बीजेपी और कांग्रेस में टक्कर
मध्यप्रदेश के चुनावी परिदृश्य का जायजा लेने पिछले दिनों इंदौर व भोपाल प्रवास पर आए पत्रिका समूह के प्रधान संपादक गुलाब कोठारी से विभिन्न राजनीतिक दलों के प्रतिनिधियों से विचार-विमर्श के दौरान यही बात सामने आई कि यहां भाजपा व कांग्रेस में टक्कर दिखाई देती है। सबसे अधिक चर्चा मण्डला सीट की है। भाजपा ने विधानसभा चुनावों में हारे फग्गनसिंह कुलस्ते को उतारा है। सामने कांग्रेस के विधायक ओंकारसिंह मरकाम हैं। रतलाम सीट पर कान्तिलाल भूरिया वर्षों से आदिवासी चेहरा है। उनके सामने राज्य के मंत्री नागरसिंह चौहान की पत्नी अनिता सिंह हैं।
सावित्री ठाकुर के सामने राधेश्याम मुवेल
नेता प्रतिपक्ष उमंग सिंगार के प्रभाव क्षेत्र वाले धार में भाजपा की 2014 में सांसद रही सावित्री ठाकुर उम्मीदवार है वहीं उनका मुकाबला कांग्रेस से राधेश्याम मुवेल से है। इन तीनों आदिवासी सीटों के अलावा एक सीट है-राजगढ़। जहां से दिग्विजय सिंह अपने लिए सहानुभूति बटोर रहे हैं। दिग्विजय की लड़ाई सीधी राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ से है। दिग्विजय और कमलनाथ दोनों पूर्व मुख्यमंत्री हैं। छिंदवाड़ा में पसीने भाजपा को भी कम नहीं छूट रहे। मुरैना विधानसभा अध्यक्ष नरेन्द्र सिंह तोमर की सीट रही है। राजपूत और ब्राह्मण प्रमुख मतदाता है। भाजपा ने शिवमंगल सिंह को मैदान में उतारा है। कांग्रेस के नीटू सिकरवार भी राजपूत हैं। यहां वोटों का बंटवारा हुआ तो फैसला ब्राह्मणों के हाथ रहेगा।
खजुराहो में सपा का टिकट निरस्त
गठबंधन के तहत खजुराहो समाजवादी पार्टी को मिली थी। सपा ने टिकट दिया और निरस्त कर दिया। बाद में जिसे दिया, उसका निर्वाचन फॉर्म निरस्त हो गया और गठबंधन हाथ मलता रह गया। अब ऑल इंडिया फॉरवर्ड ब्लॉक के प्रत्याशी को सपा और कांग्रेस ने समर्थन देकर मुकाबले में खड़ा कर दिया है। रणनीतिक तौर पर गठबंधन को यह सीट बहुत भारी पड़ी क्योंकि भाजपा ने यहां वीडी शर्मा को फिर से मैदान में उतारा है जो कि पार्टी के प्रदेश अध्यक्ष हैं। विदिशा सीट भी स्टार उम्मीदवार के कारण चमक रही है। यहां से भाजपा ने शिवराज सिंह चौहान को उतारा है। इस सीट पर वे पांच बार सांसद रह चुके हैं। मुकाबला कांग्रेस के प्रताप भानु शर्मा से है। वे भी इसी सीट से दो बार सांसद रह चुके हैं। शिवराज के साथ उनका परिवार प्रचार में जुटा हुआ है।
ज्योतिरादित्य सिंधिया और यादवेंद्र सिंह में मुकाबला दिलचस्प
गुना पर भी सबकी निगाह है। वहां भाजपा ने ज्योतिरादित्य सिंधिया को मौका दिया है। सिंधिया बीता चुनाव कांग्रेस के टिकट पर हार गए थे। उन्हें हराने वाले केपी सिंह यादव का टिकट काट कांग्रेस ने यादवेंद्र सिंह यादव को मौका दिया है। इस बार वे छाछ को भी फूं क-फूंककर पी रहे हैं। मुकाबला दिलचस्प है। कमलनाथ, शिवराज और दिग्विजय की तरह सिंधिया के साथ भी परिवार मैदान में उतरा हुआ है। वैसे कांग्रेस सागर, दमोह और उज्जैन सीट को भी मुकाबले में मान रही है, मगर भाजपा कहती है, ‘इस बार 29 की 29 सीटें बड़े अंतर से जीतेंगे।’ कांग्रेस प्रत्याशी स्टार प्रचारकों को छोड़ जनसंपर्क और जातियों को साधने पर ही जोर दे रहे हैं तो भाजपा दल बदल के जरिए सियासी समीकरणों को अपने हाथों में लेते जा रही है। पहले चरण के बाद चुनाव के नए रंग-ढंग देखने को मिलेंगे।
आदिवासी क्षेत्र प्रभावी
मूलत: मध्यप्रदेश में आदिवासी क्षेत्र चुनावी मुद्दा बना हुआ है। इस बार मतदाता कुछ मुखर भी है। आदिवासियों को यह समझा दिया है कि भाजपा उनकी जमीनें छीनना चाहती है। कांग्रेस उनकी जमीनें लौटाना चाहती है। प्रदेश में 22 प्रतिशत आदिवासी हैं। इसी प्रकार किसान भी उत्साहित नहीं है। वोट तो मिलेगा किन्तु प्रतिशत कम हो सकता है। इनका मुख्य मुद्दा समर्थन मूल्य का है। सरकार ने चावल और गेहूं का क्रमश: 3100 और 2700 रुपए क्विंटल मूल्य तय तो कर दिया किन्तु मिला आज तक नहीं। किसान एक-एक मुट्टी धान और गेहूं देकर इसका मूल्य मांग रहे हैं। बीमा राशि (फसल) में भी भ्रष्टाचार हावी है। घोषणा हजारों-करोड़ों की होती है। घर तक बहुत कम पहुंच पाता है। नहीं भी पहुंचता। इंदौर-भोपाल के किसान एक ही भाषा में बात करते हैं। कीटनाशक, खाद, बीज पर जो खर्चा आज हो रहा है, वह भी नहीं निकले तो खेती क्यों करें।