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आखिर क्या है दलबदल कानून और क्यों पड़ी इसकी जरूरत, जानिए सब कुछ

आखिर देश को क्यों पड़ी दलबदल विरोधी कानून की जरूरत, कब बना ये कानून, और क्या है आया राम–गया राम की कहानी, पढ़िए इस कानून के बारे में सब कुछ-

Jan 18, 2022 / 07:26 am

Arsh Verma

Anti Defection Law

उत्तर प्रदेश में होने वाले विधानसभा चुनाव के मौसम के साथ दलबदल का मौसम भी शुरू हो गया है। टिकटों का बंटवारा शुरू होते ही पिछले एक हफ्ते में दो बड़े मंत्रियों समेत 15 से ज्यादा विधायक ‌BJP छोड़ सपा में और सपा के कई विधायक और नेता BJP का दामन थाम चुके हैं। लेकिन क्या देश में ऐसा कोई कानून है, जो विधायकों या सांसदों को निजी फायदे के लिए दलबदल से रोकता हो। जी हां, देश में दलबदल विरोधी कानून है। जो विधायकों या सांसदों को दल बदल से रोकता है।
सबसे पहले जानते हैं कि आखिर क्यों पड़ी दलबदल कानून की जरूरत:
भारतीय लोकतांत्रिक प्रक्रिया में राजनीतिक दल सबसे अहम हैं और वे सामूहिक आधार पर फैसले लेते हैं। लेकिन समय बीतता गया और नेता अपने हिसाब से राजनीति में तोड़ जोड़ करने लगे। विधायकों और सांसदों के इस जोड़-तोड़ से सरकारें बनने और गिरने लगीं। इस स्थिति ने राजनीतिक व्यवस्था में अस्थिरता ला दी।

ऐसा भी समय था जब एक ही दिन में बदली गईं दो पार्टियां:
जी हां देश ने एक समय ऐसा भी देखा है जब एक ही दिन में नेताओं ने दो दो पार्टियां बदल डालीं। ये बात सन् 1967 की है, जब 30 अक्तूबर, 1967 को हरियाणा के विधायक गया लाल ने एक दिन के भीतर दो दल बदले। उन्होंने 15 दिन में तीन दल बदले थे। गया लाल पहले कांग्रेस से जनता पार्टी में गए, फिर वापस कांग्रेस में आए और अगले नौ घंटे के भीतर दोबारा जनता पार्टी में लौट गए। जिसके बाद से देश में आया राम-गया राम के चुटकुले और कार्टून चलने लगे।
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दलबदल विरोधी कानून कब बना:
साल 1985 में, राजीव गांधी सरकार संविधान में संशोधन करने और दलबदल पर रोक लगाने के लिए एक विधेयक लाई और 1 मार्च 1985 को यह लागू हो गया. संविधान की 10 वीं अनुसूची, जिसमें दलबदल विरोधी कानून शामिल है, को इस संशोधन के माध्यम से संविधान में जोड़ा गया।
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