसे कुछ आड़े-टेढ़े सवाल पूछने के बाद बिना रिपोर्ट लिखे किसान को चलता कर दिया। जब बुज़ुर्ग किसान थाने से वापस जाने लगा तो एक सिपाही ने पीछे से आवाज़ देते हुए कहा, ‘बाबा थोड़ा खर्चा-पानी दें तो रपट लिख देंगे’।
रपट लिखे जाने की बात पर तो किसान खुश हुआ, लेकिन खर्चा-पानी की बात पर उसकी पेशानी में बल पड़ गए। किसान ने गुहार की कि वह एक गरीब किसान है, लेकिन काफी अनुनय-विनय के बाद भी जब बात नहीं बनी तो किसान कुछ रकम देने पर राजी हो गया। 35 रुपये की रिश्वत लेकर रपट लिखना तय हुआ। रपट लिख कर मुंशी ने किसान के भेष में प्रधानमंत्री चौधरी चरण सिंह से पूछा, ‘बाबा हस्ताक्षर करोगे कि अंगूठा लगाओगे।’
बुज़ुर्ग किसान ने कहा कि वह हस्ताक्षर करेंगे, ऐसे में सिपाही ने शिकायत वाला कागज आगे बढ़ा दिया। किसान ने पेन उठाया और अंगूठा लगाने वाला पैड भी उठाया। जब किसान ने पैड उठाया को सिपाही सोच में पड़ गया और सवाल किया की हस्ताक्षर करना है तो पैड क्यों उठा रहा है? किसान ने कुछ न कहते हुए कागज पर हस्ताक्षर कर दिए। यहां तक सिपाही कुछ नहीं बोला लेकिन इसके बाद किसान ने अपने मैले कुर्ते की जेब से एक मुहर निकाली और स्याही वाले पैड पर रखी।

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किसान ने जहां हस्ताक्षर किए थे वहां उसने मुहर भी ठोंक दी। सिपाही ने जब ध्यान से मुहर की तरफ देखा तो उस पर लिखा था ‘प्रधानमंत्री, भारत सरकार।’ असल में ये मैले कुर्ते में बुज़ुर्ग किसान कोई और नहीं, बल्कि भारत के प्रधानमंत्री चौधरी चरण सिंह थे। मुहर देखते ही पूरे थाने में हड़कंप मच गया। उस दिन प्रधानमंत्री चौधरी चरण सिंह थाने में औचक निरीक्षण करने पहुंचे थे। चौधरी चरण सिंह ने एक्शन लेते हुए पूरे के पूरे ऊसराहार थाने को सस्पेंड कर दिया।


प्रधानमंत्री ने किसानों से मिल रही लगातार शिकायतों के बाद ऊसराहार थाने पहुंचे, उन्होंने अपने काफिलें को थाने से कुछ दुर ही रोक दिया था और अपने कुर्ते पर थोड़ी मिट्टी डाल कर अकेले ही थाने शिकायत लिखवाने चल दिए थे। उस समय प्रधानमंत्री द्वारा किए गए इस औचक निरीक्षण के बाद पूरा सिस्टम एकदम दुरुस्त हो गया था।

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