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ममता राज में उद्योगों में आई भारी गिरावट, अब राज्य को उद्योग में No.1 बनाने में जुटीं, कारण दिलचस्प है

ममता बनर्जी अपनी उद्योग विरोधी छवि को बदलने के लिए बंगाल में निवेश के लिए राह तैयार कर रही हैं। अडानी समूह के अध्यक्ष एवं संस्थापक गौतम अडानी से ममता बनर्जी का मिलना भी इसी का हिस्सा है।
 

Dec 04, 2021 / 02:49 pm

Mahima Pandey

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पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी की राष्ट्रीय राजनीति में आने की महत्वाकांक्षा किसी से छुपी नहीं है। इसके लिए ममता बनर्जी अपनी नीतियाँ, कार्य करने की शैली में बदलाव कर रही हैं। इसी क्रम में अपनी उद्योग विरोधी छवि को बदलने के लिए बंगाल में निवेश के लिए राह तैयार कर रही हैं। अडानी समूह के अध्यक्ष एवं संस्थापक गौतम अडानी से ममता बनर्जी का मिलना भी इसी का हिस्सा है।

ममता की नीति में बदलाव

बंगाल में सत्ता बदलाव के बाद जिस ममता के राज में उद्योग में लगभग 90 फीसदी से अधिक की गिरावट आई, वो अब नीतियाँ बदलेंगी तो सवाल तो उठेंगे ही। इस बड़े बदलाव का कारण पीएम की कुर्सी भी मानी जा रही है।
किसी भी देश की जनता घरेलू मुद्दों के साथ ही विकास के मुद्दे को महत्व देती है, और अपना नेता चुनती है। ममता बनर्जी की छवि उद्योग और निवेश विरोधी रही है। हालांकि, अब ममता बनर्जी इसे प्रो-उद्योग बनाने पर काम कर रही हैं जिससे वो 2024 के आम चुनावों में बंगाल को देश के समक्ष एक उदाहरण के तौर पर पेश कर सकें।

क्या कारण है कि बंगाल उद्योग के मामले में पिछड़ता गया?

स्वतंत्र भारत के इतिहास में बंगाल की अर्थव्यवस्था का पतन दुखद है। पहला झटका विभाजन के साथ लगा था क्योंकि जूट के खेत पूर्वी पाकिस्तान (बाद में बांग्लादेश) के पास रहे, जबकि भारत की ओर पश्चिम बंगाल में जूट मिलें और कपड़ा कारखाने बने रहे।
हालांकि, ये दावा करना कि देश की आजादी के बाद से ही बंगाल का पतन शुरू हो गया तो गलत होगा। इसके कई कारण रहे हैं और इसमें ममता बनर्जी की भूमिका भी अहम रही है।

बंगाल कभी भारी उद्योगों के कारण चर्चा में रहा

पश्चिम बंगाल कभी 1950 के दशक में भारी उद्योगों के कारण चर्चा में रहा करता था। 1950-51 में, पश्चिम बंगाल का योगदान देश के औद्योगिक उत्पादन में एक चौथाई से अधिक था। एंड्रयू यूल और ब्रैथवेट जैसी कंपनियों के बंगाल में उनके प्रमुख कारखाने थे।
लेफ्ट के राज में शहरों और कस्बों में, व्यापारियों को शत्रु के रूप में देखा जाता था और इस दुश्मनी ने उग्रवादी ट्रेड यूनियनवाद का रूप ले लिया जिसका शिकार अक्सर व्यवसायी होते थे। कई व्यापारी अपनी फैक्ट्रियां खोलने से डरते थे।
कई कम्पनियाँ राज्य में अपने प्लांट बंद कर चुकी हैं तो कुछ राज्य से विस्थापित हो गई हैं। आज हालत ये है कि जो कम्पनियाँ राज्य में बची हैं वो भी अपने अस्तित्व की लड़ाई लड़ रही हैं।
उदाहरण के लिए:

टीएमसी और विपक्ष बंगाल में एक दूसरे को उद्योगों की दयनीय स्थिति के लिए दोष ठहराते हैं। वास्तविकता ये है कि कम्युनिस्ट सरकार के बाद ममता बनर्जी ने भी राज्य में उद्योग को बढ़ावा देने के लिए कोई खास प्रयास नहीं किए।

ममता 3.0: पश्चिम बंगाल में औद्योगीकरण को रफ्तार

पूर्व केंद्रीय वित्त मंत्री यशवंत सिन्हा ने कहा था कि ‘बंगाल प्रशासन को बाहर जाने की आवश्यकता है ताकि घरेलू और विदेशी दोनों तरह के निवेशों को सक्रिय रूप से लुभा सके। सीएम ममता बनर्जी को खुद एक संदेश देना चाहिए कि पश्चिम बंगाल का मतलब व्यापार है और यह निवेश का स्वागत करता है।’
लगता है ममता बनर्जी ने इसे गंभीरता से लिया है। शायद यही वजह है कि ममता बनर्जी अपने तीसरे कार्यकाल में ये दावा कर चुकी हैं कि वो राज्य में औद्योगीकरण को रफ्तार देंगी।
ममता बनर्जी ने बंगाल की जनता से वादा कर चुकी हैं कि राज्य में 25 लाख से 10,000 तक के स्टार्टअप को सब्सिडी ऋण दिया जायेगा। साथ ही उनकी सरकार 2000 बड़ी औद्योगिक इकाइयों को अगले पांच साल में 10 हजार इकाइयों के 4- मौजूदा आधार में जोड़ेगी।
राज्य में अगले पांच वर्षों में पांच लाख करोड़ रुपए का नए निवेश का टारगेट भी रखा गया है। बंगाल ग्लोबल बिजनेस सम्मिट का आयोजन भी इसी का हिस्सा है।

इस समिट में ममता बनर्जी बड़े उद्योगपतियों को शामिल करना चाहती हैं। अडानी समूह के अध्यक्ष एवं संस्थापक गौतम अडानी से मिलकर ममता बनर्जी ने ये सुनिश्चित भी किया है। वर्तमान में ममता बनर्जी का उद्देश्य बंगाल को देश में निवेश और उद्योग के मामले में नंबर वन बनाना है। यदि ममता बनर्जी ऐसा करने में सफल होती हैं तो भाजपा के हाथ से विकास के मुद्दे छीन लेंगी।

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