साहिबजादों के बलिदान की प्रेरणा
इस वर्ष, भारत सरकार ने पहली बार “वीर बच्चों का सम्मान” करने का निर्णय लिया है, ताकि साहिबजादों की महान वीरता और बलिदान की गाथा को देशभर में प्रचारित किया जा सके। नन्हे साहिबजादों की वीरता और साहस को याद कर बच्चों और युवाओं को सिखाया जाएगा कि नैतिकता और सत्य के लिए खड़ा होना जीवन का सबसे बड़ा मूल्य है।वीर बच्चों को सम्मान
उन बच्चों को सम्मानित किया जाएगा, जिन्होंने असाधारण साहस, सेवा, या बलिदान का परिचय दिया है। यह पहल नई पीढ़ी को समाज में सकारात्मक बदलाव लाने के लिए प्रेरित करेगी। इस बार 14 राज्यों और केंद्र शासित प्रदेशों के 17 बच्चों को इस पुरस्कार के लिए चुना गया है। इनमें 7 लड़के और 10 लड़कियां शामिल हैं।महान साहिबजादों की गाथा
बाबा जोरावर सिंह (9 वर्ष) और बाबा फतेह सिंह (7 वर्ष) ने मुगलों के सामने झुकने से इनकार कर दिया और धर्म की रक्षा के लिए अपने जीवन का बलिदान दिया। दोनों साहिबजादों को सरहिंद के नवाब द्वारा जिंदा दीवार में चुनवा दिया गया, लेकिन उन्होंने अपने विश्वास से कोई समझौता नहीं किया। गुरु गोबिंद सिंह और उनके परिवार की वीर गाथा को देश के हर कोने तक पहुंचाना। इतिहास की इन घटनाओं के माध्यम से भारतीय समाज को एकता और बलिदान का संदेश देना।26 दिसंबर को मनाया जाता है वीर बाल दिवस
हर वर्ष 26 दिसंबर को वीर बाल दिवस मनाया जाता है। यह सिख इतिहास से जुड़ा एक महत्वपूर्ण दिन है। इस दिन को वीर बाल दिवस के रूप में मनाने का मुख्य कारण सिखों के दसवें गुरु गोबिंद सिंह जी के छोटे साहिबजादों जोरावर सिंह और उनके छोटे भाई पांच साल के बाबा फतेह सिंह की वीरता को सम्मानित किया गया। 26 दिसंबर, 1705 में इन महान सपूतों को धर्म नहीं बदलने पर मुगल सेनापति वजीर खान ने उन्हें जिंदा दीवार में चुनवाया था। यह भी पढ़ें