विधेयक पर चर्चा पूरी होने के बाद जैसे ही शिक्षा मंत्री ब्रत्य बसु ने बोलना शुरू किया, भाजपा विधायक “शर्म करो, शर्म करो!” के नारे लगाने लगे। बसु ने उनसे अपनी सीट न छोड़ने का आग्रह भी किया, मगर भाजपा विधायक नारेबाजी करते हुए सदन से बाहर चले गए। भाजपा ने बिल का विरोध करते हुए कहा था कि मुख्यमंत्री को कुलाधिपति नियुक्त किए जाने से राज्य की उच्च शिक्षा प्रणाली में प्रत्यक्ष राजनीतिक हस्तक्षेप हो सकता है।
भाजपा के विधायकों ने विरोध में वॉकआउट कर लिया, और उनके सदन में उपस्थित न होने पर विधेयक ध्वनि मत से पारित किया गया। विधेयक में राज्यपाल की जगह शिक्षा मंत्री को राज्य के 11 निजी विश्वविद्यालयों का विजिटर बनाने का प्रस्ताव है। विधानसभा में विपक्ष की अनुपस्थिति में पश्चिम बंगाल विश्वविद्यालयो कानून (संशोधन) बिल 2022 पारित हो गया। इससे ठीक एक दिन पहले सोमवार को राज्यपाल को हटाकर मुख्यमंत्री को राज्य के 31 सरकारी विश्वविद्यालयों का चांसलर बनाने से संबंधित बिल पास किया गया था।
शिक्षा मंत्री ने पश्चिम बंगाल विश्वविद्यालयो कानून (संशोधन) बिल 2022 को सदन में पेश करते समय कहा था कि मुख्यमंत्री को चांसलर बनाने में कुछ भी गलत नहीं है। उन्होंने तर्क देते हुए कहा था कि अगर केंद्रीय विश्वविद्यालय विश्वभारती के चांसलर प्रधानमंत्री हो सकते हैं तो मुख्यमंत्री राज्य के विश्वविद्यालयों के क्यों नहीं? आपको बता दें, विश्वविद्यालयों के अलावा कई मुद्दों पर जुलाई 2019 में पदभार संभालने के बाद से राज्यपाल जगदीप धनखड़ और राज्य की टीएमसी सरकार आमने-सामने हैं।