तृणमूल कांग्रेस, वाम मोर्चा और कांग्रेस की ओर से कई सीटों पर अपनी-अपनी जीत के दावे पेश किए जा रह हैं। भ्रष्टाचार के विभिन्न मामलों में सरकारी तंत्र के कथित तौर से लिप्त होने से लोगों में नाराजगी है। आमदनी कम और रोजगार के अभाव के कारण युवा श्रमिकों के पलायन हुआ है। ये दल लोकसभा चुनाव में मुस्लिम बहुल क्षेत्रों में अपने-अपने उम्मीदवार उतार रहे हैं। माकपा के बंगाल सचिव और पोलित ब्यूरो सदस्य मोहम्मद सलीम स्वयं मुस्लिम बहुल संसदीय क्षेत्र मुर्शिदाबाद से उम्मीदवार हैं। इस क्षेत्र में 63 प्रतिशत मतदाता अल्पसंख्यक समुदाय के हैं। यह तृणमूल के लिए एक बड़ी चुनौती है। हालांकि तृणमूल ने भी इस क्षेत्र से अपने सांसद अबू ताहर खान पर फिर से दांव खेला है।
माकपा का दावा
मोहम्मद सलीम ने दावा किया कि हमारी सभाओं में होने वाली भीड़ माकपा के पुनरुत्थान का संकेत है। रोजगार के लिए दूसरे राज्यों में पलायन करने वाले बंगाली श्रमिक वोट देने के लिए अपने गांव लौट रहे हैं। माकपा इन लोगों में वाम मोर्चा के प्रति फिर से विश्वास पैदा होने का दावा कर रही है। कांग्रेस भी मालदह दक्षिण, बहरमपुर, पुरुलिया और कोलकाता उत्तर जैसे लोकसभा क्षेत्र से अपनी जीत की उम्मीद पाले हुई है, जहां मुस्लिम मतदाता जीत-हार के लिए अहम कारक हैं। वह इस चुनाव में ममता बनर्जी की तृणमूल कांग्रेस से नाराज मुस्लिम समुदाय का समर्थन मिलने की उम्मीद में अपने पुनरुत्थान की झलक देख रही है। पार्टी का प्रदेश नेतृत्व दावा कर रहा हैं कि ममता सरकार से नाराज अधिकतर मुस्लिम मतदाताओं में कांग्रेस के प्रति विश्वास पैदा हुआ है और यह कांग्रेस के पुनरुत्थान में मददगार साबित होगा।
सत्ता से हो गए दूर
राज्य में कांग्रेस पिछले पांच दशकों से राज्य की सत्ता से दूर रही है। मोदी लहर होने के बावजूद पिछले लोकसभा चुनाव में पार्टी ने बंगाल में दो सीटें जीती थीं और वाम मोर्चा साफ हो गया था। लेकिन पिछले विधानसभा चुनाव में दोनों पार्टियां एक भी सीट नहीं जीत पाईं।