दूसरी बात जम्मू-कश्मीर में लोकसभा चुनाव शांति से हो चुका है। सिंतबर में विधानसभा चुनाव कराने की तैयारी है। दुनिया की निगाह यहां के चुनाव पर होगी। ऐसे में आतंकी और इनके आका यह पैगाम देना चाहते हैं कि कश्मीर ही नहीं जम्मू के लोग भारत के खिलाफ हैं। यही वजह है कि आतंकी नए नाम से नए क्षेत्र में नए तरीके से हमला कर रहे हैं।
आतंकी संगठनों के नाम ऐसे रखा गया है कि धर्म निरपेक्ष और स्थानीय लगे। इसी तरह वह दिखाना चाहते हैं कि पूरे राज्य की हालत ठीक नहीं है। यह अलग बात है कि जम्मू -कश्मीर की आवाम की चादर ओढ़े पाकिस्तानी यहां आतंक फैला रहे हैं। श्री अमरनाथ यात्रा शांति से हो रही है और आतंकी कुछ भी नहीं कर पा रहे हैं। ऐसे में हरकत का दबाव है। जम्मू आतंकियों के लिए आसान निशाना है।
कर्नल मनीष ओझा (सेवानिवृत्त) कहते हैं कि जम्मू क्षेत्र में आतंकवाद की घटनाओं में बढ़ोतरी इस और इशारा करती है कि पाकिस्तानी आतंकवादी अब कश्मीर घाटी मे कड़ी सुरक्षा व्यवस्था के चलते अपने कदम नहीं जमा पा रहे हैं, तो इसलिए वह अब जम्मू एवं डोडा क्षेत्र की भौगोलिक दुर्गमता का लाभ उठाकर इस क्षेत्र में आतंकवाद फैलाने का प्रयास कर रहे हैं।
जम्मू-कश्मीर के पूर्व डीजीपी एसपी वैद्य जम्मू में लगातार हो रहा हमला आतंकियों की एक खास रणनीति का हिस्सा है। पैटर्न देखिए इस बार आतंकी क्षेत्र हिंदू आबादी वाले बने हैं। आतंकी सुरक्षाबलों के शक का दायरा हिंदुओं पर लाना चाहते हैं। इतना ही नहीं आतकीं नए संगठन के माध्यम से यह दिखाना चाहते हैं कि आतंक की नई लहर नए इलाके में नए तरह से उठी है। इसका मुस्लिम नहीं लोकल कनेक्शन है।
पूर्व डीजीपी वैद्य कहते हैं कि जम्मू में आतंकी हमले इसलिए बढ़ गए हैं क्योंकि यह क्षेत्र 15 साल से शांत था। 2019 में 370 हटने और फिर 2020 में गलवान तनाव के बाद जम्मू से आरआर और एसओजी की फोर्सेज कश्मीर और लददाख स्थानांतरित कर दी गईं। लददाख में चीन के सामने भारत आंख में आंख मिलाए हुए हैं और कश्मीर में पाकिस्तान की दाल गल नहीं रही है। ऐसे में आतंकी चाहते हैं कि फोर्सेज का बिखराव हो तो उन्हें अपनी करतूतों को अंजाम देने की जगह मिले। इसलिए यह हमले जम्मू में हो रहे हैं।