नवंबर-दिसंबर के महीने में पूरे देश भर में भले ही सर्दी का मौसम रहे लेकिन चुनाव की नजर से यह पूरा महीना गर्म रहने वाला है। इसके पीछे कारण है कि देश के 5 राज्यों में विधानसभा चुनाव होने वाला है। इसमें 5 राज्यों में से अगर दो राज्य को छोड़ दे तो भाजपा बाकी 3 राज्यों में विपक्ष की भूमिका में है। वहीं, इन राज्यों के चुनाव को लोकसभा के सेमीफाइनल भी माना जा रहा है। भाजपा ने पांचों राज्यों में अपनी पूरी ताकत लगा रखी है। एक तरफ प्रधानमंत्री मोदी जहां मध्य प्रदेश और छत्तीसगढ़ के लगातार दौरे कर रहे हैं। वहीं, गृहमंत्री अमित शाह राजस्थान में शह और मात का खेल खेल रहे है।
पार्टी को तेलंगाना से ज्यादा कुछ उम्मीद नहीं है तो पार्टी वहां ज्यादा फोकस नहीं करती दिख रही है। वहीं, मिजोरम में वह अपने सहयोगी मिजो नेशनल फ्रंट के सहारे है। लेकिन आज हम बात चुनाव की नहीं करेंगे। आज हम आपको बता दें कि भाजपा जिन राज्यों को जीतने के लिए सबसे अधिक मेहनत कर रही है। वहीं, उसके तीन पूर्व मुख्यमंत्री पार्टी के लिए मुश्किल खड़ी करते नजर आ रहे हैं।
पार्टी नेतृत्व से नाराज चल रही है उमा भारती
बात जब चुनावी राज्यों के नाराज मुख्यमंत्रियों की कर रहे है तो सबसे पहले उस राज्य में चलते है जहां भाजपा की सरकार है। हम बात कर रहे है चुनावी राज्य मध्य प्रदेश की। यहां से भाजपा की कद्दावर नेता और राज्य की पूर्व मुख्यमंत्री उमा भारती आज कल पार्टी नेतृत्व से नाराज चल रही हैं। इस बात को उन्होंने जगजाहिर भी कर दिया हैं। भाजपा राज्य की सत्ता में फिर से वापसी करना चाहती है।
इसके लिए उसने राज्य भर में जन आशीर्वाद यात्रा निकाला। इस यात्रा की शुरुआत करने के लिए खुद गृहमंत्री अमित शाह भोपाल आए। लेकिन इस यात्रा से उमा भारती को दूर रखा गया। इस बात को लेकर जब उनसे सवाल किया गया तो उन्होंने कहा कि इस यात्रा में पार्टी ने बुलाने की जहमत भी नहीं उठाई। औपचारिक तरीके से निमंत्रण भेज देती और बंद दरवाजे से बोल देती कि न आइए तो भी नहीं जाती।
उमा के इस तीखे बयान पर बताया जा रहा है कि उमा को पार्टी नेतृत्व नजरअंदाज कर रहा है। इससे वह नाराज चल रही है। बता दें उमा भारती राम मंदिर आंदोलन की प्रमुख चेहरा रही हैं। इसके बावजूद पार्टी उनसे दूरी बना रही है। बता दें भाजपा में 75 साल का फॉर्मूला फेमस है। लेकिन उमा अभी 64 साल की ही है। इसके बावजूद उनको इस तरह से नजरअंदाज करना भाजपा नेताओं को ही कई मौकों पर असहज कर देता है। बता दें कि उमा चंबल और बुंदेलखंड वाले इलाके में काफी प्रभाव रखती है। अगर चुनाव से पहले वह किसी भी तरह का पार्टी के विरोध में झंडा उठाती है तो भाजपा को इसका तगड़ा नुकसान हो सकता है।
रमन सिंह का राजनीति में सक्रिय न होना बन रहा चुनौती
