अश्वगंधा में पाए जाते है कई औषधीय गुण
आपको बता दे की अश्वगंधा में कई सारे औषधीय गुण शामिल है। अश्वगंधा के प्रयोग से तनाव और चिंता के लक्षणों को दूर किया जा सकता है। इसका प्रयोग कई बीमारियों के इलाज में भी किया जाता है। अश्वगंधा में कई तरह के एंटी-ऑक्सीडेंट गुण होते है। यह गुण शरीर में कोलेस्ट्रॉल स्तर को नियंत्रण करता है। जिससे हृदय संबंधित विकार होने की संभावना नहीं रहती है। इसका प्रयोग हृदय को स्वास्थ रखने में किया जा सकता है। इसके प्रयोग से हृदय विकार होने की संभावना कम होती है। कैंसर रोग से बचाने में अश्वगंधा काफी सहायक है। साथ ही कई खतरनाक बीमारियों में डॉक्टर अश्वगंधा के सेवन की सलाह देते है।
क्या होती है अश्वगंधा के पौधे की पहचान
आपकी जानकरी के लिए बता दे की अश्वगंधा एक द्विबीज पत्रीय पौधा है। जो कि सोलेनेसी कुल का पौधा है। सोलेनेसी परिवार की पूरे विश्व में लगभग 3000 जातियां पाई जाती हैं। और 90 वंश पाए जाते हैं। इसमें से केवल दो जातियां ही भारत में पाई जाती हैं। इस जाति के पौधे सीधे, अत्यंत शाखित, सदाबहार तथा झाड़ीनुमा 1.25 मीटर लंबे पौधे होते हैं। पत्तियां रोमयुक्त, अंडाकार होती हैं। फूल हरे, पीले तथा छोटे एंव पांच के समूह में लगे हुए होते हैं। इसका फल बेरी जो कि मटर के समान दूध युक्त होता है। जो कि पकने पर लाल रंग का होता है। अश्वगंधा की जड़े 30-45 सेमी लम्बी 2.5-3.5 सेमी मोटी मूली की तरह होती हैं। अश्वगंधा की जड़ बाहर से भूरी तथा अंदर की ओर से सफेद रंग की होती है।
भारत में कहा कहा की जाती है अश्वगंधा की खेती
भारत में अश्वगंधा की खेती कम क्षेत्रफल में ही की जाती है, आपको बता दे की भारत में इसकी खेती 1500 मीटर की ऊंचाई तक के सभी क्षेत्रों में की जा रही है। भारत के पश्चिमोत्तर भाग राजस्थान, महाराष्ट्र, मध्य प्रदेश, पंजाब, गुजरात, उत्तर प्रदेश एवं हिमाचल प्रदेश आदि प्रदेशों में अश्वगंधा की खेती की जाती है। राजस्थान और मध्य प्रदेश में अश्वगंधा की खेती बड़े स्तर पर की जाती है। मध्य प्रदेश के मनसा, नीमच, जावड़, मानपुरा और मंदसौर और राजस्थान के नागौर और कोटा जिलों में अश्वगंधा की खेती की जा रही है। प्राप्त जानकारी के अनुसार भारत में अश्वगंधा की जड़ों का उत्पादन प्रति वर्ष 2000 टन है।
अश्वगंधा की आधुनिक खेती से होती है लाखो की कमाई
भमेसर गांव निवासी किसान श्रीराम पाटीदार ने बताया कि अश्वगंधा की खेती से सामान्यत: एक हैक्टर से 6.5-8.0 क्विंटल ताजा जड़े प्राप्त होती हैं, जो सूखने पर 3-5 क्विंटल रह जाती है। इससे 50-60 किलो बीज प्राप्त होता है। इस फसल में लागत से तीन गुना अधिक लाभ होता है। अब बात करें इससे होने वाले मुनाफे की तो एक हेक्टेयर में अश्वगंधा पर अनुमानित व्यय 10000 रुपए आता है, जबकि करीब 5 क्विंटल जड़ों तथा बीज का वर्तमान विक्रय मूल्य लगभग 78,750 रुपए होता है जिससे किसान अपनी आय को कई गुना तक आसानी से बढ़ा सकता है। वहीं अश्वगंधा की खेती से जमीन भी उपजाऊ होती है। जिससे दूसरी फसल की पैदावार अच्छी होती है। उन्होंने इस बार तीन बीघा जमीन पर अश्वगंधा की खेती की है। वह हाईब्रीड का बीज इस्तेमाल करते है। कृषि मंडी में उनकी बोई अश्वगंधा की बा्रंड है। वहीं भाटखेड़ी गांव निवासी किसान श्याम कारपेंटर ने बताया कि उन्होंने ढाई बीघा में अश्वगंधा की खेती की है। एक बीघा में तीन किलो बीज लगते है। उन्होंन ढाई बीघा में आठ किलो बीज डाले है। जो कि हाईब्रीड है। जिनका मूल्य ५०० रुपए किलो है। बाजार में ५० से १०० रुपए किलो देशी का बीज मिलता है। हाईब्रीड से अच्छी पैदावार बैठती है। बाजार में काफी मांग है। गत वर्ष में ३८०० रुपए क्विंटल अश्वगंधा का दाम मिला था।
इनका यह कहना है
अश्वगंधा की देश व विदेश में काफी मांग है। बड़ी-बड़ी आर्युवेर्दिक दवा निर्माता कंपनियां इसका अपनी दवाओं में इस्तेमाल करती है। नीमच जिला की धरा इसकी खेती के लिए उपयुक्त है। किसानों को इसके लिए प्रेरित किया जाता है और बीज उपलब्ध कराया जाता है। अभी शासन की और से पिछले दो साल से कोई योजना नहीं आई है। जिले में करीब १५०० हेक्टेयर में अश्वगंधा की खेती होती है।
– अतर सिंह कनौजी, उपसंचालक, उद्यानिकी विभाग नीमच।