जच्चा बच्चा दोनों को स्वस्थ्य रहने के लिए गर्भवती महिला को टीका लगाने के साथ ही बच्चे को बीसीजी, ओपीवी, डीपीटी, हेपेटाईटिस, पोलियो, पेंटावेलेंट, रोटावायरस आदि टीके लगाए जाते हंै। यह टीके बच्चों को जन्म के समय से लेकर 1.5 माह, 2.5 माह, 3.5 माह, 9 से 12 माह के बीच, 15 माह, 16 से 24 माह, इसी प्रकार से करीब 15 वर्ष की आयु तक लगाए जाते हैं। जिसमें 24 माह तक लगने वाले टीके काफी महत्वपूर्ण होते हैं। लेकिन आश्चर्य की बात है कि हर साल लक्ष्य निर्धारित करके टीकाकरण अभियान शुरू करने के बावजूद भी टीकाकरण का लक्ष्य पूरा होने का नाम नहीं ले रहा है।
वर्ष 2015-16 के बाद टीकाकरण में कुछ बढ़ोतरी हुई थी, लेकिन इसके बाद से फिर साल दर साल ग्राफ में कमी आती जा रही है। गए वित्तीय वर्ष में लक्ष्य के अनुपात में करीब 6 हजार से अधिक बच्चे टीकाकरण से दूर रहे हैं। लेकिन इस ओर जिम्मेदारों का ध्यान नहीं है।
भौतिक सत्यापन का अभाव
वैसे तो पहले टीके के साथ ही बच्चे का कार्ड बन जाता है। जिसके बाद हर टीके की एंट्री कार्ड में की जाती है। इस काम के लिए शहरी क्षेत्र में एएनएम सहित ग्रामीणा क्षेत्रों में आशा आंगनवाड़ी कार्यकर्ता भी लगी हुई हंै। लेकिन आश्चर्य की बात है कि हर साल हजारों बच्चे टीकाकरण से दूर हो रहे हंै। जिसका मुख्य कारण यह भी है कि समय समय पर भौतिक सत्यापन नहीं होता है। अगर ऐसा हो निश्चित ही हर बच्चे को टीका लगे।
ग्रामीण क्षेत्र की महिलाएं व बच्चों को नहीं लग पाते टीके
यूं तो लोगों में पहले की अपेक्षा अभी स्वास्थ्य के प्रति काफी जागरूकता आई है। लेकिन ग्रामीण क्षेत्र में आज भी कई महिलाएं ऐसी हैं जो अपने बच्चे को व स्वयं भी कई बार टीका नहीं लगवा पाती है। क्योंकि कई बार गृह कार्य और जागरूकता के अभाव में उन्हें यही याद नहीं रहता है कि कौन सा टीका कितना महत्वपूर्ण हैं। ऊपर से परिजन भी टीका लगवाने में आनाकानी कर देते हैं। ऐसे में टीकाकरण का लक्ष्य काफी प्रभावित हो रहा है।
स्वास्थ्य विभाग के माध्यम से हर बच्चे को टीके लगाए जाते हैं। ताकि वे विभिन्न बीमारियों से बचें। इसके लिए समय समय पर जागरूकता कार्यक्रम भी आयोजित किया जाते हैं। आशा, आंगनवाड़ी कार्यकर्ताओं द्वारा भी टीके लगवाने के लिए प्रेरित किया जाता है। लेकिन कुछ लोग जागरूकता के अभाव में टीका नहीं लगवा पाते हैं। उन्हें चाहिए कि वे कार्ड अनुसार या टीकाकरण केंद्र पर पहुंचकर नियमानुसार टीके लगवाएं।
-डॉ जेपी जोशी, जिला टीकाकरण अधिकारी
वर्ष 2015-16 के बाद टीकाकरण में कुछ बढ़ोतरी हुई थी, लेकिन इसके बाद से फिर साल दर साल ग्राफ में कमी आती जा रही है। गए वित्तीय वर्ष में लक्ष्य के अनुपात में करीब 6 हजार से अधिक बच्चे टीकाकरण से दूर रहे हैं। लेकिन इस ओर जिम्मेदारों का ध्यान नहीं है।
भौतिक सत्यापन का अभाव
वैसे तो पहले टीके के साथ ही बच्चे का कार्ड बन जाता है। जिसके बाद हर टीके की एंट्री कार्ड में की जाती है। इस काम के लिए शहरी क्षेत्र में एएनएम सहित ग्रामीणा क्षेत्रों में आशा आंगनवाड़ी कार्यकर्ता भी लगी हुई हंै। लेकिन आश्चर्य की बात है कि हर साल हजारों बच्चे टीकाकरण से दूर हो रहे हंै। जिसका मुख्य कारण यह भी है कि समय समय पर भौतिक सत्यापन नहीं होता है। अगर ऐसा हो निश्चित ही हर बच्चे को टीका लगे।
ग्रामीण क्षेत्र की महिलाएं व बच्चों को नहीं लग पाते टीके
यूं तो लोगों में पहले की अपेक्षा अभी स्वास्थ्य के प्रति काफी जागरूकता आई है। लेकिन ग्रामीण क्षेत्र में आज भी कई महिलाएं ऐसी हैं जो अपने बच्चे को व स्वयं भी कई बार टीका नहीं लगवा पाती है। क्योंकि कई बार गृह कार्य और जागरूकता के अभाव में उन्हें यही याद नहीं रहता है कि कौन सा टीका कितना महत्वपूर्ण हैं। ऊपर से परिजन भी टीका लगवाने में आनाकानी कर देते हैं। ऐसे में टीकाकरण का लक्ष्य काफी प्रभावित हो रहा है।
स्वास्थ्य विभाग के माध्यम से हर बच्चे को टीके लगाए जाते हैं। ताकि वे विभिन्न बीमारियों से बचें। इसके लिए समय समय पर जागरूकता कार्यक्रम भी आयोजित किया जाते हैं। आशा, आंगनवाड़ी कार्यकर्ताओं द्वारा भी टीके लगवाने के लिए प्रेरित किया जाता है। लेकिन कुछ लोग जागरूकता के अभाव में टीका नहीं लगवा पाते हैं। उन्हें चाहिए कि वे कार्ड अनुसार या टीकाकरण केंद्र पर पहुंचकर नियमानुसार टीके लगवाएं।
-डॉ जेपी जोशी, जिला टीकाकरण अधिकारी