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Explainer: पतंजलि भ्रामक विज्ञापन विवाद क्या है, जानें कब और कैसे हुई इसकी शुरुआत?

Patanjali: कोर्ट ने पतंजलि को भ्रामक विज्ञापन पर अस्थायी रोक लगाई थी। इसके बाद पतंजलि ने आश्वासन दिया था कि वो ऐसे विज्ञापन जारी नहीं करेगी, लेकिन कुछ दिन बाद ही कंपनी ने दोबारा भ्रामक विज्ञापन प्रसारित किए।

नई दिल्लीMay 02, 2024 / 11:31 am

Akash Sharma

पतंजलि भ्रामक विज्ञापन विवाद क्या है, कब और कैसे हुई इसकी शुरुआत

Patanjali: सुप्रीम कोर्ट में बाबा रामदेव की मुश्किलें कम होने का नाम ही नहीं ले रही हैं। पतंजलि के भ्रामक विज्ञापन और इससे संबंधित मानहानि मामले में 10 अप्रैल को कोर्ट ने कंपनी और रामदेव का दूसरा माफीनामा भी खारिज कर दिया है। कोर्ट ने सख्त टिप्पणी करते हुए कहा कि पतंजलि ने बार-बार हमारे आदेश की अनदेखी की है। इसका नतीजा उन्हें भुगतना होगा। आइए जानते हैं पूरा मामला..

कब और कैसे हुई शुरुआत?


ये विवाद जुलाई, 2022 में शुरू हुआ था। दरअसल, उस समय पतंजलि ने अखबार में एक विज्ञापन जारी किया गया था। जिसका शीर्षक था- ‘एलोपैथी द्वारा फैलाई गई गलतफहमियां।’ इस एड में पतंजलि ने आंख-कान की बीमारियों, लिवर, थायरॉइड, अस्थमा में एलोपैथी इलाज और त्वचा संबंधी बीमारियों को नाकाम बताया था। विज्ञापन में ये दावा भी किया गया था कि इन बीमारियों को पतंजलि की दवाईयां और योग पूरी तरह से ठीक कर सकते हैं।


COVID की दवाई पर भी पतंजलि ने किए थे दावे


कोरोना महामारी के दौरान बाबा रामदेव ने दावा किया था कि उनकी दवाई कोरोनिल (Coronil ) और स्वसारी से कोरोना का इलाज किया जा सकता है। रामदेव ने कोरोनिल को विश्व स्वास्थ्य संगठन (WHO) से मंजूरी मिलने की बात कही थी। कोरोनिल दवा को लॉन्च करते समय मंच पर रामदेव के साथ पूर्व स्वास्थ्य मंत्री हर्षवर्धन और नितिन गडकरी मौजूद थे। बता दें कि इस दवाई को लेकर खूब विवाद हुआ था। साथ ही आयुष मंत्रालय ने पतंजलि से सवाल भी पूछे थे।

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Patanjali के खिलाफ सुप्रीम कोर्ट गया था IMA


पतंजलि के विज्ञापनों और एलोपैथी को लेकर रामदेव के दावों के खिलाफ इंडियन मेडिकल एसोसिएशन (IMA) ने सुप्रीम कोर्ट का रुख किया था। बता दें कि IMA ने अगस्त, 2022 में सुप्रीम कोर्ट में याचिका दायर की थी। दरअसल, IMA का कहना था कि पतंजलि के दावे औषधि एवं जादुई उपचार (आपत्तिजनक विज्ञापन) अधिनियम, 1954 और उपभोक्ता संरक्षण अधिनियम, 2019 का उल्लंघन करते हैं।


कोर्ट ने भ्रामक विज्ञापन पर लगाई थी रोक


कोर्ट ने नवंबर, 2023 में पतंजलि को भ्रामक विज्ञापन पर अस्थायी रोक लगाई थी। इसके बाद पतंजलि ने आश्वासन दिया था कि वो ऐसे विज्ञापन जारी नहीं करेगी, लेकिन कुछ दिन बाद ही कंपनी ने दोबारा भ्रामक विज्ञापन प्रसारित किए। साथ ही कोर्ट ने पतंजलि को मीडिया से दूरी बनाने का आदेश दिया था, लेकिन आदेश के एक दिन बाद ही रामदेव ने एक प्रेस कॉन्फ्रेंस को संबोधित किया।

रामदेव एलोपैथी को लेकर देते हैं विवादित बयान


बाबा रामदेव ने 21 मई, 2021 को कहा था कि एलोपैथी बकवास विज्ञान है और रेमेडिसिवीर और फेविफ्लू जैसी दवाईयां कोरोना मरीजों के उपचार में पूरी तरह विफल रही हैं। साथ ही उन्होंने कहा था कि लाखों मरीजों की मौत ऑक्सीजन की वजह से नहीं एलोपैथिक दवाईयों से हुई है। अपने इस बयान पर रामदेव ने माफी मांगी थी, लेकिन एक दिन बाद ही उन्होंने IMA को एक पत्र लिखकर एलोपैथी से जुड़े 25 सवालों के जवाब भी मांगे थे।


विवादों में रही है पतंजलि


पतंजलि ने 2015 में बिना लाइसेंस लिए आटा नूडल्स लॉन्च कर दिए थे। इसके बाद पतंजलि कंपनी को लीगल नोटिस जारी किया गया था। वहीं पतंजलि ने 2018 में गिलोय घनवटी पर एक महीने आगे की निर्माण तिथि लिख दी थी। इस पर भी पतंजलि को फटकार लगी थी। इसके बाद 2022 में पंतजलि के गाय के घी में मिलावट सामने आई थी। बता दें कि उत्तराखंड खाद्य सुरक्षा विभाग की तरफ से किए गए परीक्षण में खाद्य सुरक्षा मानकों पर घी खरा नहीं उतरा था।

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उत्तराखंड सरकार की क्या रही भूमिका


पतंजलि के उत्पादों और दवाईयों को बनाने वाली दिव्य फार्मेसी उत्तराखंड में स्थित है। पतंजलि की दवाईयों को उत्तराखंड राज्य लाइसेंसिंग प्राधिकरण लाइसेंस जारी करता है। IMA ने इस मामले में औषधि एवं जादुई उपचार (आपत्तिजनक विज्ञापन) अधिनियम, 1954 के तहत कार्रवाई की मांग की थी, लेकिन उत्तराखंड सरकार ड्रग्स एंड कॉस्मेटिक्स कानून की धारा 170 के तहत पतंजलि को नोटिस भेजती रही। बता दें कि धारा 170 पर बॉम्बे हाईकोर्ट ने रोक लगा दी थी।

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