लगातार 15 साल तक छत्तीसगढ़ पर राज करने के बाद 2018 में भाजपा को कांग्रेस से हार का सामना करना पड़ा था। उस वक्त राज्य के मुख्यमंत्री रहें रमन सिंह के लिए ये किसी बड़े छटके से कम नहीं था। 2003 में पार्टी अध्यक्ष के तौर पर उन्होंने पहला चुनाव जीता और तब से मुख्यमंत्री रहें। लेकिन 2018 की हार के बाद वह राज्य की राजनीति में भी बहुत सक्रिय नहीं रहें। हालांकि पार्टी ने उनके कद का सम्मान करते हुए उन्हें भाजपा का राष्ट्रीय उपाध्यक्ष बना दिया।
15 साल तक छत्तीसगढ़ की सत्ता पर राज करने के बाद भी भाजपा रमन सिंह के लिए अलावा कोई ऐसा नेता नहीं पैदा कर पाई जिसकी स्वीकार्यता पूरे राज्य में हो। वहीं पार्टी में लगातार हो रही अपनी अनदेखी से नाराज रमन सिंह भी प्रदेश और भाजपा की राजनीति से काफी कटे हुए नजर आ रहे हैं। राजनीति के जानकार मानते है कि अगर समय रहते रमन सिंह की नाराजगी दूर नहीं की गई तो आने वाले चुनाव में पार्टी को इसका खामियाजा भुगतना पड़ सकता है।
वसुंधरा राजे का प्रभाव भाजपा के लिए चुनौती
अगर हम राजस्थान के चुनावी रण को देखे तो इस मरुस्थल में कांग्रेस और भाजपा पांच-पांच साल तक राज करती है। लेकिन दोनों ही पार्टियों के साथ समस्या ये है कि इनके मुख्यमंत्री या पूर्व मुख्यमंत्री बरगद के पेड़ हो गए है। लोग इनके साथ रह तो सकते है लेकिन आगे नहीं बढ़ सकते। हम बात भाजपा की कर रहे है इसलिए राज्य की पूर्व मुख्यमंत्री वसुंधरा राजे की तरफ चलते है। दरअसल 2018 के विधानसभा चुनाव में मिली हार के बाद से ही भाजपा का शीर्ष नेतृत्व राजे को अलग थलग करना शुरू कर दिया। उनकी मर्जी के खिलाफ जाकर राज्य का प्रदेश अध्यक्ष बनाना हो या 2019 के लोकसभा चुनाव के दौरान उनकी अनदेखी करना हो दोनों साफ तौर पर दिखा।
भाजपा कि अगर सबसे बड़ी मजबूती की बात करें तो वह वसुंधरा ही है। इसके पीछे कारण है कि 200 विधानसभा सीटों वाले इस राज्य में राजे का 60 सीटों पर जबरदस्त प्रभाव है। वह सीधे तौर पर जीत और हार का फैसला कर सकती हैं। राजे की पैठ राजपूत और जाट समुदाय के लोगों में खास कर है। साथ ही ये महिलाओं में काफी लोकप्रिय हैं। राजे को जमीनी स्तर से जुड़ा हुआ नेता माना जाता है।
वहीं, भाजपा की राज्य में सबसे बड़ी कमजोरी की बात करे तो वह भी वसुंधरा ही हैं। इसके पीछे कारण है कि वह राजस्थान बीजेपी में कोई ऐसा नेता नहीं है जो राजे को टक्कर दे सके। इसलिए बीजेपी कोई खतरा मोल नहीं लेना चाहती है जो उसके लिए चुनाव में नुकसान साबित हो। धीरे-धीरे पार्टी राजे को अपने पोस्टरों के साथ ही प्रधानमंत्री मोदी की रैली से लेकर संगठन तक में तवज्जो देने लगी है।
पूर्व मुख्यमंत्रियों की नाराजगी भाजपा के लिए चुनौती
राजनीति के जानकार बताते है कि भाजपा का शीर्ष पार्टी नेतृत्व तीनों राज्यों में किसी भी तरह चुनाव जीतना चाहता है। इसके लिए प्रधानमंत्री मोदी से लेकर गृहमंत्री अमित शाह, पार्टी अध्यक्ष JP नड्डा चुनावी मैदान में हैं। लेकिन तीनों राज्यों के पूर्व मुख्यमंत्रियों के अंदर असंतोष की भावना साफतौर पर देखी जा रही है। और आने वाले समय में इन तीनों नेताओं की नाराजगी भाजपा के लिए चुनौती बनकर सामने आ सकती है।
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